Authors
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भालचन्द्र जोशी
17 अप्रैल 1956 को आदिवासी क्षेत्र खरगोन में जनमे भालचन्द्र जोशी पेशे से इंजीनियर रहे हैं। नौ कहानी-संग्रह, दो उपन्यास और कथा-आलोचना की तीन पुस्तकें प्रकाशित। आदिवासी जीवन पद्धति तथा कला का विशेष अध्ययन। निमाड़ की लोक कलाओं और लोक कथाओं पर काम। चित्रकला में सक्रिय रूचि। देश के प्रमुख अखबारों के लिए समसामयिक विषयों पर लेखन। कई पत्रिकाओं और पुस्तकों का सम्पादन। टेलीविजन के लिए क्लासिक सीरीज में फिल्म लेखन। कुछ कहानियों का अंग्रेजी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद। उपन्यास 'प्रार्थना में पहाड़' का मराठी और कन्नड़ में अनुवाद। सम्मान- मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन का ‘वागीश्वरी पुरस्कार’, इंडिपेंडेंट मीडिया इनिशिएटिव सोसायटी दिल्ली का वर्ष 2012 का शब्द-साधक जनप्रिय लेखक सम्मान, म.प्र. अभिनव कला परिषद भोपाल द्वारा अभिनव शब्द-शिल्पी सम्मान, ‘जल में धूप‘ कहानी संग्रह के लिए 2013 का स्पंदन कृति सम्मान, ‘हत्या की पावन इच्छाएँ’ कहानी संग्रह के लिए 2014 का शैलेष मटियानी कथा पुरस्कार, 'नामवर सिंह : आलोचना की सार्थकता' पुस्तक के लिए वर्ष 2024 का डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी आलोचना सम्मान। संप्रति : दैनिक समाचार पत्र 'आज की जनधारा', की साहित्य वार्षिकी का संपादन।
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ममता कालिया
हिंदी की सुप्रसिद्ध वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया का जन्म 2 नवम्बर 1940 को हुआ था। अपनी कहानियों, उपन्यासों, निबंधों और नाटकों के कारण उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। उनका लेखन आधुनिक समाज, स्त्री सरोकार, परिवार और युवाओं के मनोविज्ञान पर केंद्रित है। उनकी रचनाओं में स्त्री जीवन की पीड़ा, संघर्ष और आत्मनिर्भरता का सजीव चित्रण होता है। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘बेघर’, ‘दुखों का उत्सव’, ‘कल्चर वल्चर’ और ‘नरक दर नरक’ जैसे उपन्यास शामिल हैं। उनकी रचनाओं में एक सहज, सजीव और बोलचाल की भाषा का प्रयोग होता है, जिससे पाठक उनके पात्रों से गहरे से जुड़ जाते हैं। ममता कालिया साहित्य जगत में एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व हैं।
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प्रभात
प्रभात कैमरे के व्यूफ़ाइंडर को दुनिया को देखने-समझने की जादुई खिड़की मानते हैं और तस्वीरों को समाज का नायाब दस्तावेज़। आम लोगों की कहानियाँ सुनना और सुनाना उनका पसंदीदा शगल है और घुमक्कड़ी इसका बहाना। सिनेमा, संगीत और थिएटर में ख़ास दिलचस्पी, और लोक-संस्कृति के प्रति जिज्ञासा है, सो आर्ट, अदब और थिएटर में ज़िन्दगी का मकसद तलाशते घूमते हैं। अरसे तक 'अमर उजाला' के संपादक रहे। थारू जनजाति पर एक मोनोग्राफ़, और कुंभ के मेले पर एक किताब लिखी है, अख़बारनवीसी पर भी दो किताबें हैं। मार्क टुली के कहानी संग्रह और रस्किन बॉन्ड की आत्मकथा का हिंदी में अनुवाद किया है। इन दिनों 'जीरो माइल बरेली' नामक अपनी किताब को लेकर चर्चित।
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गिरीन्द्र नाथ झा
गिरीन्द्र नाथ झा ने पत्रकारिता की पढ़ाई वाईएमसीए, दिल्ली से की. उसके पहले वे दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक कर चुके थे. आप CSDS के फेलोशिप प्रोग्राम के हिस्सा रह चुके हैं. पत्रकारिता के बाद करीब एक दशक तक विभिन्न टेलीविजन चैनलों और अखबारों में काम किया. पूर्णकालिक लेखन और जड़ों की ओर लौटने की जिद उनको वापस उनके गांव चनका ले आयी. वहां रह कर खेतीबाड़ी के साथ लेखन भी करते हैं. राजकमल प्रकाशन से उनकी लघु प्रेम कथाओं की किताब भी आ चुकी है.
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आदित्य शुक्ला
आदित्य शुक्ला हिंदी में सक्रिय युवा कहानीकार और कवि हैं। कविता और कहानियों के अलावा वे कला आलोचना और अनुवाद भी करते हैं। उनकी कविताएं, कहानियाँ और अन्य लेख ‘हंस’, ‘तद्भव' और ‘बया’ जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। देवरिया, उत्तर प्रदेश के मूल निवासी, फ़िलहाल गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में क्वालिटी एनालिस्ट के रूप में कार्यरत।
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आयशा आरफ़ीन
वनस्पति विज्ञान में स्नातक, जे.एन.यू., नई दिल्ली से समाज शास्त्र में एम.ए., एम.फिल., पी.एच.डी. जनवरी 2020 में पहली कहानी प्रकाशित. अब तक बारह कहानियाँ प्रकाशित. परिकथा, अकार, वागर्थ, पक्षधर, उद्भावना, वर्तमान साहित्य, वनमाली कथा, दोआबा, समालोचन आदि पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित. अंग्रेज़ी, उर्दू, और ओड़िया भाषाओँ से हिंदी में अनुवाद. संस्कृति, साहित्य और सिनेमा से सम्बंधित कई शोध-पत्र प्रकाशित.
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रवीन्द्र त्रिपाठी
रवीन्द्र त्रिपाठी (जन्म 15 फरवरी, 1959), मेदिनीनगर/डालटनगंज, झारखंड। प्रिंट, टेलीविजन और सोशल-मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार, नाटककार, साहित्य-फिल्म-कला-रंगमंच आलोचक, व्यंग्यकार, डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर, यू- ट्यूबर, अनुवादक, स्क्रिप्ट-लेखक और संपादक। महात्मा गांधी के जीवन पर `पहला सत्याग्रही’ और स्वामी विवेकानंद के जीवन पर `विवेकानंद इन शिकागो’ नाटक लिखे। `कथा शिवपालगंज की’ , `राग विराग’ और `अज्ञातवास’ (तीनों श्रीलाल शुक्ल के उपन्यासों के नाट्य रूपांतर)। सभी नाटक मंचित। साहित्य अकादेमी और साहित्य कला परिषद के लिए डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण, एबीपी न्यूज के व्यंग्य-शो `पोलखोल’ के स्क्रिप्ट लेखक (शुरू में उसके प्रॉड्यूसर भी)। प्रसन्ना की पुस्तक `इंडियन मेथड इन एक्टिंग’ का `अभिनय की भारतीय पद्धति’ नाम से हिन्दी अनुवाद। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका `रंग प्रसंग’ और केंद्रीय हिन्दी संस्थान की पत्रिका `मीडिया विमर्श’ के अतिथि संपादक रहे।
devashish
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