योगी आदित्यनाथ Photograph: (Social Media)
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा में बोलते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर 'फ्लोर लैंग्वेज' विवाद पर बयान दिया। उन्होंने सपा पर निशाना साधते हुए कहा कि हिंदी इस सदन की भाषा है, उसे नहीं हटाया जा रहा है, ना ही किसी भाषा को थोपा जा रहा है। आप लोग बस उर्दू-उर्दू कर रहे हैं। हमने 'फ्लोर लैंग्वेज' में स्थानीय भाषाओं को ऐड किया है, ताकि ग्रामीण इलाकों से आने वालों को बोलने/समझने में आसानी हो।
यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा कि अंग्रेजी न तो हमारी मातृ भाषा है और न तो हमारी स्थानीय भाषा है। उसे इसमें न जोड़िए। इसमें संस्कृत को भी जोड़ दीजिए और उर्दू भी जोड़ दीजिए। मुख्यमंत्री ने कल एक शब्द का इस्तेमाल किया- कठमुल्ला। क्या फिराक कठमुल्ला थे। क्या मुंशी प्रेमचंद कठमुल्ला थे। क्या ये यूनवर्सिटियों में पढ़ने वाले कठमुल्ला हैं। मैं इस शब्द पर आपत्ति करता हूं। मैं आपसे कहना चाहता हूं कि अंग्रेजी भाषा हमारी भाषा नहीं है।
प्रसाद पांडेय को सीएम योगी का जवाब
संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि दलीय नेताओं की बैठक में जब ये बात आई थी, तब भी माता प्रसाद जी ने सहमति की बजाए विरोध ही दिया था। उसके अलावा बाकी भाषाओं पर भी उन्होंने ये ही कहा था कि हिंदी कमजोर होगी अगर इन भाषाओं को बढ़ाया गया तो। सुरेश खन्ना ने कहा कि किसी भी प्रकार से अंग्रेजी थोपी नहीं जाएगी।
माता प्रसाद पांडेय के सवाल के विषय में योगी ने कहा कि ये समाजवादी संस्कार हैं कि हर अच्छे कार्य का विरोध करना है। उन्होंने कहा कि हिंदी इस सदन की भाषा है। योगी ने कहा कि हिंदी को तो हटाया नहीं गया। भोजपुरी, अवधी हो या बृज हो इनकी दूसरी कोई लिपि नहीं है। देवनागरी ही इनकी लिपि है। समाजवादियों के बारे में मान्यता है कि जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद भी करते हैं।
सपा पर सीएम योगी का हमला
योगी ने कहा कि महाकुंभ का विरोध ये पहले दिन से कर रहे थे। महाकुंभ की तैयारियों को लेकर एक दिन की चर्चा तय की गई थी। लेकिन आपने चर्चा नहीं होने दी। लेकिन पहले दिन से ये अफवाह और दुष्प्रचार आपके द्वारा निरंतर होता रहा। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने महाकुंभ के बारे में कहना शुरू किया कि इतना पैसा और इतना विस्तार देने की आवश्यकता क्या है। आपकी पार्टी के नेता ने कहा कि संगम का किला, जहां वट वृक्ष है। सरस्वती नदी वहीं से निकलती है। आपको अक्षय वट का नाम भी नहीं पता, ये आपका जनरल नॉलेज है।
उधर, विधानसभा की कार्यवाही के दौरान, पल्लवी पटेल ने मांग की कि संस्कृत और उर्दू भाषाओं को भी कार्यवाही में शामिल किया जाए। उन्होंने कहा, “किसी भी भाषा का ज्ञान व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार लाता है। लेकिन सरकार इसे स्वीकार करने के बजाय सिर्फ राजनीति कर रही है।” उन्होंने सवाल उठाया कि जब स्थानीय भाषाओं को सदन में स्वीकार किया जा सकता है, तो संस्कृत और उर्दू को शामिल करने में क्या आपत्ति है?