एक दशक से थोड़े अधिक समय पहले कश्मीर घाटी में भीषण बाढ़ आई थी। यह सबकुछ 7 सितंबर, 2014 को शुरू हुआ था। 2004 से 2014 तक, 10 साल के कांग्रेस शासन के बाद दिल्ली में भाजपा की सरकार आए कुछ ही दिन गुजरे थे। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने तीन महीने से थोड़ा अधिक समय ही हुआ था। 2014 की कश्मीर की बाढ़ मोदी सरकार के सामने पहली बड़ी चुनौती थी और सरकार ने बहुत बड़े पैमाने पर बचाव के लिए तमाम संसाधनों का इस्तेमाल किया था।

अब इस त्रासदी से कुछ समय पहले जाएं तो एक मामूली सी घटना सामने आती है। 27 अगस्त, 2012 को वुलर झील की सफाई में लगे श्रमिकों पर आतंकवादियों ने हमला बोला। इस हमले को हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम) के छह आतंकवादियों ने अंजाम दिया था। उनका दावा था कि वे सिंधु जल संधि (IWT) में निहित पाकिस्तान के अधिकारों की रक्षा के लिए काम कर रहे थे। इस हमले ने 2012 में वुलर झील के ड्रेजिंग कार्यों को बाधित किया, अगले वर्ष 2013 में भी यह बाधित रहा और फिर अगले साल बाढ़ ने अप्रत्याशित उग्रता भरा रूप दिखाया। 

कई विशेषज्ञ अब कहते हैं कि यदि 2012, 2013 और 2014 में वुलर ड्रेजिंग कार्य पूरी ताकत से जारी रहे होते, तो बाढ़ बहुत कम गंभीर होती। वे बताते हैं कि बाढ़ विशेष रूप से तब गंभीर हो गई जब वुलर प्राकृतिक स्पंज के रूप में कार्य करने और अतिरिक्त पानी को अवशोषित करने में असमर्थ हो गया। यदि वुलर की ड्रेजिंग अच्छी गति से जारी रहती, तो झेलम के अतिरिक्त प्रवाह से जुड़ी बहुत सारी बाधाएं श्रीनगर और कश्मीर के कई अन्य बसे हुए क्षेत्रों में कहर बरपाए बिना सुचारू प्रवाह में नीचे की ओर गुजर सकती थीं।

चाहे जो भी हो। अगस्त 2012 में हुए हिजबुल मुजाहिदीन आतंकी हमले का मुद्दा पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में गूंजा, जब भारत के राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने इसे उठाया। उन्होंने कहा कि 2012 में आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर में तुलबुल नौवहन परियोजना पर हमला किया था। उन्होंने बताया कि हिजबुल मुजाहिदीन आतंकियों ने परियोजना स्थल पर कुछ श्रमिकों पर गोली चलाई थी, भारी मशीनरी और उपकरणों को नुकसान पहुंचाया था और चिल्लाते हुए कहा था कि यह काम IWT में निहित पाकिस्तान के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। 

हिजबुल मुजाहिदीन आतंकियों ने, जो खुद को कश्मीरी बताते रहे हैं, उन्होंने वुलर ड्रेजिंग में बाधा डालकर और पाकिस्तान की मदद करके आम कश्मीरियों को बहुत नुकसान पहुंचाया। पहलगाम के बैसरन में दो दर्जन से अधिक हिंदू पर्यटकों के नरसंहार के एक दिन बाद 23 अप्रैल को भारत द्वारा इसे स्थगित रखने का फैसला करने के बाद सिंधु जल संधि चर्चा का विषय बना हुआ है।

'भारत के खिलाफ आतंकवाद पाकिस्तान की एक अघोषित नीति'

भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) के बारे में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में पाकिस्तान के 'दुष्प्रचार' अभियान को प्रभावी ढंग से ध्वस्त कर दिया। इसने जोर देकर कहा कि इस्लामाबाद ने संधि की प्रस्तावना में निहित इसकी भावना का तीन युद्धों और भारत पर हजारों आतंकी हमलों को भड़काकर उल्लंघन किया है। भारत ने स्पष्ट कहा कि इन युद्धों और आतंकी हमलों का उद्देश्य नागरिकों के जीवन, धार्मिक सद्भाव और आर्थिक समृद्धि को पंगु बनाना था। यूएन में चर्चा के दौरान भारतीय प्रतिनिधि ने कहा कि हमारा पश्चिमी पड़ोसी, हमारी आर्थिक समृद्धि से ईर्ष्या करता है, और लगातार हमारे खिलाफ आतंकवाद को एक अघोषित नीति के रूप में इस्तेमाल करता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने कहा, 'हम सिंधु जल संधि के संबंध में पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल द्वारा फैलाई जा रही गलत सूचनाओं का जवाब देने के लिए बाध्य हैं। भारत ने हमेशा एक ऊपरी तटवर्ती राज्य के रूप में एक जिम्मेदार तरीके से काम किया है।' वे पाकिस्तान की ओर से भारत पर कथित जल युद्ध छेड़ने जैसे निराधार और अप्रमाणित आरोपों का जवाब दे रहे थे। 

तुलबुल नेविगेशन परियोजना पर काम रोकने के लिए अपने आतंकी प्रॉक्सी का इस्तेमाल करना स्पष्ट रूप से दिखाता है कि पाकिस्तान कई वर्षों से किन नीतियों का पालन कर रहा है।

राजदूत हरीश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक को 'सशस्त्र संघर्ष में जल की रक्षा - नागरिक जीवन की रक्षा' पर संबोधित कर रहे थे। हरीश ने संयुक्त राष्ट्र की बैठक में कहा कि भारत ने 65 साल पहले पाकिस्तान के प्रति अत्यंत उदारता दिखाते हुए सद्भावनापूर्वक IWT में प्रवेश किया था। संयोग से, संधि के तहत पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब की पश्चिमी नदियों का कुल 135.6 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी मिलता है। दूसरी ओर, भारत को तीन पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज से केवल 32.7 एमएएफ पानी मिलता है। सिंधु प्रणाली की नदियों के इस विभाजन से भारत की उदारता स्पष्ट है, जिसके अनुसार पाकिस्तान को नदियों का 80 प्रतिशत से अधिक पानी मिलता है और भारत को 20 प्रतिशत से भी कम।

चार दशकों में 20 हजार भारतीयों की आतंकी हमले में गई जान

इस बात पर गौर करते हुए कि संधि की प्रस्तावना में कहा गया है कि इसे "सद्भावना और मित्रता की भावना से" किया गया था, हरीश ने कहा कि इन साढ़े छह दशकों के दौरान 'पाकिस्तान ने भारत पर तीन युद्ध और हजारों आतंकी हमले करके संधि की भावना का उल्लंघन किया है।' भारतीय दूत ने कहा कि पिछले चार दशकों में आतंकी हमलों में 20,000 से अधिक भारतीयों की जान जा चुकी है, जिनमें से सबसे हालिया पहलगाम में हिंदू पर्यटकों पर किया गया नृशंस आतंकी हमला शामिल था। 

हरीश ने बताया कि भारत ने पिछले दो वर्षों में कई मौकों पर औपचारिक रूप से पाकिस्तान से संधि में संशोधन पर चर्चा करने के लिए कहा था, लेकिन इस्लामाबाद ने इन अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया। अनुच्छेद XII (3) के तहत संधि में संशोधन के लिए पहला नोटिस पाकिस्तान को 25 जनवरी, 2023 को दिया गया था। इस अनुच्छेद के तहत 'अंतिम प्रावधान' के तहत एक और नोटिस 30 अगस्त, 2024 को पाकिस्तान को दिया गया था, लेकिन उसने इस पर कोई गौर नहीं करते हुए अस्वीकार कर दिया था। 

उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान का बाधा डालने वाला दृष्टिकोण हमेशा भारत को अपने वैध अधिकारों को पूरी तरह से इस्तेमाल करने से रोकता है।' इसके अलावा, हरीश ने कहा कि पिछले 65 वर्षों में न केवल सीमा पार आतंकवादी हमलों की वजह से बढ़ती सुरक्षा चिंताओं के संदर्भ में बल्कि स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन और जनसांख्यिकीय परिवर्तन की वजह से बढ़ती जरूरतों को भी देखते हुए भी कई परिवर्तन नजर आते हैं। इन सभी वास्तविकताओं को देखते हुए, संधि को स्थगित रखना अनिवार्य हो गया था।

इन सबके बीच शब्द 'स्थगन' का चयन एक कूटनीतिक मास्टरस्ट्रोक कहा जा सकता है क्योंकि यह न तो एकतरफा निरस्तीकरण है, न ही संधि को स्पष्ट चुनौती है, बल्कि यह सिर्फ एक विराम है जो रणनीतिक अस्पष्टता को बनाए रखने की गुंजाइश देता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में चीजें कैसे सामने आती हैं।