किताब ‘ठाकुरबाड़ी’ एक अद्वितीय और दिलचस्प यात्रा है, जो गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के परिवार के इतिहास और उन घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है, जो भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डालने वाली थीं। लेखक अनिमेष मुखर्जी ने इस पुस्तक में बंगाल के पुनर्जागरण, टैगोर परिवार के सदस्य, उनके सामाजिक योगदान, और समकालीन ऐतिहासिक घटनाओं का शानदार समागम प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक टैगोर परिवार की कहानी को वृतांत के रूप में बयान करती है, जो न सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे समाज के उत्थान की दिशा में उनके योगदान को भी उजागर करती है।

इस किताब की विशिष्टता को सलाम करते हुए यह कहना चाहती हूं कि यह किताब न केवल टैगोर परिवार की सामाजिक और सांस्कृतिक गाथाओं का वर्णन करती है, बल्कि यह उन घटनाओं और ऐतिहासिक मोड़ों को भी उजागर करती है जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम और बांग्ला पुनर्जागरण से संबंधित थीं।

अनिमेष मुखर्जी ने इसे कहानी और इतिहास के मिश्रण के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे यह किताब ऐतिहासिक तथ्य के साथ-साथ साहित्यिक आनंद भी देती है। लेखक ने इतिहास की घटनाओं को एक परिवार के नजरिए से जोड़ा है, जो इसे और भी व्यक्तिगत और गहरे तरीके से प्रस्तुत करता है।किताब में रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन और उनके परिवार के सदस्यों की भूमिकाओं के अलावा ऐतिहासिक हस्तियों जैसे महात्मा गांधी, राजा राममोहन राय, और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों की चर्चा की गई है।

ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन

‘ठाकुरबाड़ी’ में प्लासी युद्ध, बंगाल का अकाल, और अन्य ऐतिहासिक घटनाओं को विस्तार से वर्णित किया गया है तथा यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए भी है जो भारतीय इतिहास, संस्कृति और साहित्य में गहरी रुचि रखते हैं, साथ ही जो टैगोर परिवार के अद्भुत योगदान को समझना चाहते हैं।

लेखक अनिमेश ने रवींद्रनाथ टैगोर और उनके परिवार के इतिहास को एक पारिवारिक संदर्भ में प्रस्तुत किया है। उन्होंने पुस्तक की भूमिका में यह स्पष्ट किया है कि ये घटनाएं पहले से कहीं न कहीं प्रामाणिक रूप से दर्ज हो चुकी हैं, लेकिन उन्हें एक किस्सागोई के रूप में पेश किया गया है ताकि पाठकों को बोझिल न लगे। पुस्तक में टैगोर परिवार की जड़ों, महत्वपूर्ण घटनाओं और व्यक्तित्वों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।

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लेखक ने टैगोर परिवार की ऐतिहासिक शुरुआत को 1700 के दशक की शुरुआत में पंचानन कुशारी से जोड़ा है और बताया है कि कैसे उनका परिवार बंगाल में बसे। पुस्तक में प्लासी के युद्ध, बंगाल के अकाल, और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष जैसे मुद्दों पर गंभीर विचार किए गए हैं। अनिमेश ने बंगाल के अकाल का जिक्र करते हुए यह बताया कि यह अकाल प्राकृतिक कारणों से नहीं, बल्कि अंग्रेज़ों की नीतियों के कारण हुआ था, जिसने लाखों लोगों की जान ले ली।

रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन के कुछ दिलचस्प किस्से भी

इसके अलावा, रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन के कुछ दिलचस्प किस्सों को भी प्रस्तुत किया गया है, जैसे उनके प्रेम संबंध, परिवार में उनके रिश्ते, और उनके जीवन के महत्वपूर्ण मोड़। लेखक ने इन घटनाओं को इस तरह प्रस्तुत किया है कि पाठक इतिहास को एक नए दृष्टिकोण से देख सकें। इन सभी घटनाओं और व्यक्तित्वों को अनिमेष ने अपनी पुस्तक में दिलचस्प और संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया है, जो रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन और समय को समझने का एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करता है।

इस पुस्तक में अनिमेष ने कवियों, उनके प्रेम संबंधों, और भारतीय समाज पर गहरी विचारधारा प्रस्तुत की है। 'ज्यों ज्यों प्रेम खोता गया' अध्याय में उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर और उनकी प्रेमिका, लेडी रानू के रिश्ते का जिक्र किया। रवींद्रनाथ ने रानू को एक रत्नजड़ित अँगूठी दी थी, जो उनके निधन के बाद खो गई थी, और पुलिस मामले में अँगूठी बरामद होने के बाद भी रानू को इसे प्राप्त करने में कई साल लग गए। रानू ने अपने और रवींद्रनाथ के रिश्ते को खास और अलग बताया।

‘माताजी से आध्यात्मिक पत्नी तक’ अध्याय में महात्मा गांधी से जुड़ी एक अफवाह का हवाला देते हुए लेखक ने इस पर सवाल उठाए। प्रोफेसर ग्रीन ने गांधी और सरला के संबंधों के बारे में कुछ दावा किया था, जिसे लेखक ने अस्वीकार किया, और सरला के योगदान को सही मायने में पहचाना।

लेखक ने रवींद्रनाथ के शांतिनेकतन संस्थान की स्थापना पर भी बात की, जो उनके पूर्वजों के सपनों को साकार करने का एक प्रयास था। उन्होंने स्वर्णकुमारी देवी की भी सराहना की, जो बंगाल की पहली महिला उपन्यासकार मानी जाती हैं और जिन्होंने महिलाओं के लिए नई राहें खोलीं। स्वर्णकुमारी के योगदान को लेखक ने सम्मानित किया, और यह भी साबित किया कि वह महिलाओं के लिए उच्च दर्जे की प्रेरणा थीं।

'कोलकाता से अलीनगर' अध्याय में बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर, विशेष रूप से मलमल कपड़े की महिमा का जिक्र किया गया। मलमल, जिसे ‘बुनी हुई हवा’ कहा जाता था, की कारीगरी अब विलुप्त हो चुकी है, लेकिन एक समय में यह दुनिया भर में प्रसिद्ध थी। यह कपड़ा इतना बारीक होता था कि अंगूठी के छल्ले से पूरा थान निकाला जा सकता था।

भारतीय रसोई और भोजन का उल्लेख

'ठाकुरबाड़ी' में भारतीय रसोई और भोजन पर भी ध्यान दिया गया है। लेखक ने 1902 में आयोजित एक घरेलू दावत का मेन्यू साझा किया, जिसमें विविध प्रकार के भारतीय व्यंजन थे। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने रवींद्रनाथ टैगोर और उनके परिवार, भारतीय समाज और संस्कृति के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है।

इस पुस्तक में टैगोर परिवार के योगदान और उनके समाज में प्रभाव पर विस्तार से चर्चा की गई है। टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था, जिसने कोलकाता में सांस्कृतिक, सामाजिक और बौद्धिक परिवर्तन लाए। द्वारकानाथ टैगोर ने भारतीय और यूरोपीय व्यापारियों के बीच पहली साझेदारी की स्थापना की और जोरासांको को व्यवसाय और सामाजिक जुड़ाव का केंद्र बनाया। उनके बाद, हेमेंद्रनाथ टैगोर ने परिवार की संपत्ति और शिक्षा की दिशा को आकार दिया, विशेष रूप से अपनी बेटियों को कला और शिक्षा के क्षेत्र में प्रोत्साहित किया, जो उस समय एक असामान्य कदम था।

रवींद्रनाथ टैगोर, जिन्हें बंगाल पुनर्जागरण के मुकुट रत्न के रूप में जाना जाता है, ने भारतीय और पश्चिमी विचारों का समागम किया और अपने लेखन और कलात्मक कार्यों के माध्यम से समाज में गहरी छाप छोड़ी। उनका लेखन सामाजिक न्याय, मानवतावाद और दार्शनिक विचारों से भरपूर था। उन्होंने भारतीय और पश्चिमी सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया और अपने साहित्यिक योगदान से बंगाली साहित्य में क्रांति ला दी। उनकी कविता और गद्य में समकालीन और कालातीत विचारों का मिलाजुला रूप था, और उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत और शेक्सपियर के प्रभाव से अपने साहित्यिक दृष्टिकोण को विस्तृत किया।

शिक्षा के क्षेत्र में टैगोर परिवार का योगदान

टैगोर परिवार ने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। गोपीमोहन ने हिंदू कॉलेज की स्थापना में मदद की, जो बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज के रूप में विकसित हुआ। यह कॉलेज भारतीय शिक्षा व्यवस्था से असंतुष्ट लोगों के प्रयासों का परिणाम था, और यहाँ पश्चिमी विज्ञान और कला की पढ़ाई शुरू की गई, जो भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव था। इस कॉलेज ने भारतीय समाज के बुद्धिजीवियों और महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया।

कुल मिलाकर, टैगोर परिवार ने न केवल व्यापार और शिक्षा के क्षेत्र में, बल्कि समाज सुधार, साहित्य, कला और सांस्कृतिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, और उनकी सोच और दृष्टिकोण आज भी भारतीय समाज को प्रभावित कर रहे हैं।

Rabindranath Tagore
Photograph: (IANS)

इस किताब में रवींद्रनाथ टैगोर और उनके परिवार की बहुमुखी कृतियों और योगदानों का विस्तृत वर्णन किया गया है। अबनींद्रनाथ टैगोर, रवींद्रनाथ के भतीजे, 20वीं सदी के बंगाल में कला और संस्कृति के अग्रदूत थे। उन्होंने भारतीय कला में स्वदेशी विचार को बढ़ावा दिया और अपनी कृतियों के माध्यम से स्वतंत्र भारत की कल्पना की। उनकी प्रसिद्ध कृति "भारत माता" को राष्ट्रवादी सोच का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, वे एक लेखक भी थे और उनकी बच्चों की किताबें बंगाली साहित्य का अहम हिस्सा मानी जाती हैं।

प्रेम में गिरफ्तार अंग्रेज की मदद वाला किस्सा

किताब में रवींद्रनाथ टैगोर के दादा, द्वारकानाथ टैगोर, की उदारता और उनके बड़े दिल के किस्से भी शामिल हैं। एक दिलचस्प कहानी में, द्वारकानाथ ने एक अंग्रेजी फौजी की मदद की, जो अपनी प्रेमिका से विवाह के लिए पैसे जुटाने में असमर्थ था। द्वारकानाथ ने बिना कोई दस्तखत किए उसे 10,000 रुपये दिलवाए। इसके अलावा, टैगोर परिवार की अंग्रेजों के प्रति नजदीकियों और 1857 के बाद के बदलावों पर भी चर्चा की गई है।

रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जमींदारी कार्यों के दौरान किसानों की स्थिति सुधारने के लिए कई कदम उठाए, जैसे कि माइक्रोफाइनेंस क्रेडिट सिस्टम की शुरुआत, जिससे किसानों को कम ब्याज दर पर कर्ज मिल सका। इस पहल से प्रेरित होकर मोहम्मद यूनुस ने बाद में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। हालांकि, जब इस पहल ने काम करना शुरू किया, तो कवि के खिलाफ विरोध शुरू हुआ, और कहा गया कि वह हिंदुओं के खिलाफ काम कर रहे हैं, जबकि उनका उद्देश्य किसानों की स्थिति सुधारना था।

किताब में महिलाओं की भूमिका को भी महत्वपूर्ण रूप से दिखाया गया है, विशेष रूप से ज्ञानदानंदिनी की कहानी, जो यह दिखाती है कि कैसे महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकती हैं और समाज में अपनी पहचान बना सकती हैं।

कुल मिलाकर, यह किताब टैगोर परिवार के इतिहास, उनके योगदानों और भारतीय समाज के अनजाने पहलुओं को उजागर करती है, जो सामान्य रूप से नहीं पढ़ाए जाते। यह किताब भारतीय इतिहास, समाज और संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने में मदद करती है।

ठाकुरबाड़ी पुस्तक रबींद्रनाथ टैगोर के परिवार की सामाजिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक भूमिका को उजागर करती है। लेखक अनिमेष ने इस किताब में टैगोर परिवार के विभिन्न पहलुओं को दिलचस्प और विस्तृत तरीके से प्रस्तुत किया है। यह किताब न केवल टैगोर परिवार के सदस्यों की जीवनगाथाओं को साझा करती है, बल्कि भारतीय समाज, महिलाओं की स्थिति, और समाज में बदलावों पर भी प्रकाश डालती है।

किताब में रबींद्रनाथ टैगोर के परिवार के इतिहास, उनकी जमींदारी, और समाज सुधारों के बारे में जानकारी मिलती है। खासतौर पर, रबींद्रनाथ के दादा द्वारकानाथ टैगोर और उनके योगदान को प्रमुख रूप से चित्रित किया गया है। टैगोर परिवार के द्वारा किए गए समाज सुधार, स्वदेशी आंदोलन, और किसानों की स्थिति सुधारने के प्रयासों को विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा, रबींद्रनाथ टैगोर और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के द्वारा किए गए कार्यों को लेकर कई रोचक किस्से प्रस्तुत किए गए हैं।

महिलाओं के योगदान की भी बात

पुस्तक में ठाकुरबाड़ी की महिलाओं के योगदान को भी विशेष रूप से रेखांकित किया गया है, जिन्होंने न केवल फैशन की दुनिया में बल्कि सामाजिक सुधार में भी अहम भूमिका निभाई। उदाहरण स्वरूप, रवींद्रनाथ की भाभी ज्ञानदानंदिनी ने साड़ी पहनने के तरीके को आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया, जो आज भी मान्यता प्राप्त है।

इतिहास के इस दृष्टिकोण से हमें टैगोर परिवार के योगदान को समझने का एक नया दृष्टिकोण मिलता है। लेखक की आकर्षक लेखन शैली और किताब में शामिल चित्रों ने इसे और भी रोचक बना दिया है। इस किताब में इतिहास, समाज, और संस्कृति के जुड़े पहलुओं को बखूबी तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

ठाकुरबाड़ी पुस्तक, अनिमेष मुखर्जी द्वारा लिखी गई, रबींद्रनाथ टैगोर के परिवार के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक योगदान को गहराई से प्रस्तुत करती है। यह कृति टैगोर परिवार की परंपरा, इतिहास, और उनके समाज सुधारों के प्रयासों को विस्तार से समझाती है, जो अन्य पुस्तकों में कम ही मिलते हैं। लेखक ने इसे सहज और सरल भाषा में लिखा है, जिससे पाठकों को आसानी से समझने में मदद मिलती है। अनिमेष ने अपनी लेखन शैली में अनौपचारिकता और आज के दौर के शब्दों का प्रयोग किया है, ताकि जानकारी बोझिल न लगे और पाठक इसे रोचक तरीके से पढ़ सकें।

पुस्तक की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें दुर्लभ और ऐतिहासिक चित्रों का समावेश किया गया है, जो इसके पठनीयता को और भी बढ़ाते हैं। लेखक ने टैगोर परिवार के जीवन को काव्यात्मक तरीके से प्रस्तुत किया है, जिससे पाठक को ऐसा महसूस होता है जैसे वे उस समय और स्थान पर हैं जहाँ यह सब घटित हो रहा है। टैगोर परिवार के व्यक्तिगत जीवन, उनके प्रेम, संघर्ष, और सामाजिक सुधार के प्रयासों की कहानियाँ भी इस पुस्तक में खूबसूरती से शामिल हैं।

यह पुस्तक केवल ऐतिहासिक जानकारी नहीं देती, बल्कि टैगोर परिवार के सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान, महिला शिक्षा, दलित उत्थान, और सामाजिक न्याय के प्रति उनके प्रयासों को भी उजागर करती है। लेखक का शोधात्मक दृष्टिकोण और स्पष्ट भाषा शैली इसे एक दिलचस्प और पठनीय कृति बनाती है, जो पाठकों को टैगोर परिवार की गहरी और समृद्ध धरोहर से परिचित कराती है।

पुस्तक का नाम :- ‘ठाकुरबाड़ी’
लेखक का नाम :- अनिमेष मुखर्जी
प्रकाशक का नाम :- पेंगुइन स्वदेश प्रकाशन, एमजी रोड गुरुग्राम, हरियाणा , भारत
पुस्तक का मूल्य :- 299
समीक्षक का नाम :- डॉ कुमारी उर्वशी, सहायक प्राध्यापिका हिंदी विभाग, रांची विमेंस कॉलेज,रांची, झारखंड, 834001

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