प्रभात कैमरे के व्यूफ़ाइंडर को दुनिया को देखने-समझने की जादुई खिड़की मानते हैं और तस्वीरों को समाज का नायाब दस्तावेज़। आम लोगों की कहानियाँ सुनना और सुनाना उनका पसंदीदा शगल है और घुमक्कड़ी इसका बहाना। सिनेमा, संगीत और थिएटर में ख़ास दिलचस्पी, और लोक-संस्कृति के प्रति जिज्ञासा है, सो आर्ट, अदब और थिएटर में ज़िन्दगी का मकसद तलाशते घूमते हैं। अरसे तक 'अमर उजाला' के संपादक रहे। थारू जनजाति पर एक मोनोग्राफ़, और कुंभ के मेले पर एक किताब लिखी है, अख़बारनवीसी पर भी दो किताबें हैं। मार्क टुली के कहानी संग्रह और रस्किन बॉन्ड की आत्मकथा का हिंदी में अनुवाद किया है। इन दिनों 'जीरो माइल बरेली' नामक अपनी किताब को लेकर चर्चित।