नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग पीठ ने अवैध विदेशियों को निर्वासित नहीं किए जाने को लेकर केंद्र और असम सरकार को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि आखिर अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत दोषी ठहराए जाने के बाद भी अनिश्चितकाल तक हिरासत में क्यों रखा जा रहा है। शीर्ष अदालत ने केंद्र से स्पष्ट जवाब मांगा कि सरकार अपने ही दिशा-निर्देशों का पालन क्यों नहीं कर रही, जिसमें कहा गया था कि अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को पहचान होने के 30 दिनों के भीतर देश से बाहर भेजा जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ कोलकाता हाईकोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर शुरू किए गए इस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा, "इस मामले को शीर्ष अदालत में आए 12 साल हो चुके हैं, लेकिन आज तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।"
सरकार के रवैये पर सवाल
30 जनवरी को दिए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम यह समझना चाहते हैं कि जब किसी अवैध बांग्लादेशी प्रवासी को अपराधी घोषित कर दिया गया है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वह भारत का नागरिक नहीं है। फिर उन्हें हिरासत केंद्रों या सुधार गृहों में अनिश्चितकाल तक क्यों रखा जा रहा है?"
अदालत ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि "जब यह मामला हमारे समक्ष आया था, तब करीब 850 अवैध प्रवासी विभिन्न सुधार गृहों में हिरासत में थे। अब हमें मौजूदा आंकड़े उपलब्ध कराए जाएं।"
सजा पूरी होने के बाद भी हिरासत क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर कोई अवैध बांग्लादेशी प्रवासी विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 14A(b) के तहत दोषी करार दिया जाता है और अपनी सजा पूरी कर लेता है, तो उसे तुरंत निर्वासित किया जाना चाहिए। अदालत ने सवाल किया, "अगर एक व्यक्ति को अदालत द्वारा दोषी ठहराया जा चुका है, तो विदेश मंत्रालय को उसकी नागरिकता की दोबारा पुष्टि करने की जरूरत क्यों पड़ रही है?"
अदालत ने केंद्र सरकार के 25 नवंबर, 2009 के एक सर्कुलर का जिक्र करते हुए कहा कि इसके क्लॉज 2(v) के अनुसार, "निर्वासन और पहचान की पूरी प्रक्रिया 30 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।" सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा, "हमें यह बताया जाए कि इस निर्देश का सख्ती से पालन क्यों नहीं किया जा रहा?"
मामला मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल से जुड़े प्रवासियों का है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि "इस तरह के मामलों में पश्चिम बंगाल सरकार से क्या अपेक्षा की जाती है?"
असम सरकर से भी सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या किसी मुहूर्त का इंतजार है
सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को भी इस मामले में कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि घोषित विदेशी नागरिकों को डिटेंशन सेंटर में अनिश्चितकाल तक कैद नहीं रखा जा सकता, बल्कि उन्हें तुरंत निर्वासित किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, "क्या आप उनके निर्वासन के लिए किसी शुभ मुहूर्त का इंतजार कर रहे हैं?"
असम सरकार की ओर से दलील दी गई कि इन विदेशी नागरिकों के पते उपलब्ध नहीं हैं, जिससे उनके निर्वासन में कठिनाई हो रही है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया, "पते नहीं मालूम हैं, तो क्या इसका मतलब यह है कि आप उन्हें हमेशा के लिए हिरासत में रखेंगे? यह हमारा विषय नहीं है। आपको बस उन्हें उनके देश भेजना है।"
पीठ ने आगे कहा, "एक बार किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित कर दिया जाता है, तो अगला तार्किक कदम निर्वासन ही होना चाहिए। आप उन्हें अनिश्चितकाल तक हिरासत में नहीं रख सकते। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, फिर चाहे वह भारतीय नागरिक हो या विदेशी।"
270 विदेशी नागरिक डिटेंशन सेंटर में, कोर्ट ने छह हफ्ते में मांगी थी रिपोर्ट
यह मामला असम के विभिन्न डिटेंशन सेंटर और ट्रांजिट कैंप में बंद 270 विदेशी नागरिकों से जुड़ा हुआ है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को फटकार लगाई थी और पूछा था कि इन व्यक्तियों को हिरासत में रखने के बजाय उनके निर्वासन की प्रक्रिया क्यों नहीं शुरू की गई।
अदालत ने स्पष्ट किया था कि राज्य सरकार को इन 270 विदेशी नागरिकों की हिरासत का कारण बताना चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि उन्हें उनके मूल देश भेजने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं। इस पर असम सरकार ने बताया कि निर्वासन की प्रक्रिया केंद्र सरकार के साथ समन्वय के तहत पूरी की जाती है।
राज्य सरकार ने कहा कि वह अवैध प्रवासियों की पूरी जानकारी, जिसमें उनके संपर्क पते भी शामिल होते हैं, केंद्रीय विदेश मंत्रालय को भेजती है। इसके बाद विदेश मंत्रालय कूटनीतिक माध्यमों से उनकी पहचान की पुष्टि करता है और संबंधित देशों से संपर्क करता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने दी सख्त चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि जिन व्यक्तियों को विदेशी घोषित किया गया है, उनका निर्वासन तत्काल प्रभाव से सुनिश्चित किया जाए। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि "हिरासत स्थायी समाधान नहीं हो सकता" और राज्य सरकार को जल्द से जल्द इन विदेशी नागरिकों को उनके मूल देश भेजने की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने असम स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी को निर्देश दिया था कि वह असम के मैटिया ट्रांजिट कैंप में जाकर वहां की स्वच्छता व्यवस्था और भोजन की गुणवत्ता की जांच करे।