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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की है, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल को विधेयकों को रखने के लिए समयसीमा दी गई थी।
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धनखड़ ने कहा कि इस तरह के निर्देश राष्ट्रपति के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करते हैं, और यह एक चिंताजनक स्थिति है।
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उन्होंने सवाल उठाया कि कैसे राष्ट्रपति को निर्देश दिया जा सकता है और इस पर अधिक संवेदनशीलता की आवश्यकता है।
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धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद-145(3) का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट कानून की व्याख्या कर सकता है, लेकिन राष्ट्रपति को निर्देश देने का अधिकार नहीं है।
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सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को फैसला सुनाया था, जिसमें राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों को तीन महीने के भीतर निपटाने की समय सीमा दी गई थी।
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यदि राष्ट्रपति इस समय सीमा के भीतर निर्णय नहीं लेते हैं, तो विधेयक कानून मान लिया जाएगा।
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यह फैसला तमिलनाडु में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच उत्पन्न संवैधानिक गतिरोध के बाद आया, जहां राज्यपाल आर एन रवि ने विधेयकों को लंबे समय तक रोका था।
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सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा विधेयकों को राष्ट्रपति के पास दोबारा भेजने की प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया और स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में राज्य सरकार अदालत जा सकती है।
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