नई दिल्लीः ईरान-इजराइल तनाव के बीच होर्मुज जलडमरूमध्य काफी चर्चा में है क्योंकि ईरान ने इसे तनाव के बीच बंद करने का प्रयास किया है। ईरानी संसद ने इसके लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें इस मार्ग को बंद करने का समर्थन किया गया था। हालांकि, इसका अंतिम निर्णय लेने का अधिकार ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल और देश के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के पास है। इस बीच भारत में तेल भंडारण के लिए भूमिगत चट्टानी गुफाओं व्यवस्था की चर्चा हो रही है। इन भूमिगत चट्टानों की गुफाओं में भारत ने कच्चा तेल जमा किया है। ये भूमिगत गुफाएं आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में स्थित हैं।
होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के जरूरी तेल परिवहन मार्गों में से एक है। यहां से दुनियाभर की विश्व व्यापार का लगभग 20 प्रतिशत तेल गुजरता है। अगर यह मार्ग बंद होता है इससे वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति के क्षेत्र में गहरा असर पड़ सकता है।
ईरान-इजराइल और अमेरिका के बीच जारी संघर्ष के चलते कच्चे तेल की कीमतों में भारी उछाल दर्ज किया जा रहा है। हालांकि भारत इस उतार-चढ़ाव से अधिक चिंतित नहीं है। भारतीय पेट्रोलियम और गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत ने अपने कच्चे तेल की आपूर्ति को विविध देशों में बांट दिया है जिससे चिंता की कोई खास बात नहीं है। वहीं, भारत जिन देशों से तेल मंगाता है इनमें से अधिकतर होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर नहीं गुजरते हैं। इसके अलावा भारत ने कच्चे तेल का भंडारण रणनीतिक रूप से भूमिगत चट्टानी गुफाओं में किया है जो रणनीतिक महत्व को बढ़ाती हैं।
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में कच्चे तेल का भंडारण
भारत ने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु की गुफाओं में कच्चे तेल का भंडारण किया है। इन गुफाओं में कई मिलियन मीट्रिक टन कच्चा तेल जमा है। भारत ने सामरिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) के तहत यह भंडारण किया है और ओडिशा तथा कर्नाटक में दो और ऐसी ही गुफाओं की तलाश कर रहा है।
ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष 13 जून से लगातार जारी है। हालांकि, ट्रंप के सीजफायर दावे के बाद इजराइल ने समर्थन दिया है। हालांकि, इस बीच ईरान ने फिर से इजराइल पर हमला किया है जिसको लेकर इजराइल ने कहा है कि ईरान युद्धविराम का उल्लंघन कर रहा है। ईरान दुनियाभर के तेल निर्यातकों में पहले स्थान पर है। इसलिए संघर्ष के बीच होर्मुज जलडमरूमध्य मार्ग काफी चर्चा में है क्योंकि यहीं से होकर तेल अन्य देशों में जाता है। होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। इसकी चौड़ाई 33 किलोमीटर है।
कच्चे तेल की कीमत अभी 78.93 डॉलर प्रति बैरल की है। ऐसे में अगर यह मार्ग बंद होता है तो जेपी मोर्गन और गोल्डमैन जैसे विश्लेषकों का मानना है कि इसकी कीमत 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है।
वहीं, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल का आयातक और उपभोक्ता है। भारत कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए 80 प्रतिशत तक का हिस्सा आयात से पूरा करता है और भारत में इसकी मांग बढ़ रही है।
भारत ने पश्चिमी एशिया के अलावा अन्य विकल्प तलाशे
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के मुताबिक, भारत इस संकट से निपटने के लिए कुछ हद तक लचीला बना हुआ है। भारत ने बीते वर्षों में रणनीतिक रूप से कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए पश्चिमी एशिया के अलावा अन्य विकल्प तलाशे हैं।
अमेरिका, अंगोला, ब्राजील, नाइजीरिया जैसे देश इसमें शामिल है। इन देशों से तेल स्वेज नहर, पनामा नहर और केप ऑफ गुड होप जैसे लंबे समुद्री रास्तों से आता है। इससे परिवहन का खर्च बढ़ जाता है।
इस बीच भारत ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बावजूद रूस से तेल खरीदना जारी रखा है। भारत अपने आयात को बढ़ाकर दो साल के उच्चतम स्तर 2.2 मिलियन बैरल प्रति पर ले जाने की संभावना है। विश्व स्तर पर व्यापार विश्लेषण करने वाली फर्म केप्लर की मानें तो यह सऊदी अरब और इराक से भारत की संयुक्त खरीद को पार कर जाएगा।
सऊदी अरब, इराक और रूस जैसे देशों के साथ भारत के दीर्घकालिक समझौते हैं जो आपूर्ति पूरी करते हैं। इससे भारत की भू-राजनैतिक भेद्यता कम होती है। भारत की तेल आयात करने वाली कंपनियों के बीच यह परंपरा रही है कि वे समयबद्ध तरीके से सौदा करती हैं क्योंकि तेल की खरीदारी में बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च होती है। यहीं पर काम भारत की चट्टानों में जमा तेल काम आता है। भारत में स्थित इन चट्टानों की गहराई सतह से 90 मीटर गहरी है और ये लगभग एक किलोमीटर तक फैली हुई हैं। इनकी ऊंचाई 10 मंजिला इमारत के बराबर है।
भारतीय ऊर्जा सुरक्षा की आधारशिला हैं SPR
भारत का सामरिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) भारतीय ऊर्जा सुरक्षा की आधारशिला माने जाते हैं। इनका प्रबंधन भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार लिमिटेड (ISPRL) द्वारा किया जाता है। यह पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में स्थित एलपीजी गुफा समुद्र तट से 196 मीटर गहरी है। यह दुनिया की भूमिगत तेल भंडारण सुविधाओं में सबसे गहरी है। भारत के तीनों भंडारण केंद्रों की क्षमता 5.33 मिलियन मीट्रिक टन है जबकि देश में रोजाना की खपत लगभग 5 मिलियन बैरल है।
भारत के पास वर्तमान में 5.33 मिलियन टन कच्चा तेल जमा है जो लगभग 38 मिलियन बैरल के बराबर है। ऐसे में इस भंडारण से भारत की 10 दिन की खपत पूरी हो सकती है। वहीं, जब भंडारण का दूसरा चरण पूरा हो जाता है तो मांग के आधार पर यह 22 दिन तक चल सकता है।
भारत के पास केवल इन गुफाओं में ही तेल नहीं जमा है बल्कि तेल की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों के पास भी जमा है। ऐसे में यह क्षमता और भी ज्यादा दिनों तक भारत की आपूर्ति को पूरा कर सकती है।
भारत की भंडारण क्षमता के बारे में कोटक सिक्योरिटीज के उपाध्यक्ष सुमित पोखराना ने फॉर्च्यून इंडिया को बताया कि यदि तेल मार्केटिंग कंपनियों के भंडारण को मिला दिया जाए तो यह क्षमता करीब 74 दिनों तक हो जाएगी। ऐसे में वैश्विक आपूर्ति अनिश्चितताओं के बीच भारत के पास पर्याप्त तेल भंडार होगा।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 में कोविड महामारी के दौरान जब कच्चे तेल की कीमतें तेजी से गिर गई थीं और भारत ने इस संकट का फायदा उठाकर तेल को जमीन में जमा कर दिया था। मंत्रालय के मुताबिक, इससे भारत को करीब 5,000 करोड़ रुपये हुई।
भारत को तेल भंडारण करने की क्यों पड़ी जरूरत?
भारत एक बड़ी जनसंख्या वाला देश है। इसके साथ ही भू राजनैतिक रूप से यह संवेदनशील भी है। ऐसे में गुफाएं कच्चे तेल के भंडारण के लिए एक सुरक्षित, कम लागत और कुशल प्रभावी समाधान प्रदान करती हैं। टैंकों के विपरीत इन्हें हवाई हमलों, प्राकृतिक आपदाओं और तोड़फोड़ से प्राकृतिक रूप से अधिक कुशल हैं। गुफाओं में वाष्पीकरण भी कम होता है और पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होती हैं।
ये गुफाएं युद्ध काल के दौरान काफी सुरक्षित होंगी। भारत में स्थित ये गुफाएं पूरी तरह से सील होती हैं और बाहरी सतह पर तेल के रिसाव और पानी से बचाव के लिए एक मॉनिटरिंग सिस्टम लगा होता है। भारत में इसका उपयोग साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल के दौरान शुरू हुआ था।
वहीं, दुनिया में तेल के इस तरह के भंडारण का कॉन्सेप्ट स्वीडन से आया था। बाद में इसे फिनलैंड, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने भी अपनाया।