पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग तैयारियों में जुटा है। इसके तहत राज्य की मतदाता सूची के लिए चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) चल रहा है। इसके तहत वोटर वेरिफिकेशन किया जा रहा है। हालांकि, इसको लेकर अब नया विवाद सामने आ रहा है। एक ओर जहां भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission Of India) का कह रहा है कि यह ऐसी प्रक्रिया है जो कानूनी रूप से अनिवार्य है। हालांकि, विपक्षी दल इस बात को लेकर विरोध जता रहे हैं कि इससे वास्तविक मतदाताओं, गरीब, प्रवासी और हाशिए पर रहने वाले मतदाताओं के नाम कट सकते हैं। 

चुनाव आयोग ने कहा कि ये संशोधन 22 वर्षों के बाद हो रहा है जो कि संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People Act) के अनुरूप है। 

इस संशोधन प्रक्रिया के तहत वोटर वेरिफिकेशन के लिए वोटर्स से कुछ दस्तावेज मांगे जा सकते हैं। इसके लिए चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की सूची तैयार की है। हालांकि, इन दस्तावेजों में आधार कार्ड शामिल नहीं है। वोटर्स को अपने दस्तावेज स्वंय वेरिफाई कराने होंगे। 

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, जिन लोगों का नाम 2003 की मतदाता सूची में है, उन्हें किसी भी प्रकार के अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी। 

किन दस्तावेजों से कर सकते हैं सत्यापन? 

चुनाव आयोग ने जिन दस्तावेजों की सूची जारी है, वे निम्न हैं- 

  1. केंद्र सरकार, राज्य सरकार या सार्जनिक उपक्रम द्वारा जारी किया गया कोई पहचान पत्र या पेंशन भुगतान आदेश 
  2. 1 जुलाई 1987 से पहले सरकार, स्थानीय अधिकारियों, बैंक, डाकघर, एलआईसी द्वारा जारी भारत में कोई भी पहचान पत्र
  3. जन्म प्रमाण पत्र
  4. पासपोर्ट
  5. हाई स्कूल या इंटरमीडिएट की मार्कशीट
  6. निवास प्रमाण पत्र
  7. वन अधिकार प्रमाण पत्र
  8. जाति प्रमाण पत्र
  9. नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर 
  10. राज्य या स्थानीय स्तर पर तैयार किया गया परिवार रजिस्टर 
  11. सरकार द्वारा जारी किया गया भूमि आवंटन प्रमाण पत्र

इस सूची में आधार कार्ड शामिल नहीं है। ऐसे में इसको लेकर राजनीति तेज हो गई है। विपक्ष ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है।