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हमास के साथ कैदियों की अदला-बदली में इजराइल ने लोकप्रिय फिलिस्तीनी नेता मारवानी बरघौती को रिहा करने से किया इंकार

इजराइल ने हमास के लोकप्रिय नेता मारवानी बरघौती को रिहा करने से इंकार कर दिया है। इजराइल ने 250 कैदियों की सूची जारी की है। इजराइल को डर है कि 2011 में याह्या सिनवार को रिहा करने का इतिहास खुद को दोहराए न।

इजराइल और हमास के बीच कैदियों की अदला-बदली में इजराइल ने लोकप्रिय फिलिस्तीनी नेता मारवानी बरघौती को रिहा करने से इंकार कर दिया है। बरघौती के अलावा इजराइल ने कई अन्य हाई-प्रोफाइल कैदियों को भी रिहा करने से इंकार कर दिया है। इजराइल ने शुक्रवार, 10 अक्टूबर को 250 कैदियों की सूची जारी की है।

इजराइल द्वारा जारी की गई यह सूची फिलहाल अंतिम है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं हो सका है।

इस बाबत हमास के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मूसा अबू मरजूक ने अल जजीरा टीवी से बात करते हुए कहा कि हमास बरघौती और अन्य हाई-प्रोफाइल कैदियों की रिहाई पर अड़ा हुआ है और वह मध्यस्थों के साथ बातचीत कर रहा है।

मारवानी बरघौती को इजराइल मानता है आतंकवादी नेता

इजराइल बरघौती को एक आतंकवादी नेता मानता है। 2004 में इजराइल में हुए हमलों के सिलसिले में दोषी ठहराए जाने के बाद उसे कई आजीवन सजाएं दी गई हैं और वह काट रहा है। इस हमले में पांच लोग मारे गए थे।

कुछ विशेषज्ञों का हालांकि मानना है कि इजराइल बरघौती से डरता है और क्योंकि वह कब्जे के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध का समर्थन करने के साथ-साथ वह दो राज्य समाधान का समर्थक भी है। इजराइल को डर है कि बरघौती फिलिस्तीनियों के लिए एक शक्तिशाली प्रेरक शक्ति हो सकते हैं।

फिलिस्तीनी उन्हें अपना नेल्सन मंडेला मानते हैं। नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता थे जिन्हें देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त है।

इजराइल-हमास के बीच युद्धविराम

गौरतलब है कि 10 अक्टूबर को इजराइल और हमास के बीच युद्धविराम हुआ जिसके तहत हमास सोमवार, 13 अक्टूबर तक 20 इजराइली बंधकों को रिहा करेगा। इजराइल जेल की सजा काट रहे लगभग 250 फिलिस्तीनियों को रिहा करेगा। इसके साथ ही बीते दो सालों में गाजा से बिना किसी आरोप के पकड़े गए लगभग 1,700 लोगों की रिहाई करेगा।

दोनों पक्षों के बीच इन रिहाइयों का गहरा असर है। इजराइली इन कैदियों को आतंकवादी मानते हैं, इनमें से कुछ आत्मघाती बम विस्फोटों में शामिल थे। कई फिलिस्तीनी इजराइल द्वारा बंदी बनाए गए हजारों लोगों राजनैतिक कैदी या दशकों से सैन्य कब्जे का विरोध कर स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं।

इजराइली कैदियों की सूची में शामिल ज्यादातर लोग हमास और फतह गुट के सदस्य हैं। इन्हें 2000 के दशक में गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तार किए गए इन लोगों में से कई को गोलीबारी, बम विस्फोट या फिर अन्य हमलों में शामिल होने का आरोपी माना गया था। इनमें इजराइली नागरिकों, बसने वालों और सैनिकों की हत्या हुई थी या हत्या का प्रयास किया गया था।

सूची के अनुसार, रिहाई के बाद आधे से ज्यादा लोगों को गाजा या फिलिस्तीनी क्षेत्रों से बाहर निर्वासन में भेज दिया जाएगा। 2000 के दशक में दूसरा इंतिफादा फूट पड़ा जो वर्षों की शांति वार्ता के बावजूद जारी कब्जे के विरोध में भड़के फिलिस्तीन विद्रोह का नतीजा था। इंतिफादा का अर्थ विद्रोह या झटक देना होता है। इजराइल के खिलाफ फिलिस्तीनियों के तीव्र विरोध के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।

यह विद्रोह खूनी हो गया था जिसमें फिलिस्तीन के सशस्त्र समूहों ने सैकड़ों इजराइली नागरिकों पर हमले किए और इजराइली सेना ने हजारों फिलिस्तीनियों को मार डाला।

हमास नेताओं ने अतीत में भी मांग की है कि इजराइल गाजा में लड़ाई समाप्त करने के किसी भी समझौते के तहत उग्रवादी समूह के मुख्य राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी बरघौती को रिहा करे। हालांकि, इजराइल ने पिछली बातचीतों में इस मांग को इंकार किया है।

2011 में याह्या सिनवार को किया था रिहा

साल 2011 में हुई बातचीत के बाद याह्या सिनवार को रिहा गया था। इजराइल को डर है कि इतिहास खुद को दोहरा सकता है। लंबे समय से जेल में बंद यह कैदी 7 अक्टूबर 2023 को हुए हमले का मुख्य साजिशकर्ता था जिसने इजराइल और गाजा के बीच नए युद्ध को जन्म दिया। बीते साल इजराइली सेना द्वारा मारे जाने से पहले वह उग्रवादी समूह का नेतृत्व कर रहा था।

फिलिस्तीन की राजनीति में बरघौती को एक सर्वमान्य हस्ती के रूप में देखा जाता है। इसके साथ ही उन्हें राष्ट्रपति महमूद अब्बास से संभावित उत्तराधिकारी के रूप में भी देखा जा रहा है। वह फिलिस्तीन के सबसे लोकप्रिया नेताओं में से एक हैं।

बरघौती का जन्म 1959 में पश्चिमी तट के कोबर गाँव में हुआ था। बीर ज़ीट विश्वविद्यालय में इतिहास और राजनीति की पढ़ाई के दौरान, उन्होंने इजराइली कब्जे के खिलाफ छात्र विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। दिसंबर 1987 में भड़के पहले फिलिस्तीनी विद्रोह में वे एक आयोजक के रूप में उभरे।

इजराइल ने अंततः उन्हें जॉर्डन निर्वासित कर दिया। 1990 के दशक में वे अंतरिम शांति समझौतों के तहत पश्चिमी तट लौट आए जिसके तहत फिलिस्तीनी प्राधिकरण का गठन हुआ और एक राज्य के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

अमरेन्द्र यादव
लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक करने के बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई। जागरण न्यू मीडिया में बतौर कंटेंट राइटर काम करने के बाद 'बोले भारत' में कॉपी राइटर के रूप में कार्यरत...सीखना निरंतर जारी है...

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