नई दिल्ली: नई आबकारी नीति पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट दिल्ली विधानसभा में मंगलवार को पेश की गई। यह ऑडिट 2017-18 से 2020-21 तक का है। इस रिपोर्ट से सामने आया है कि दिल्ली की शराब नीति बदले जाने से किस तरह से 2,002.68 करोड़ का नुकसान हुआ। ऑडिट में लाइसेंस देने, मूल्य निर्धारण, गुणवत्ता नियंत्रण, प्रवर्तन और इन्वेंट्री ट्रैकिंग में कई कमियां पाई गईं। इन कमियों से सरकारी खजाने को नुकसान हुआ है।
बता दें कि इस मामले की सीबीआई और ईडी पहले से जांच कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आबकारी मंत्री रहे मनीष सिसोदिया समेत आम आदमी पार्टी के कई नेता आरोपी बनाए गए हैं। केजरीवाल और सिसोदिया को महीनों जेल में रहना पड़ा और अभी वे जमानत पर हैं। ऐसे में अब सीएजी रिपोर्ट से उनकी मुश्किलें फिर बढ़ सकती हैं।
CAG रिपोर्ट में क्या-क्या प्वॉइंट्स में समझिए-
1. राजस्व को 2,002.68 करोड़ रुपये का भारी नुकसान
166 पन्नों की कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि आप सरकार के दौरान लागू की गई में विभिन्न कारणों से सरकारी खजाने को 2000.68 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। जैसे गैर-अनुकूल क्षेत्रों में खुदरा दुकानों को न खोलने से 941.53 करोड़ रुपये का घटा हुआ। सरेंडर किए गए लाइसेंसों को फिर से टेंडर न करने से 890 करोड़ और कोविड-19 का हवाला देकर आबकारी विभाग की सलाह के बावजूद जोनल लाइसेंस धारकों को शुल्क छूट देने से 144 करोड़ का नुकसान हुआ। इसके अलावा जोनल लाइसेंस धारकों से उचित सिक्यॉरिटी डिपॉजिट नहीं लेने से 27 करोड़ का घाटा सरकारी खजाने को हुआ।
2. लाइसेंस उल्लंघन
कैग रिपोर्ट में लाइसेंस उल्लंघन की भी बात सामने आई। नई शराब नीति दिल्ली आबकारी नियम, 2010 के नियम 35 को लागू करने में असफल रही, जिसके कारण ऐसे थोक विक्रेताओं को लाइसेंस दिए गए जो मैन्युफैक्चरिंग में इंटरेस्टेड थे या रिटेलर्स से संबंध रखते थे। इससे पूरी लिकर सप्लाई चैन प्रभावित हुई, जिसमें मैन्युफैक्चरिंग, होलसेलर और रिटेल के लाइसेंस के बीच कॉमन बेनिफिशियल ओनरशिप हो गई।
3. थोक विक्रेताओं का लाभ मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12% करना
सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने थोक विक्रेताओं का प्रॉफिट मार्जिक 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया। सरकार ने यह कहकर इस फैसले को उचित ठहराया कि गुणवत्ता जांच प्रणाली के लिए गोदामों में सरकारी मंजूरी प्राप्त लैब्स की स्थापानी करनी होगी। हालांकि, कोई भी लैब स्थापित नहीं की गई इससे थोक लाइसेंसधारियों का लाभ बढ़ा लेकिन सरकारी राजस्व में गिरावट आई।
4. कोई स्क्रीनिंग नहीं, अग्रिम लागतों की अनदेखी
आप सरकार ने सॉल्वेंसी, वित्तीय विवरणों और आपराधिक रिकॉर्ड पर उचित जांच किए बिना खुदरा शराब लाइसेंस दिए। शराब क्षेत्र चलाने के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक के शुरुआती निवेश की आवश्यकता थी, फिर भी कोई योग्यता वित्तीय मानदंड निर्धारित नहीं किया गया था। इस प्रकार वित्तीय रूप से कमजोर संस्थाओं को लाइसेंस दिए गए। कई बोलीदाताओं ने पिछले 3 सालों में न्यूनतम से शून्य आय की रिपोर्ट की। ये उपाय प्रॉक्सी स्वामित्व का सुझाव देते हैं, जो राजनीतिक पक्षपात और पिछले दरवाजे के सौदों के बारे में सवाल उठाते हैं।
5. एक्सपर्ट्स की सिफारिशों की अनदेखा
आप सरकार ने 2021-22 की आबकारी नीति का ड्राफ्ट तैयार करते समय अपनी ही एक्सपर्ट्स समिति की सिफारिशों की अनदेखी की। इसका कोई औचित्य भी दर्ज नहीं किया गया।
6. पारदर्शिता की कमी, एक कारोबारी को 54 शराब चलाने की मंजूरी
शराब नीति ने एक आवेदक को 54 शराब की दुकानों तक संचालित करने की अनुमति दी, पहले सीमा 2 थी। इससे एकाधिकार और कार्टेलाइजेशन के रास्ते खुल गए। पहले, सरकारी निगम 377 रिटेल वेंड का संचालन करते थे, जबकि 262 निजी व्यक्तियों द्वारा चलाए जा रहे थे। नई पॉलिसी के तहत 32 रिटेल जोन बनाए गए, जिसमें 849 वेंड शामिल थे। लेकिन केवल 22 निजी संस्थाओं को लाइसेंस दिए गए, जिससे ट्रांसपेरेंसी और फेयरनेस कम हो गई।
7. कुछ खास ब्रांड को दिया बढ़ावा
आप की नीति ने निर्माताओं को एक ही थोक विक्रेता के साथ गठजोड़ करने के लिए मजबूर किया। इससे कुछ थोक विक्रेताओं को आपूर्ति श्रृंखला पर हावी होने की अनुमति मिली। 367 पंजीकृत IMFL ब्रांडों में से, 25 ने दिल्ली में कुल शराब की बिक्री का लगभग 70% हिस्सा लिया। केवल तीन थोक विक्रेताओं (इंडोस्पिरिट, महादेव लिकर और ब्रिडको) ने 71% से अधिक आपूर्ति को नियंत्रित किया। इन तीनों के पास 192 ब्रांडों के लिए विशेष आपूर्ति अधिकार भी थे। जो प्रभावी रूप से यह तय करते थे कि कौन सा ब्रांड सफल होगा या विफल। इससे शराब की कीमत को बढ़ाया जा सकता है।
8. कैबिनेट और एलजी की मंजूरी नहीं ली
दिल्ली सरकार ने महत्वपूर्ण राजस्व प्रभाव वाले प्रमुख छूट और छूट कैबिनेट की मंजूरी के बिना या एलजी से परामर्श किए बिना दी गईं। यह कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन है।
9. कई इलाकों में अवैध रूप से खोली गईं शराब की दुकानें
AAP के आबकारी विभाग ने MCD या DDA से अनिवार्य अनुमोदन के बिना कई क्षेत्रों में शराब की दुकानों को मंजूरी दी। निरीक्षण टीमों ने जोन 23 में 4 दुकानों को गलत तरीके से कमर्शियल क्षेत्रों में घोषित किया। कुछ मामलों में आवेदकों ने खुद स्वीकार किया कि दुकानें आवासीय / मिश्रित भूमि उपयोग क्षेत्रों में थीं। फिर भी लाइसेंस जारी किए गए। इन उल्लंघनों के कारण, 2022 की शुरुआत में MCD द्वारा सभी चार अवैध शराब की दुकानों को सील कर दिया गया था। इससे साबित होता है कि उचित प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया गया था।
10. शराब की कीमत में भी पारदर्शिता नहीं
सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली आबकारी विभाग ने एल 1 लाइसेंसधारियों को महंगी शराब के लिए अपनी खुद की एक्स-डिस्टिलरी कीमत (ईडीपी) तय करने की अनुमति दी, जिससे कीमतों में हेरफेर हुआ।
11. परीक्षण नियमों का भी उल्लंघन
आबकारी विभाग ने लाइसेंस तब भी जारी किए, जब गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्टें गायब थीं या भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के मानदंडों का अनुपालन नहीं कर रही थीं। विदेशी शराब के 51% परीक्षण मामलों में, रिपोर्टें या तो 1 वर्ष से पुरानी थीं, गायब थीं, या उन पर कोई तारीख नहीं थी। जो बड़ी लापरवाही को दर्शाता है।
12. तस्करी के खिलाफ भी जरूरी कार्रवाई नहीं हुई
आबकारी खुफिया ब्यूरो यानी EIB तस्करी के खिलाफ सक्रिय कार्रवाई करने में विफल रही। खासकर देशी शराब की, जो जब्त किए गए स्टॉक का 65% हिस्सा थी। उन्होंने सक्रिय कार्रवाई करने के बजाय केवल जब्ती दर्ज की। FIR एनालिसिस से कुछ क्षेत्रों में बार-बार तस्करी के पैटर्न का पता चला। फिर भी सरकार कार्रवाई करने में विफल रही। जो लापरवाही या संभावित मिलीभगत का संकेत है।
13. अवैध शराब व्यापार को बढ़ावा
आबकारी विभाग ने खंडित और बुनियादी रिकॉर्ड बनाए रखे। जिससे राजस्व घाटे या तस्करी के पैटर्न को ट्रैक करना असंभव हो गया। आपूर्ति प्रतिबंधों, सीमित ब्रांड विकल्पों और बोतल के आकार की बाधाओं के कारण, अवैध देशी शराब का व्यापार फल-फूल रहा था।
14. नियम तोड़ने वाले शराब लाइसेंसधारियों के खिलाफ एक्शन नहीं
आबकारी कानूनों का उल्लंघन करने वाले शराब लाइसेंसधारियों को दंडित करने में AAP सरकार विफल रही। आबकारी छापे मनमाने ढंग से किए गए, जिससे कोई असर नहीं हुआ। सबूत एकट्ठा करने और पुष्टि करने में विफलता ने उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मामलों को कमजोर कर दिया। रिपोर्ट गलत थीं, और कारण बताओ नोटिस भी गलत तरीके से तैयार किए गए थे।
15. सुरक्षा लेबल परियोजना को छोड़ा गया
लेबल की सुरक्षा बढ़ाने के लिए आबकारी चिपकने वाले लेबल की परियोजना को लागू नहीं किया जा सका। जिससे आपूर्ति श्रृंखला धोखाधड़ी के लिए असुरक्षित हो गई।