इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस को लेकर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह सरकारी मेडिकल कॉलेजों, प्रांतीय चिकित्सा सेवाओं (PMS), और जिला अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस रोकने के लिए एक ठोस नीति बनाए। इसके साथ ही कोर्ट ने प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह पुष्टि करने को कहा है कि 1983 के शासनादेश का पूरी तरह पालन किया जा रहा है।
यह मामला तब चर्चा में आया जब एक शिकायतकर्ता, रूपेश चंद्र श्रीवास्तव, ने उपभोक्ता फोरम में मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, प्रयागराज के प्रोफेसर डॉ. अरविंद गुप्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज की। शिकायत में आरोप लगाया गया कि डॉ. गुप्ता ने एक प्राइवेट अस्पताल में गलत इलाज किया।
हाईकोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि सरकारी डॉक्टरों द्वारा मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में रेफर करना एक गंभीर समस्या बन गई है। उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई कि सरकारी डॉक्टर, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया है, अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं और पैसे के लिए मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में भेज रहे हैं।
सरकारी आदेश का पालन सुनिश्चित करने का निर्देश
2 जनवरी 2025 को हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि क्या सरकारी मेडिकल कॉलेजों के डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की अनुमति है। इसके जवाब में, राज्य के वकील ने 8 जनवरी को बताया कि 6 जनवरी 2025 को प्रमुख सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य और शिक्षा ने सभी जिलाधिकारियों को 30 अगस्त 1983 के शासनादेश का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। इस शासनादेश के अनुसार, सरकारी डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की अनुमति नहीं है, इसके बदले उन्हें सरकार द्वारा नॉन-प्रैक्टिसिंग भत्ता (NPA) दिया जाता है।
कोर्ट ने व्यक्तिगत हलफनामा मांगा
हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य और शिक्षा को दो सप्ताह के भीतर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह पुष्टि करने का आदेश दिया है कि 1983 के शासनादेश का पूरी तरह पालन हो रहा है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि केवल राज्य के मेडिकल कॉलेजों में नियुक्त डॉक्टर ही नहीं, बल्कि प्रांतीय चिकित्सा सेवा (PMS) और जिला अस्पतालों में नियुक्त डॉक्टरों पर भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने से रोक लगाई जाए। कोर्ट ने इस मामले में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 10 फरवरी की तारीख तय की गई है।