नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और राज्य सरकार के अधिकारों को लेकर अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मामले पर सुनवाई करते हुए तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा दस विधेयकों को रोककर रखने पर नाराजगी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधेयकों को रोककर रखना अनुच्छेद 200 का उल्लंघन और अवैध है। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास विधेयक यदि दूसरी बार भेजे गए हैं तो उन्हें इनकी मंजूरी जरूर देनी चाहिए। राज्यपाल किसी विधेयक को तभी रोककर रख सकते हैं जब बिल पहले वाले विधेयक से अलग हो।
कोर्ट ने रद्द की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि राज्यपाल को उस समय विधेयक को मंजूरी देनी चाहिए जब राज्य विधानसभा में दोबारा से सलाह-मशविरा के बाद कोई विधेयक उनके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है और वे केवल तभी मंजूरी देने से इंकार कर सकते हैं जब विधेयक अलग हो। इसके बाद राज्यपाल की तरफ से 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करने की कार्रवाई अवैध, मनमानी मानते हुए कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया।
कोर्ट ने साफ किया कि ये सभी 10 विधेयक राज्यपाल के समक्ष दोबारा से भेजे जाने की तारीख ही से स्पष्ट माने जाएंगे। अदालत ने कहा कि जब कोई समय सीमा नहीं होती है तो इसे उचित समय सीमा के भीतर करना चाहिए। न्यायालयों को एक निश्चित समय के भीतर किसी काम को पूरा करने का निर्देश देने का पूरा अधिकार है।अनुच्छेद 200 के तहत समय सीमा का निर्धारण मनमाने निष्क्रियता को कम करने के लिए है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने यह भी साफ किया कि ये सभी 10 विधेयक राज्यपाल के समक्ष दोबारा से भेजे जाने की तारीख ही से स्पष्ट माने जाएंगे। कोर्ट ने कहा कि जब कोई समय सीमा नहीं होती है तो इसे उचित समय सीमा के भीतर करना चाहिए। न्यायालयों को एक निश्चित समय के भीतर किसी काम को पूरा करने का निर्देश देने का पूरा अधिकार है। अनुच्छेद 200 के तहत समय सीमा का निर्धारण मनमाने निष्क्रियता को कम करने के लिए है।