नई दिल्लीः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एक दुर्लभ संवैधानिक प्रावधान का प्रयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायलय से 14 सवालों पर राय मांगी है। राष्ट्रपित द्वारा यह सवाल इसलिए पूछे गए हैं ताकि यह तय किया जा सके कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपालों को सहमति के लिए भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा का पालन करना होगा जबकि संविधान में ऐसा कुछ निर्दिष्ट नहीं है। 

राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से मांगी गई यह राय अदालत के उस फैसले के बाद आई है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए राज्य सरकारों से आए सहमति के लिए विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई थी। 

राष्ट्रपति ने क्या सवाल पूछे?

ऐसे में राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद-143 का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से जो 14 सवाल पूछे हैं उनकी सूची नीचे दी गई है। संविधान का अनुच्छेद-143 राष्ट्रपति को कानून या तथ्य के प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श का अधिकार प्रदान करता है।  

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत विधेयक प्रस्तुत किए जाने पर राज्यपाल के समक्ष संवैधानिक विकल्प क्या हैं?

2. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल के समक्ष कोई विधेयक प्रस्तुत किए जाने पर वह अपने पास उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते हुए मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सहायता एवं सलाह से बाध्य है?

3. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?

4. क्या भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल के कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?

5. संवैधानिक रूप से निर्धारित समय-सीमा, तथा राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में, क्या राज्यपाल द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत सभी शक्तियों के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय-सीमाएं लागू की जा सकती हैं तथा प्रयोग का तरीका निर्धारित किया जा सकता है?

6. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है?

7. संवैधानिक रूप से निर्धारित समय-सीमा और राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में, क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय-सीमा लागू की जा सकती है और प्रयोग का तरीका निर्धारित किया जा सकता है?

8. राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली संवैधानिक योजना के प्रकाश में, क्या राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत संदर्भ के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने और राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की सहमति के लिए या अन्यथा किसी विधेयक को आरक्षित करने पर सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने की आवश्यकता है?

9. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और अनुच्छेद 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के फैसले कानून बनने से पहले के चरण में न्यायोचित हैं? क्या न्यायालयों को किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय-वस्तु पर किसी भी तरह से न्यायिक निर्णय लेने की अनुमति है?

10. क्या संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग और राष्ट्रपति/राज्यपाल के आदेशों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत किसी भी तरह से प्रतिस्थापित किया जा सकता है?

11. क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की स्वीकृति के बिना लागू कानून माना जाता है?

12. भारत के संविधान के अनुच्छेद 145(3) के प्रावधान के मद्देनजर, क्या इस माननीय न्यायालय की किसी भी पीठ के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके समक्ष कार्यवाही में शामिल प्रश्न ऐसी प्रकृति का है जिसमें संविधान की व्याख्या के रूप में कानून के पर्याप्त प्रश्न शामिल हैं और इसे न्यूनतम पांच न्यायाधीशों की पीठ को संदर्भित किया जाए?

13. क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां प्रक्रियात्मक कानून के मामलों तक सीमित हैं या भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 निर्देश जारी करने/आदेश पारित करने तक विस्तारित है जो संविधान या लागू कानून के मौजूदा मूल या प्रक्रियात्मक प्रावधानों के विपरीत या असंगत हैं?

14. क्या संविधान, भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के अंतर्गत मुकदमे के अलावा, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को हल करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य क्षेत्राधिकार पर रोक लगाता है?

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में फैसला आठ अप्रैल को सुनाया गया था। इसके लिए याचिका तमिलनाडु सरकार की ओर से दायर की गई थी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार द्वारा राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजे गए 10 विधेयकों पर सहमति न देने के खिलाफ फैसला सुनाया था। 

राज्यपाल द्वारा इन विधेयकों को वापस भेज दिया गया था जिसके बाद राज्य सरकार ने विधेयकों को उसी रूप में पास कराया गया। वहीं, राज्यपाल ने इन विधेयकों को राष्ट्रपति के पास ऐसे समय में भेजा जब राज्य सरकार द्वारा दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रही थी। 

न्यायालय के समक्ष प्रश्न संविधान के अनुच्छेद- 200 के तहत राज्यपाल की शक्ति और सहमति प्रदान करने की प्रक्रिया तथा अनुच्छेद-201 के तहत राज्यपाल द्वारा भेजे गए संदर्भ पर कार्रवाई करने की राष्ट्रपति की शक्ति से संबंधित था। 

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्यपाल द्वारा सहमति न देने की कार्रवाई को अवैध और त्रुटिपूर्ण माना था। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए मामले को राज्यपाल के पास भेजे बिना 10 विधेयकों को मान्य स्वीकृति मान लिया गया था। 

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इसके बाद इसमें समयसीमा भी तय की गई थी कि यदि किसी विधेयक को राज्यपाल सहमति नहीं देता है या उसे राष्ट्रपति के पास विचार के सुरक्षित रखता है तो उसे प्रस्तुत किए जाने के तीन महीने के भीतर किया जाना चाहिए। राज्यपाल को तुरंत अनुमति देनी होगी या अगर राज्य विधेयक को पुनः पास कराकर भेजता है तो उसे एक महीने के भीतर अनुमति देनी होगी। 

वहीं, सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय में राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय की गई थी जिसमें कहा गया था कि यदि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास कोई बिल विचार हेतु भेजा जाता है तो तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। हालांकि संविधान के अनुच्छेद-201 में समय सीमा के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय में कहा गया था कि यदि राष्ट्रपति तीन महीने से अधिक किसी विधेयक को अपने पास रखते हैं तो राष्ट्रपति कार्यालय को संबंधित राज्य को कारण बताना होगा। इसके साथ ही कहा गया था कि जब राष्ट्रपति के पास राज्यपाल द्वारा भेजा गया विधेयक "स्पष्ट रूप से असंवैधानिक" प्रतीत होता है तो उसे राष्ट्रपति को अनुच्छेद-143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेनी चाहिए।