नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। हालांकि, अदालत ने बिहार विधानसभा चुनाव से तुरंत पहले होने वाली इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाला बागची की पीठ ने चुनाव आयोग से कहा कि सत्यापन के लिए आधार और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज माना जाए।
ADR, RJD ने दायर की थी याचिकाएं
चुनाव आयोग के एसआईआर आदेश के खिलाफ ADR, RJD और अन्य सामाजिक संगठनों ने याचिकाएं दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा "हमारे पास उन पर (चुनाव आयोग पर) संदेह करने का कोई कारण नहीं है। वे कह रहे हैं कि उनकी साख की जाँच की जाए। मामले की सुनवाई ज़रूरी है। इसे 28 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाए। इस बीच वे मसौदा प्रकाशित नहीं करेंगे।"
चुनाव आयोग को इस मामले में 21 जुलाई तक जवाबी हलफनामा प्रस्तुत करने को भी कहा गया है। दरअसल चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन के लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है। इनमें पासपोर्ट, हाईस्कूल, इंटरमीडिएट की मार्कशीट, जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज शामिल हैं। हालांकि, आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज शामिल न होने की वजह से इस पर विवाद हो रहा है।
विपक्षी पार्टियां इसको लेकर निशाना साध रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर की गई याचिकाओं में यह तर्क दिया गया कि बिहार में गरीब लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां पर राशन कार्ड और आधार कार्ड ही मुख्य दस्तावेज हैं, जो लोगों के पास हैं। अब अगर ऐसे में वे अपने दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे तो उन्हें वोट के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव आयोग ने जो सूची जारी की है, वह "संपूर्ण" नहीं है। अदालत ने कहा कि इसलिए हमारी राय में न्याय के हित में यह होगा कि चुनाव आयोग इस सूची में आधार कार्ड, ईपीआईसी कार्ड और राशन कार्ड को भी शामिल करे। अदालत ने यह भी कहा कि यह चुनाव आयोग को ही तय करना है कि वह इन दस्तावेजों को शामिल करना चाहता है या नहीं। अगर नहीं करना चाहता है तो इसके पीछे के कारण भी बताएं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान यह भी कहा कि इस प्रक्रिया की समयसीमा काफी कम है, क्योंकि इसी साल अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं।
गौरतलब है कि बीते महीने चुनाव आयोग ने बिहार ने विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर का आदेश दिया था। आयोग ने इसके पीछे यह हवाला दिया था कि बीते 20 वर्षों में नाम जोड़ने और हटाने से डुप्लिकेट प्रविष्टियों की संभावना बढ़ जाती है।
चुनाव आयोग ने इस आदेश के बारे में कहा था कि इसका उद्देश्य बाहरी राज्यों के अवैध मतदाताओं की पहचान कर उन्हें वोटर लिस्ट से बाहर करना है। इसके अनुसार, जो वोटर 2003-04 के बाद वोटर लिस्ट में शामिल हुए हैं, उन्हें अपनी नागरकिता का प्रमाण देना है।
एडीआर समेत अन्य याचिकाओं में कहा गया था कि चुनाव आयोग का यह आदेश नागरिकों को अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए कह रहा है जबकि पहले यह काम राज्य सरकार का होता था।