नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की आलोचना की जिसमें अदालत ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी भी विधेयक को रखने के लिए समयसीमा निर्धारित की थी। इसके साथ ही धनखड़ ने कहा कि ऐसे निर्देश देश के सर्वोच्च पद की संवैधानिक भूमिका को कमजोर करते हैं। 

धनखड़ उपराष्ट्रपति एन्कलेव में राज्यसभा प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान धनखड़ ने सवाल किया "हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और किस आधार पर? "

हम कहां जा रहे हैं? - धनखड़

धनखड़ ने आगे कहा "हाल ही में आए एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें अधिक संवेदनशील होना होगा। यह सवाल नहीं है कि कोई समीक्षा दाखिल करे या नहीं। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कभी उम्मीद नहीं की थी। राष्ट्रपति से समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने का आह्वान किया गया और यदि नहीं करते हैं तो नियम बन जाता है।"

इसके साथ ही धनखड़ ने आगे कहा कि संविधान के अनुच्छेद- 145(3) के तहत कानून की व्याख्या करने का अधिकार देता है लेकिन यह अधिकार नहीं देता है कि राष्ट्रपति को निर्देश जारी करें। 

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था फैसला

गौरतलब है कि बीते आठ अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया था जिसमें राष्ट्रपति को पहली बार राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों को रखने की समय सीमा तय की गई थी। यह समय सीमा तीन महीने थी। इसके साथ ही अदालत ने कहा था कि इससे ज्यादा समय सीमा होने से विधेयक कानून मान लिया जाएगा। 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह फैसला तमिलनाडु में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच उत्पन्न हुए संवैधानिक गतिरोध के बाद आया। राज्यपाल आर एन रवि ने सरकार द्वारा भेजे गए कई विधेयकों को लंबे समय तक अपने पास रखा था। इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। 

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास दोबारा भेजने को रद्द करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया था। इस दौरान अदालत ने स्पष्ट किया था कि यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक पर मंजूरी नहीं देते हैं तो राज्य सरकारों को अदालत जाने का अधिकार है।