नई दिल्लीः बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का आदेश 25 जून को जारी किया था। चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। 

सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा दायर की गई है। एडीआर ने अपनी याचिका में चुनाव आयोग (Election Commission of India) के आदेश को मनमाना कहा है। इसके साथ ही यह भी कहा है कि इससे लाखों मतदाता वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। 

वोटर्स को देना होगा नागरिकता प्रमाण पत्र

चुनाव आयोग के निर्देशों के मुताबिक, एसआईआर के तहत जिन लोगों का नाम 2003 से पहले वोटर लिस्ट में शामिल नहीं था। ऐसे वोटर्स को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। चुनाव आयोग ने इसके लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिसमें जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, पासपोर्ट जैसे दस्तावेज शामिल हैं। हालांकि, इसमें आधार कार्ड शामिल नहीं है। ऐसे में विपक्षी दल भी चुनाव आयोग पर आरोप लगा रहे हैं कि आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है। 

एडीआर द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का आदेश संविधान के अनुच्छेद- 14,19,21, 325 और 326 का उल्लंघन करता है। इसके साथ ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 (Representation of People Act) और मतदाता पंजीकरण अधिनियम, 1960 के नियम 21 ए का भी उल्लंघन करता है। 

याचिकाकर्ता एडीआर की तरफ से चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को जारी किए गए आदेश को रद्द करने की मांग की गई है। चुनाव आयोग ने कहा है कि ऐसा न करने से लाखों मतदाता वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। याचिका में यह भी कहा गया कि यह कदम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को भी कमजोर कर सकता है। इसके अलावा संविधान के मूल ढांचे पर भी प्रहार कर सकता है। 

आधार-राशन कार्ड शामिल न करने से होगी दिक्कत

एडीआर की याचिका में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग के आदेश ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता नागरिकों के ऊपर डाल दी है जो कि पहले राज्य सरकार के ऊपर होती थी। इसमें कहा गया है कि आधार और राशन जैसे आम पहचान प्रमाण पत्रों को इसमें शामिल न करने से वंचित समुदाय और गरीब लोगों के छूट जाने की संभावना है। 

चुनाव आयोग के आदेश के तहत नागरिकों को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के साथ-साथ अपने माता-पिता की भी नागरिकता दिखानी होगी। जो कि संविधान के अनुच्छेद-326 का उल्लंघन करता है। नागरिकता प्रमाण पत्र न देने से वोटर्स को लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा जिससे वे वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। 

बिहार में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने हैं। याचिका में कहा गया है कि चूंकि 2003 से अब तक लाखों नए वोटर जुड़े हैं, ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास एसआईआर के तहत मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। ऐसे में उन्हें मतदाता के रूप में संकट का सामना करना पड़ सकता है।