नेपाल में राजशाही की बहाली की मांग के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें लहराए जाने से राजनीतिक बवाल मच गया है। काठमांडू में रविवार को पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के स्वागत में निकाली गई रैली में कुछ समर्थकों ने योगी आदित्यनाथ के पोस्टर उठा लिए, जिसके बाद नेपाल की राजनीति में इस मुद्दे पर तीखी बहस छिड़ गई है।
नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की वापसी पर हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर नारेबाजी की और राजशाही बहाल करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने 'राजमहल खाली करो, राजा को बुलाओ', 'हमारी प्यारे राजा जिंदाबाद' और 'राजशाही चाहिए' जैसे नारे लगाए। इसी दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों ने योगी आदित्यनाथ के पोस्टर लहराए, जिससे विवाद खड़ा हो गया।
पोस्टर लहराने वाले ने प्रदीप राणा ने भारत में ली शरण
रैली में योगी आदित्यनाथ की तस्वीर उठाने वाले प्रदीप बिक्रम राणा के खिलाफ नेपाल पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी। राणा का दावा है कि पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा, जिसके बाद उन्हें नेपाल छोड़कर भारत के गोरखपुर शरण लेना पड़ा है। मीडिया से बातचीत में राणा ने कहा कि वह योगी आदित्यनाथ को हिंदू गौरव का प्रतीक मानते हैं और इसलिए उनकी तस्वीर लहराई थी।
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस घटना पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि नेपाल को अपने आंदोलनों के लिए किसी विदेशी नेता की तस्वीर का सहारा नहीं लेना चाहिए। ओली के समर्थकों ने इसे नेपाल की राजनीति में "भारतीय हस्तक्षेप" करार दिया और आरोप लगाया कि योगी आदित्यनाथ की तस्वीरों से यह संकेत मिलता है कि भारत, ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में है।
हालांकि, राजशाही समर्थकों ने इन आरोपों को खारिज कर दिया और दावा किया कि यह ओली सरकार की साजिश है ताकि राजशाही समर्थक आंदोलन को बदनाम किया जा सके। रास्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के प्रवक्ता ज्ञानेंद्र शाही ने कहा कि योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें जानबूझकर प्रधानमंत्री केपी ओली के प्रमुख सलाहकार विष्णु रिमाल के इशारे पर रैली में प्रदर्शित की गईं, ताकि यह दिखाया जा सके कि यह आंदोलन बाहरी ताकतों से प्रेरित है।
योगी आदित्यनाथ और नेपाल की राजशाही का पुराना रिश्ता
नेपाल में योगी आदित्यनाथ की तस्वीरों को लेकर मचे हंगामे के बीच यह समझना जरूरी है कि यूपी के मुख्यमंत्री और नेपाल की राजशाही का गहरा नाता रहा है। योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मठ से जुड़े हैं, जिसका नेपाल के शाह वंशीय शाही परिवार से ऐतिहासिक संबंध है। गोरखनाथ नेपाल के शाही परिवार के आराध्य देव माने जाते हैं। पूर्व राजा बीरेन्द्र स्वयं गोरखनाथ मठ के महंत अवैद्यनाथ को अपना गुरु मानते थे, जो योगी आदित्यनाथ के भी गुरु थे।
1992 में राजा बीरेन्द्र खुद गोरखनाथ मठ पहुंचे थे। यह भी कहा जाता है कि 1990 में नेपाल को "हिंदू राष्ट्र" बनाए रखने का फैसला महंत अवैद्यनाथ की सलाह पर लिया गया था। हालांकि, 2008 में नेपाल को औपचारिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित कर दिया गया।
योगी आदित्यनाथ कई मौकों पर नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग कर चुके हैं। 2015 में आए भूकंप के बाद उन्होंने नेपाल में राहत कार्यों का नेतृत्व भी किया था।
क्या नेपाल में राजशाही की वापसी संभव है?
नेपाल में राजशाही समर्थक आंदोलन भले ही जोर पकड़ रहा हो। रविवार त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर 10,000 से अधिक लोग इकट्ठा हुए थे जिन्होंने पूर्व राजा के पश्चिमी नेपाल की यात्रा से लौटने पर स्वागत किया। ज्ञानेंद्र शाह को 2006 में बड़े जनप्रदर्शनों के बाद सत्ता छोड़नी पड़ी थी और 2008 में नेपाल की संसद ने औपचारिक रूप से राजशाही समाप्त कर देश को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य घोषित कर दिया था।
हालांकि, पिछले 16 वर्षों में नेपाल में 13 सरकारें बदल चुकी हैं, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और भ्रष्टाचार के कारण लोगों में असंतोष बढ़ता गया है। कई लोगों का मानना है कि राजशाही हटाने से स्थिति और बिगड़ गई है।
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसकी बहाली की संभावना बेहद कम है। नेपाल के राजनीतिक विशेषज्ञ लोक राज बराल के अनुसार, "राजशाही अतीत में अस्थिरता का कारण रही है और इसके पुनर्स्थापन की कोई संभावना नहीं है।"
हालांकि, नेपाल में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और भ्रष्टाचार को लेकर जनता में असंतोष बढ़ रहा है, जिससे राजशाही समर्थकों को नया आधार मिल रहा है।