प्रयागराज: महाकुंभ मेला की शुरुआत 13 जनवरी से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होने जा रही है। 26 फरवरी (महाशिवरात्रि) तक यह भव्य आयोजन चलेगा। 45 दिनों तक चलने वाले इस धार्मिक उत्सव में देश और दुनिया के अन्य हिस्सों से 40 करोड़ से अधिक लोगों के आने की उम्मीद है। यह एक तरह से दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है।

इस साल का कुंभ मेला बहुत विशेष है। जानकार बताते हैं कि 144 साल बाद ग्रह-नक्षत्र के विशिष्ट खगोलीय संयोग से ये कुंभ और खास हो गया है। इसलिए इसे महाकुंभ कहा जा रहा है। महाकुंभ के दौरान देश और दुनिया से लाखों-करोड़ों श्रद्धालु और तीर्थयात्री अपने पापों को धोने और मोक्ष प्राप्त करने की उम्मीद में प्रयागराज में पवित्र स्नान करेंगे। आईए जानते हैं महाकुंभ की सदियों की यात्रा और इतिहास के बारे में...

अर्ध कुंभ, कुंभ और महाकुंभ...क्या है अंतर

कुंभ, अर्ध कुंभ और महाकुंभ...तीन तरह के आयोजन होते हैं। अर्द्धकुंभ मेले का आयोजन हर छह साल में होता है। इसका आयोजन केवल प्रयागराज और हरिद्वार में किया जाता है। वहीं, कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज और हरिद्वार सहित नासिक और उज्जैन में होता है। इसे ऐसे समझिए कि असल में कुंभ मेला हर तीन साल में रोटेशन में देश में आयोजित होता है। एक स्थान पर कुंभ आयोजित होने के बाद अगली बार उसी स्थान पर आयोजन का यह चक्र 12 साल बाद आता है। कुंभ मेले के आयोजन के स्थान को निर्धारित करने में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।

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ग्रहों और नक्षत्रों की बेहद विशिष्ट स्थिति में आयोजित होने वाले कुंभ को महाकुंभ कहा जाता है। यही वजह से इस बार यानी 2025 के आयोजन को महाकुंभ कहा जा रहा है। कुंभ या महाकुंभ की शुरुआत कब से हुई, या पहला कुंभ मेला किस साल लगा, इसे लेकर कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

हिंदू विद्वानों के अनुसार कुंभ मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक विशिष्ट स्थिति में होते हैं लेकिन जब बृहस्पति मकर राशि में और सूर्य व चंद्रमा कुछ अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं, तब महाकुंभ का संयोग बनता है। कुल मिलाकर यह दुर्लभ खगोलीय घटना और इसकी गणना ही होती है, जो कुंभ मेले को विशेष बनाकर महाकुम्भ बना देती है।

कुंभ से जुड़े पौराणिक कथा की बात करें तो इसका जुड़ाव सागर मंथन की कहानी से मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से मिले अमृत की बूंदे जिन चार जगहों पर गिरीं, वहीं कुंभ का आयोजन होता है। ये जगह हैं- प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। इस कथा का वर्णन विष्णु पुराण, कूर्म पुराण, स्कंद पुराण, भागवत पुराण आदि में मिलता है। इसके अलावा कुंभ से जुड़ी कई दंतकथाएं भी प्रचलित हैं।

महाकुंभ मेला का इतिहास

ऐसा भी माना जाता है कि आठवीं शताब्दी के महान हिंदू दार्शनिक और संत आदि शंकराचार्य ने साधुओं, धार्मिक नेताओं की नियमित सभाओं को आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित किया था। आदि शंकराचार्य ने मठ प्रणाली और 13 अखाड़ों की भी शुरुआत की। कई जानकार मानते हैं कि आठवीं शताब्दी के बाद से विभिन्न अखाड़ों के साधु शुभ दिनों पर एक विशिष्ट समय पर शाही स्नान (पवित्र स्नान) में भाग लेने के लिए प्रयागराज में एकत्र होते रहे हैं।

वैसे कुंभ मेले का संदर्भ चीनी भिक्षु जुआनजैंग (Xuanzang) के विवरण में भी पाया जा सकता है। इन्होंने राजा हर्षवर्द्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ईस्वी में भारत का दौरा किया था। अर्ध कुंभ मेले का आयोजन हर तीन साल में बारी-बारी से हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में नदियों के तट पर किया जाता है। प्रयागराज में हर 12 साल में कुंभ का आयोजन किया जाता है।

'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार 9वीं से 18वीं शताब्दी तक महीने भर चलने वाले कुंभ मेले का आयोजन अखाड़ों द्वारा किया जाता था। इस दौरान शाही स्नान को लेकर विवाद भी इन अखाड़ों के बीच नजर आता रहा है। उन दिनों में कई अखाड़ों के बीच हिंसक झड़पें भी हुई हैं। यह विवाद इसे लेकर होता था कि किस अखाड़े को पहले स्नान का मौका मिलना चाहिए। चूकी अखाड़े ही मिलकर इसका फैसला लेते थे, ऐसे में एक-दूसरे से ऊपर दिखाने की कोशिश इन विवादों की जड़ होती थी।

Prayagraj: Sadhus (holy men) of the Panchayati Mahanirvani Akhara, adorned with bhasma (sacred ash), perform during 'Peshwai,' a religious procession ahead of the Maha Kumbh Mela 2025 in Prayagraj on Thursday, January 02, 2025. (Photo: IANS) फोटो- IANS

आज भी स्नान के आदेश अखाड़ों द्वारा ही तय किए जाते हैं लेकिन अधिकारियों द्वारा इसे व्यवस्थित बना दिया गया है। कई इतिहासकारों का मानना है कि कुंभ मेले के जिस रूप में हम आज जानते हैं उसकी शुरुआत 19वीं सदी के अंत या 20वीं सदी के प्रारंभ में हुई होगी। साल 2019 में, किन्नर अखाड़ा नाम से 14वें संप्रदाय ने पवित्र स्नान में भाग लिया और इस बार भी यह उत्सव का हिस्सा बना रहेगा।

ब्रिटिश शासन के दौरान कुंभ मेला

इतिहास बताता है कि कुंभ मेले का आयोजन ब्रिटिश शासन के दौरान भी जारी रहा। उस समय ब्रिटिश शासन इस धार्मिक आयोजन से संबंधित इंतजामों की देखरेख करता था। 19वीं सदी के अंत में, इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में कुंभ मेला धार्मिक गतिविधियों के माध्यम से राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ावा देने के एक मंच के रूप में भी उभरा।

20वीं सदी की शुरुआत से ही भारतीय नेताओं ने कुंभ मेले में राष्ट्रवादी विचारों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया था।

इतिहासकार कामा मैकलीन ने अपनी पुस्तक पिलग्रिमेज एंड पावर: द कुंभ मेला इन इलाहाबाद, 1765-1954 (Pilgrimage and Power: The Kumbh Mela in Allahabad, 1765-1954) में लिखा है, 'जैसे-जैसे राष्ट्रवाद विकसित हुआ...मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय और पुरूषोत्तम दास टंडन जैसी हस्तियों की वजह से इलाहाबाद राजनीति का केंद्र बना, और इसे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा दिलाई। इससे इस तीर्थयात्रा को एक और आयाम मिला।'

कई रिपोर्टों में कहा गया है कि हिंदू संन्यासी 1907 में मेले के दौरान स्वदेशी और राष्ट्रवाद का प्रचार कर रहे थे। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार 1930 के दशक तक कांग्रेस नेता सविनय अवज्ञा के विचार को फैलाने के लिए कुंभ मेले का इस्तेमाल कर रहे थे।

इससे ये धार्मिक सभाएँ स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने का आधार बनीं। सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्सेज एंड ट्रेनिंग (सीसीआरटी) के अनुसार महात्मा गांधी ने भी 1918 में महाकुंभ मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

साल-दर-साल कुंभ की बढ़ती लोकप्रियता

कुंभ मेले को लेकर बहुत पुराना इतिहास मौजूद नजर नहीं आता लेकिन पिछले करीब 70-80 सालों के आंकड़े बताते हैं कि इसमें हिस्सा लेने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती रही है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार 1966 के कुंभ में पांचवें स्नान के दिन यानी माघ पूर्णिमा पर सात लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने पवित्र स्नान किया था।

वहीं, 1977 में महाकुंभ मेला लगा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान आयोजित इस महाकुंभ में 19 जनवरी को पवित्र स्नान के लिए करीब एक करोड़ लोग प्रयागराज आए थे।

ऐसे ही 1989 में 3,000 एकड़ क्षेत्र में आयोजित कुंभ में 1.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया था। तब इसे दुनिया में किसी एक जगह पर सबसे ज्यादा लोगों के जमावड़े के लिए गिनीज वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया था।

2025 का महाकुंभ मेला 4,000 हेक्टेयर में फैला होगा। इसमें भक्तों और तीर्थयात्रियों के लिए टेंट सिटी बसाया गया है। कई अत्याधुनिक चीजों की मौजूदगी नजर आएगी। भीड़ पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी और एआई-संचालित कैमरे लगाए गए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि 40 करोड़ से ज्यादा लोग इस दौरान महाकुंभ में हिस्सा लेंगे।