1961 में स्थापित नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) का उद्देश्य था छात्रों को निष्पक्ष, सटीक और शोध-आधारित शिक्षा उपलब्ध कराना। चूंकि NCERT की किताबें देशभर के स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं, इसलिए ये राष्ट्रीयता और ऐतिहासिक समझ को आकार देने में अहम भूमिका निभाती हैं। यहां तक कि प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी करने वाले भी अभ्यार्थी भी NCERT को मानक समझकर पढ़ते आए हैं। समय-समय पर इसके पाठ्यक्रम पर आरोप भी लगे हैं कि यह सत्तारूढ़ दल की राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा देता रहा है। हालही में इतिहास के पाठ्यक्रम के साथ की गई राजनैतिक छेड़छाड़ ने NCERT पाठ्यक्रम की विश्वसनीयता को फिर से लाल घेरे में लाकर पटक कर दिया है।
राजस्थान के राजघरानों का आक्रोश
हाल ही में राजस्थान के कई पूर्व राजघरानों जैसे जैसलमेर, मेवाड़, बूंदी, अलवर ने NCERT की आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान पुस्तक “Exploring Society: India and Beyond” में छपे 18वीं शताब्दी के एक नक्शे पर कड़ी आपत्ति जताई। नक्शे में जैसलमेर, मेवाड़ और बूंदी को मराठा साम्राज्य का हिस्सा दिखाया गया है, जो कि तथ्यात्मक रूप से गलत है।
जैसलमेर के पूर्व राजघराने के महारावल चैतन्य राज सिंह ने NCERT की इस इरादतन शरारत को “ऐतिहासिक रूप से भ्रामक, तथ्यहीन और गंभीर रूप से आपत्तिजनक” बताया है। उनका कहना है कि इस तरह का चित्रण उनके गौरवशाली इतिहास और पूर्वजों की शौर्य गाथा को धूमिल करता है क्योंकि जैसलमेर कभी मराठों के अधीन नहीं था।
मेवाड़ राजपरिवार के सदस्य विश्वराज सिंह सहित अन्य पूर्व राजपरिवारों का भी कहना है कि उनकी रियासतों ने कभी मराठा अधीनता स्वीकार नहीं की थी और सदा स्वतंत्र शासन किया। बूंदी के गादीपति ब्रिगेडियर भूपेश सिंह ने तो साफ कहा, “1241 से लेकर 07 अगस्त 1947 तक बूंदी स्वतंत्र संप्रभु रियासत रही। हमने मुगलों, मराठों या अंग्रेजों को अपनी मातृभूमि पर कब्जा नहीं करने दिया। जो लोग झूठा इतिहास दिखा रहे हैं, उन पर कानूनी कार्यवाही होगी।”
राजपूत इतिहास की अनदेखी, पेशवाई महिमामंडन
कई इतिहासकार और बुद्धिजीवी इस बात की आलोचना कर रहे हैं कि NCERT की पुस्तकों में 1200 साल रहे राजपूत शासन के इतिहास को दो पन्नों में समेट दिया गया है, जबकि 144 साला मराठा इतिहास को 22 पन्नों में विस्तार से दिखाया गया है। 1759 में पेशवा मराठा साम्राज्य के असली प्रशासनिक और सैन्य प्रमुख थे, लेकिन राजस्थान की रियासतों पर उनके वास्तविक प्रभाव को सत्ता के इशारे पर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है।
मिशेल दानीनो, जो आईआईटी गांधीनगर (पुरातात्विक विज्ञान) में अतिथि प्रोफेसर और एनसीईआरटी की सामाजिक विज्ञान पाठ्यपुस्तकों के करिकुलर एरिया ग्रुप के प्रमुख हैं, उनकी सफाई यह है कि यह मराठा साम्राज्य का नक्शा स्थापित अकादमिक स्रोतों के आधार पर बनाया गया है, जिन पर 'पहले कभी आपत्ति नहीं उठाई गई' थी।
पत्रकार अभिषेक आनंद ने इस बाबत अपने यूट्यूब चैनल 'इंडिया इनसाइट्स' पर पड़ताल करते हुए बताया कि जिस मराठा साम्राज्य के नक्शे पर यह विवाद हो रहा है, उसे पहली बार दिल्ली में 17 जनवरी 2024 को सार्वजनिक मंच से प्रचारित किया गया था। ये मौका था शिवाजी महाराज के 350वें राज्याभिषेक को याद करने का और इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे आरएसएस के दत्तात्रेय होसबाले और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता जे साई दीपक। उस मंच से इस विवादित और भ्रामक नक्शे को दिखाकर जनमानस में इतिहास के विकृतिकरण को सामान्य साबित करने की कोशिश की गई।
इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि मराठों का प्रभाव बूंदी और कोटा तक सीमित था, जयपुर में उनकी उपस्थिति कभी-कभार ही रही। उन्होंने NCERT द्वारा दर्शाई गई भ्रामक जानकारी को “कन्वीनियेंट हिस्टरी” बताया, जो तथ्यों पर आधारित नहीं बल्कि राजनीतिक एजेंडा से प्रेरित है।
ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को हटाने का विवाद
NCERT ने हाल के संशोधनों में सिर्फ़ राजपूत इतिहास से ही छेड़छाड़ नहीं हुई बल्कि टीपू सुल्तान, हैदर अली, रज़िया सुल्तान और नूरजहाँ जैसे कई महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों को भी किताबों से हटा दिया है। यहां तक कि नए पाठ्यक्रम में आंग्ल-मैसूर युद्धों का उल्लेख भी नहीं मिलता है। NCERT की इस द्वेषपूर्ण कार्यवाही पर संसद में सवाल भी उठाए गए और शिक्षा मंत्रालय ने इन आपत्तियों पर समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति भी गठित कर दी है।
नेतृत्व और दृष्टिकोण पर सवाल
NCERT की सोशल साइंस समिति का नेतृत्व फ्रांसीसी मूल के मिशेल डेनिनो कर रहे हैं, जिनकी शिक्षा मुख्यतः गणित और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में हुई है। आलोचकों का मानना है कि इतिहास लेखन की औपचारिक शिक्षा के बगैर मिशेल डेनिनो से भारतीय इतिहास की गहरी समझ की उम्मीद करना कठिन है, और यह भी सवाल है कि स्वतंत्र भारत में कोई भारतीय मूल का योग्य और प्रशिक्षित इतिहासकार क्यों नहीं चुना गया।
पुराने विवाद और दोहरे मानदंड
NCERT का विवादों से नाता कोई नया नहीं है। 2023 में कांग्रेस ने भाजपा पर “सिलेबस रेशनलाइजेशन” के नाम पर इतिहास बदलने का आरोप लगाया, लेकिन 2008 में कांग्रेस सरकार ने खुद ‘बुद्धचरित’ को आठवीं कक्षा के सिलेबस से हटा कर नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ शामिल की थी, यह कहते हुए कि छात्रों का अकादमिक बोझ कम करना है। इस पर 250 से अधिक इतिहासकारों ने आपत्ति जताई थी। 2023-24 में बारहवीं कक्षा की इतिहास की किताब से मुग़ल दरबार और आपातकाल जैसे अध्याय हटाने पर राजनीतिक और शैक्षणिक हलकों में तीखी बहस छिड़ी, जिसे आलोचकों ने ‘चयनात्मक संपादन’ कहा। इसी तरह 2006 में भी इतिहास और सामाजिक विज्ञान की किताबों में आरएसएस, बाबरी मस्जिद विध्वंस और जाति व्यवस्था के उल्लेख को लेकर विवाद हुआ था।
पढ़ाना, न कि भटकाना
एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम केवल शिक्षा का साधन नहीं, बल्कि यह देश की सामूहिक स्मृति और सोच को आकार देने वाला माध्यम है। बच्चों का मन उस कच्चे आंगन जैसा होता है जिसपर एक बार जो छाप लग जाए, उसके निशान उम्र भर रहते हैं। इस रोशनी में देखा जाए तो NCERT की भूमिका देश के भविष्य की सोच को प्रभावित करती है। यूं भी पोस्ट-ट्रुथ के समय में सच और झूठ के बीच से तथ्य चुनना भूस के ढेर से सुई ढूंढने जैसा दुष्कर हो चुका है। अगर इस तरह से पाठ्यक्रम में तथ्यात्मक त्रुटियाँ, पक्षपातपूर्ण चित्रण या राजनीतिक एजेंडा हावी किया जाएगा, तो यह केवल इतिहास नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सोच और पहचान को भी गलत तरीके से प्रभावित कर सकता है।
भारत की विविधता और गौरवशाली इतिहास को सही, संतुलित और शोध-आधारित रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक है, ताकि आने वाले नागरिक सत्य के आधार पर अपनी समझ विकसित कर सकें, न कि किसी राजनीतिक सुविधा के अनुसार लिखी गई "कन्वीनिएंट हिस्ट्री" के सहारे।