भारत में कृषि का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है, जिसका प्रमाण इस क्षेत्र में रोजगार के बढ़ते अनुपात से मिलता है। 2018 में कृषि क्षेत्र में कुल रोजगार का 42% हिस्सा था, जो 2024 तक बढ़कर 46% हो गया। NABARD के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, 2016-17 में ग्रामीण कृषि परिवारों की संख्या 48% थी, जो 2021-22 तक बढ़कर 56.7% हो गई। हालांकि, पिछले पांच वर्षों में कृषि क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि दर 4.2% रही, लेकिनन वित्त वर्ष 2023-24 में यह घटकर मात्र 1.4% रह गई, जो पिछले सात वर्षों का न्यूनतम स्तर है। इस दौरान खाद्य मुद्रास्फीति 8.4% के उच्च स्तर पर बनी रही और ग्रामीण मजदूरी या तो स्थिर रही या नकारात्मक रही, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को झटका लगा।

इन चुनौतियों के मद्देनजर, केंद्र सरकार ने 2025-26 के केंद्रीय बजट में कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की हैं। बजट में बुनियादी ढांचे, उद्योगों, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs), स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इसके अलावा, व्यापार संचालन को सरल बनाने, व्यक्तिगत आयकर स्लैब में संशोधन करने, घरेलू खपत को प्रोत्साहित करने, किसानों और MSMEs को संस्थागत वित्तीय संसाधनों की अधिक आपूर्ति सुनिश्चित करने, निर्यात को समर्थन देने और वित्तीय अनुशासन बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया गया है।

कृषि क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिए प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना की शुरुआत की गई है, जिसके तहत 100 ऐसे जिलों को चिह्नित किया गया है, जहां कृषि उत्पादकता कम है, फसल तीव्रता औसत से कम है और किसानों को वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस योजना के तहत 1.7 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा और उत्पादकता बढ़ाने, फसल विविधता को प्रोत्साहित करने, भंडारण सुविधाओं को मजबूत करने, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करने और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने पर विशेष जोर दिया गया है।

इसके अलावा, ग्रामीण समृद्धि और लचीलापन कार्यक्रम के तहत कई बहु-क्षेत्रीय पहल की गई हैं, जिनमें दलहन में आत्मनिर्भरता, फल एवं सब्जियों के लिए विशेष योजनाएं, उच्च उपज वाले बीजों के लिए राष्ट्रीय मिशन, मत्स्य पालन विकास कार्यक्रम और कपास उत्पादकता मिशन शामिल हैं। किसानों की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, संशोधित ब्याज अनुदान योजना (Modified Interest Subvention Scheme) के तहत कर्ज की सीमा ₹3 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख कर दी गई है जो किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के माध्यम से लिया जाएगा, जिससे छोटे और सीमांत किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना की गई है, जिससे मखाना उत्पादन और कृषि प्रसंस्करण को बढ़ावा मिलेगा, किसानों की आय में स्थिरता आएगी और स्थानीय कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा।

भारत पोस्ट और इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ाने के लिए ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। इसके तहत डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT), नकद निकासी, EMI कलेक्शन, माइक्रो-क्रेडिट, बीमा और डिजिटल सेवाओं की पहुंच को ग्रामीण स्तर तक ले जाया जाएगा। इसके अलावा, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) को सहकारी संस्थाओं के लिए ऋण सुविधा बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है, जिससे ग्रामीण सहकारी क्षेत्र को मजबूती मिलेगी और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी।

ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं की पहुंच को आसान बनाने के लिए बजट में ग्रामीण क्रेडिट स्कोर फ्रेमवर्क की घोषणा की गई है, जिसे पब्लिक सेक्टर बैंकों द्वारा विकसित किया जाएगा। इससे स्वयं सहायता समूह (SHG) के सदस्यों और ग्रामीण नागरिकों को ऋण प्राप्त करने में आसानी होगी। इसके अलावा, स्वच्छ पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जल जीवन मिशन को प्राथमिकता दी गई है। केंद्र सरकार ने जल जीवन मिशन और ग्रामीण पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के लिए 74,226 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिससे देशभर के ग्रामीण घरों में नल जल कनेक्शन प्रदान करने की योजना को गति मिलेगी।

मुद्रास्फीति से प्रेरित आर्थिक मंदी का मुकाबला करने और उपभोक्ता खपत को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने आयकर छूट सीमा को ₹7 लाख से बढ़ाकर ₹12 लाख कर दिया है। इससे मध्यम वर्ग और ग्रामीण उपभोक्ताओं के पास अधिक डिस्पोजेबल आय होगी, जिससे तेजी से उपभोग बढ़ेगा और विशेष रूप से FMCG (तेजी से उपभोग होने वाले उपभोक्ता उत्पाद) क्षेत्र में मांग बढ़ेगी।

घोषित योजनाएं निश्चित रूप से सही दिशा में एक कदम हैं, लेकिन कृषि और ग्रामीण भारत को स्थायी विकास की राह पर ले जाने के लिए दीर्घकालिक रणनीति और मजबूत क्रियान्वयन की आवश्यकता होगी। सरकार की सक्रिय नीतियां ग्रामीण आर्थिक अवसरों को बढ़ाने और “प्रवासन को मजबूरी के बजाय एक विकल्प” बनाने की दिशा में सराहनीय प्रयास हैं। हालांकि, इन योजनाओं की वास्तविक सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इन्हें जमीनी स्तर पर कितनी प्रभावी तरीके से लागू किया जाता है। इसके लिए सतत कृषि पद्धतियों, जैविक खेती को बढ़ावा देने और किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) व सहकारी समितियों को सशक्त बनाने की जरूरत होगी। राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर समन्वय से ही इन योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सकेगा।

कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों को सशक्त बनाने की दिशा में यह बजट एक महत्वपूर्ण पहल है। हालांकि, इन योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता होगी। यह केवल आर्थिक विकास का विषय नहीं है, बल्कि 2047 तक आत्मनिर्भर और विकसित भारत (Viksit Bharat) के लक्ष्य को हासिल करने का एक महत्वपूर्ण आधार भी है।