महाकुंभ: त्रिवेणी संगम में स्नान करेंगे 25 हजार आदिवासी श्रद्धालु

महाकुंभ में आदिवासी श्रद्धालुओं के स्नान को लेकर आयोजकों ने कहा कि यह समागम आदिवासी समुदायों के लिए एकता और पहचान का एक शक्तिशाली प्रदर्शन होगा।

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श्रद्धालुओं पर पुष्पवर्षा का दृश्य। फोटोः IANS

नई दिल्ली: संगम नगरी प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला जारी है। इस बीच, देशभर के आदिवासी समुदायों के करीब 25,000 से अधिक श्रद्धालु जल्द ही प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में जुटेंगे। इस दौरान वे संगम में पवित्र डुबकी लगाएंगे और अपने धर्म, संस्कृति और परंपराओं की रक्षा करने का संकल्प लेंगे। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा आयोजित यह भव्य समागम 6 फरवरी से 10 फरवरी तक चलेगा। इसकी घोषणा सेवा प्रकल्प संस्थान ने की है।

सेवा प्रकल्प संस्थान के सचिव सलिल नेमानी ने एक बयान में कहा, "प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा 6 फरवरी से 10 फरवरी तक भव्य आदिवासी समागम का आयोजन किया जा रहा है।"

इस अवसर पर हजारों आदिवासी श्रद्धालु गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम पर पवित्र स्नान करेंगे, जो उनकी आस्था और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

आयोजकों ने जोर देकर कहा कि यह समागम आदिवासी समुदायों के लिए एकता और पहचान का एक शक्तिशाली प्रदर्शन होगा। इस आयोजन का एक प्रमुख आकर्षण 7 फरवरी को आयोजित एक भव्य 'शोभा यात्रा' होगी, जिसमें आदिवासी संत और भक्त अपने पारंपरिक परिधानों में सजे हुए होंगे। वे एक भव्य जुलूस में संगम तक जाएंगे, जहां वे पवित्र स्नान करेंगे।

इस अवसर पर सांस्कृतिक विविधता को बढ़ाते हुए विभिन्न क्षेत्रों के 150 आदिवासी नृत्य दल, राष्ट्रीय नृत्य और संगीत का प्रदर्शन करेंगे, जो 'तू मैं एक रक्त' थीम के माध्यम से एकता का संदेश देंगे। ये सांस्कृतिक प्रदर्शन 7, 8 और 9 फरवरी को आयोजित होंगे, जो भारत की आदिवासी विरासत की समृद्ध परंपराओं की झलक पेश करेंगे।

यह आयोजन 10 फरवरी को आदिवासी संतों के एक विशेष सम्मेलन के साथ समाप्त होगा, जो महाकुंभ में भाग लेने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से आए हैं। इस दौरान आध्यात्मिक नेता धर्म और संस्कृति पर अपने विचार साझा करेंगे, जिससे आदिवासी समुदायों के बीच पहचान और अपनेपन की भावना और मजबूत होगी।

आयोजकों का मानना है कि यह महाकुंभ सभी आदिवासी परंपराओं और राष्ट्र के व्यापक आध्यात्मिक ताने-बाने के बीच गहरे संबंधों की पुष्टि करने में एक मील का पत्थर साबित होगी।

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