EC की वोटर लिस्ट मामले में सुनवाई के लिए सहमत सुप्रीम कोर्ट, ADR, RJD समेत अन्य ने दायर की थी याचिकाएं

Supreme Court ने बिहार में चुनाव आयोग विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की है। इसकी सुनवाई 10 जुलाई को होगी।

SUPREME COURT TO HEAR PETITIONS AGAINST EC SIR ORDER AHEAD OF BIHAR ASSEMBLY ELECTIONS

सुप्रीम कोर्ट SIR मामले में 10 जुलाई को करेगी सुनवाई Photograph: (बोले भारत डेस्क)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट (SC) ने चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट इसकी सुनवाई 10 जुलाई को करेगा। इसके लिए एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), योगेंद्र यादव, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) समेत अन्य ने याचिकाएं दायर की हैं। 

जस्टिस सुधांशू धूलिया और जॉयमाला बागची की पीठ ने मामले में सुनवाई को लेकर सहमति दी है। इसके साथ ही पक्षों को चुनाव आयोग को अपनी याचिकाओं की अग्रिम सूचना और प्रतियां देने की अनुमति दी।

कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और अन्य बड़े वकील हुए पेश 

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकरनारायणन और शदन फरासत ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में मामले का उल्लेख किया। 

वकीलों ने अदालत के सामने इस बात का उल्लेख किया कि जो भी मतदाता इस नियम के तहत दिए गए दस्तावेजों को प्रस्तुत करने में असफल रहेंगे तो उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा। भले ही इन लोगों ने 20 साल तक मतदान क्यों न किया हो।

याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को जारी किए गए आदेश को रद्द करने की मांग की है। चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को जारी किए गए आदेश के तहत 2003 के बाद बने मतदाताओं को अपनी नागरिकता का प्रमाण देना होगा। वहीं, जिन लोगों के नाम 2003 की मतदाता सूची में हैं, ऐसे लोगों को नागरिकता सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। 

चुनाव आयोग ने जारी की 11 दस्तावेजों की सूची

चुनाव आयोग ने नागरिकता सिद्ध करने के लिए 11 दस्तावेजों की सूची भी जारी की है। हालांकि, इस सूची में आधार कार्ड और राशन कार्ड शामिल नहीं है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन दस्तावेजों को शामिल न करने से हाशिए के समुदायों और गरीब लोगों को नागरिकता सिद्ध करने में परेशानी हो सकती है और लाखों लोग वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। 

ADR ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि चुनाव आयोग का यह आदेश नागरिकता सिद्ध करने का भार नागरिकों पर डालता है जबकि यह राज्य सरकार को करना होता है। 

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यदि चुनाव आयोग के इस आदेश (SIR) को रद्द नहीं किया तो मनमाने तरीके से लाखों वोटर्स वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बाधित हो सकता है जो संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है।

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