आप जब राजधानी में राजेन्द्र प्रसाद रोड से जनपथ की तरफ बढ़ते हैं, तो आपको सड़क की बायीं तरफ मिलता है डॉ आंबेडकर फाउंडेशन। इधर लगभग रोज ही कोई अहम सम्मेलन या कार्यक्रम आयोजित हो रहा होता है। दरअसल यह जनपथ की 13,15,17,19, 21 नंबर के बंगलों को सामहित करके खड़ा किया गया था। इसके बनने के कारण एक उस शख्स का बंगला भी इतिहास के पन्नों में दफन हो गया जहां रहते थे मंडल कमीशन के अध्यक्ष बिन्देशवरी प्रसाद मंडल। उन्हें बहुत सारे लोग बी.पी. मंडल के नाम से भी जानते हैं। उनके बंगले का नंबर 21 जनपथ था।
दरअसल 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के शरद यादव, लालू यादव, नीतीश कुमार, राम विलास पासवान जैसे बहुत सारे नेता चुनाव जीतकर दिल्ली आये। केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। इसके प्रधानमंत्री थे मोरारजी देसाई। बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद सरकार कर्पूरी ठाकुर की बनी। कर्पूरी ठाकुर ने राज्य की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए 20 फीसदी आरक्षण का कानून बना दिया। इसके बाद केन्द्रीय सेवाओं में भी पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की मांग उठने लगी।
मंडल कमीशन का गठन कब हुआ था?
मोरारजी देसाई सरकार ने 20 दिसंबर 1978 को मधेपुरा से लोकसभा चुनाव जीतकर आये सांसद बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में एक पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया। इसे मंडल आयोग भी कहा गया। जनवरी 1979 में मंडल आयोग ने अपना काम शुरू किया। मंडल जी की अध्यक्षता में बने इस कमीशन के बाकी सदस्य थे दीवान मोहन लाल, आर.आर. भोले, दीनबंधु साहू और के. सुब्रमण्यम।
मंडल जी को लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने पर 21 जनपथ का बंगला अलॉट हुआ। जनपथ में बंगले कैबिनेट मंत्री को मिलते हैं। इसमें छह से आठ कमरों के अलावा आगे पीछे बहुत बड़ा लॉन होता है। बंगले के पिछले भाग में सर्वेंट फ्लैट भी होते हैं। वे राजधानी में मंडल कमीशन के कामकाज में व्यस्त रहते। मंडल कमीशन को दफ्तर 15 जनपथ में मिला।
किस-किससे मिलते थे बी.पी. मंडल?
उन्हें जब अपने काम से फुर्सत मिलती तो वे मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण और प्रखर समाजवादी नेता और सांसद मधु लिमये के साथ खास तौर पर मिला-जुला करते थे। जाहिर है, ये सब समाजवादी आंदोलन से जुड़े नेता थे, इसलिये इनमें घनिष्ठता होना लाजिमी ही था। मंडल जी नार्थ एवेन्यू में राजनारायण जी के सरकारी आवास में लगातार पहुंचते।
हिन्दुस्तान टाइम्स के सीनियर एडिटर रहे अरुण कुमार भी उस दौर में मंडल जी से उनके 21 जनपथ वाले बंगले में इंटरव्यू करने के लिये कई बार गये थे। संयोग से मंडल जी की तरह अरुण कुमार भी मधेपुरा से आते हैं। मंडल जी 1967 से 1970 और फिर 1977 से 1979 तक लोकसभा के सदस्य रहे।
मंडल जी जब पहली बार दिल्ली आये तो समाजवाधी आंदोलन के शिखर नेता राम मनोहर लोहिया 7 गुरुद्वारा रकाबगंज रोड पर रहते थे। तब दोनों लोकसभा में विपक्ष की आवाज थे। हालांकि बाद में दोनों में दूरियां हो गई थीं। ये सरकार को तमाम मसलों पर घेरने लगे।
बी. पी. मंडल के साथ उनका परिवार भी
मंडल जी के साथ 21 जनपथ में उनका परिवार भी रहता था। तब उनके पुत्र मणीन्द्र कुमार मंडल बहुत छोटे थे। वे आगे चलकर मधेपुरा से विधायक भी रहे। वे अब पटना में रहते हैं। अपने पिता के मंडल कमीशन के अध्यक्ष के दिनों को याद करते हुए मणीन्द्र कुमार एक एल्बम दिखाते हैं जिसमें उनके पिता मंडल कमीशन की रिपोर्ट के साथ खड़े हैं।
वे एक इंटरव्यू में अपने पिता के “व्यस्त कार्यक्रम” को याद करते हुए बताते हैं कि वे रिपोर्ट के लिए देश भर में बड़े पैमाने पर यात्रा करते थे। वे कहते हैं, “मेरे पिता हमें बताते थे कि कैसे वे कुछ राज्यों में कई राजपूत परिवारों से मिले और उन्हें उनकी खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण ओबीसी श्रेणी में डाल दिया। रिपोर्ट में एक भी उच्च जाति विरोधी शब्द नहीं है।”
मणीन्द्र कहते हैं, ”साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि रिपोर्ट को कुछ लोगों द्वारा योग्यता विरोधी और उच्च जाति विरोधी बताकर बदनाम किया गया है।”
समाजवादियों के साथ मुलाकात
मंडल जी मंडल कमीशन के अध्यक्ष के रूप में देश भर की विधानसभाओं के सदस्यों से मिल रहे थे। वे सरकारी नौकरियों में आरक्षण के सवाल पर निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की राय जानना चाह रहे थे। वे इसी क्रम में दिल्ली में महानगर परिषद के सदस्यों से भी मिल रहे थे। तब तक दिल्ली में विधानसभा नहीं थी।
मंडल जी को दिल्ली विधानसभा में डॉ. राजकुमार जैन, ब्रजमोहन तूफान,सांवल दास गुप्ता जैसे समाजवादी विचारधारा से जुड़े महानगर परिषद के सदस्यों से मिलना सुखद लग रहा था। रामजस कॉलेज में लंबे समय तक पढ़ाते रहे डॉ. राज कुमार जैन ने बताया कि मंडल जी धीर-गंभीर इंसान थे। वे अपने काम को बड़ी ही जिम्मेदारी से अंजाम दे रहे थे। तब की दिल्ली की 57 सदस्यीय महानगर परिषद के अधिकतर सदस्य सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के खिलाफ थे।
कहते हैं कि दिल्ली महानगर परिषद के जाट सदस्य भी आरक्षण के हक में नहीं थे। मंडल जी के 21 जनपथ स्थित बंगले में दिल्ली महानगर परिषद के सदस्यों के अलावा बहुत सारे राजनीतिक कार्यकर्ता, लेखक, पत्रकार वगैरह भी आते-जाते थे। मंडल जी के घर के दरवाजे कभी बंद नहीं होते थे। फिर उस दौर में नेता जनता के बीच में ही रहते थे। उनकी सुरक्षा को लेकर कोई बात ही नहीं होती थी। हां, पंजाब में आतंकवाद के दौर के बाद सब-कुछ बदल गया।
कौन थे सांवल दास गुप्त?
सोशल वर्कर तेज सिंह जगलान कहते हैं कि सावंल दास गुप्त दिल्ली में समाजवादी आंदोलन के चर्चित चेहरे थे। वे बाद में चंद्रशेखर जी के सानिध्य में सक्रिय रहे। सावंल दास की स्मृति में दक्षिण दिल्ली के सादिक़ नगर में सांवल नगर की एक कॉलोनी भी है। जगलान जी यह भी कहते हैं कि जाट नेतृत्व ने मंडल कमीशन में आरक्षण का विरोध किया था।
बहरहाल, मंडल कमीशन ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। तब जनता पार्टी तार-तार हो चुकी थी और केन्द्र में इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बन गईं थीं। जाहिर है, मंडल कमीशन की सरकार को रिपोर्ट सौंपने के बाद मंडल जी ने 21 जनपथ के अपने सरकारी आवास को भी छोड़ दिया।
मंडल कमीशन को इंदिरा जी की सरकार ने दो एक्सटेंशन भी दिए। इस बात के लिए मंडल जी ने इंदिरा जी का रिपोर्ट में जिक्र भी किया है। हालांकि इंदिरा जी और राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान इस रिपोर्ट पर कोई एक्शन नहीं हुआ।।
अब क्या है 21 जनपथ पर?
मंडल कमीशन के अध्यक्ष बी.पी. मंडल जिस 21 जनपथ के बंगले में रहते थे, वहां आगे चलकर डॉ आंबेडकर फाउंडेशन की स्थापना हुई। जैसा कि पहले बताया गया है। अब पूरा का पूरा कम्पलेक्स 15 जनपथ के नाम से ही जाना जाता है। यह तब की जनपथ की 13,15,17,19, 21 नम्बर कोठियों का समूह है।
इसी 15 जनपथ पर बाबा साहब के परम सहयोगी भाऊराव कृष्णजी गायकवाड रहे। वे दो बार रिपब्लिकन पार्टी के सांसद भी रहे। उन्होंने भी बाबा साहब के साथ 14 अक्तूबर 1956 को बुद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। तो कह सकते हैं कि भारत में दबे-कुचलों के हक में जीवनभर संघर्ष करने वाली दो महान शख्सियतें- डॉ आंबेडकर तथा बी.पी. मंडल से 15 जनपथ का गहरा संबंध रहा।
इसी जगह कई सालों तक बाबा साहब के परम सहयोगी होतीलाल पिपल भी रहे। उन्होंने ही बाबा साहेब के 6 दिसंबर, 1956 को निधन का समाचार आकाशवाणी को दिया था। वे दिन में बाबा साहब के साथ ही रहते थे। होती लाल पिपल 5 दिसंबर, 1956 की रात को बाबा साहेब के अलीपुर रोड के घर से निकले। वे सुबह बाबा साहब के घर पहुंचे तो बाबा साहब चल बसे थे। वे बाबा साहब के बंगले में सुबह पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे।
पिपल जी के पुत्र डॉ रविन्द्र कुमार ने बताया कि बाबा साहेब के पार्थिव शरीर को सफदरजंग हवाई अड्डे पहुंचा कर उनके पिता फिर 26 अलीपुर रोड आए तो बाबा साहब का पैट डॉग टौबि भी मृत मिला।
21 जनपथ पर और कौन-कौन रहे?
मंडल जी से पहले 21 जनपथ पर प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी और कम्यूनिस्ट नेता ए एन घोष रहते थे। उनकी मृत्यु वहीं साठ के दशक में हुई थी। तब श्रीमती गांधी आईं थी। कालातंर में नारायण दत्त तिवारी भी वहीं रहे।