साउथ दिल्ली का मंदाकिनी। इसे ग्रेटर कैलाश का हिस्सा भी कहते हैं। धनी और कुलीन लोगों के इधर आशियाने हैं। पर इनके बीच में एक बेहद खासमखास शख्सियत भी यहां पर सपरिवार रहती थी। अगर आप खेलों की दुनिया के शैदाई हैं या फिर गणतंत्र दिवस की परेड को रेडियो या टीवी पर देखते-सुनते रहे हैं,तो आपने उनकी पुरकशिश आवाज सुनी होगी। आप समझ गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं जसदेव सिंह की।
जसदेव सिंह: यारों के यार थे
जसदेव सिंह के फ्लैट के ड्राइंग रूम में उनकी कई तस्वीरें लगी हैं। अधिकतर में वे खिलखिला रहे हैं। उनके जीवन काल में उनके फ्लैट में दोस्तों और प्रशंसकों का तांता लगा रहता था। अब वे नहीं रहे तो भी उनके फ्लैट की पहचान जसदेव सिंह के घर के रूप में होती है। उनका 2018 में निधन हो गया था। वे यारबाश थे। उनके साथ अगर चार दोस्त लंच नहीं करते तो उन्हें खाना हज्म नहीं होता था।
वे फोन करके दोस्तों को लंच पर बुलाया करते थे। उनके पास किस्सों- कहानियों का खजाना था। जसदेव सिंह घर का दरवाजा खोलते ही आपका बड़ी गर्मजोशी के साथ स्वागत करते थे। आपको सोफे पर बिठाते। बात शुरू होती, तब ही उनकी पत्नी कृष्णा जी भी आ जाती थीं।
किनकी फोटो लगी है वहां
जसदेव सिंह के घर के ड्राइंग रूम में आपकी नजर दो फोटो पर तुरंत जाती है। पहली फोटो तो उस यादगार लम्हे की है, जब वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिल रहे हैं। फोटो 1975 की है। बैकग्राउंड में विश्व कप विजेता भारतीय हॉकी टीम भी खड़ी है। आपको पंजाब और बीएसएफ के पूर्व डीजीपी अश्वनी कुमार, मंत्री उमराव सिंह वगैरह दिखते हैं। उस विश्व कप की कमेंट्री जसदेव सिंह ने ही की थी।
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कह सकते हैं कि उस वर्ल्ड कप की कमेंट्री ने उन्हें सारे देश में पहचान दिलाई थी। वे उस गति से कमेट्री करते थे, जिस रफ्तार से गेंद मैदान में इधर-उधर घूम रही होती थी। दूसरी फोटो उनके जवानी के दिनों की है। वे बड़े सोणे सरदार थे। चाय और नाश्ते के साथ न्याय करते हुए वे बताते थे, 'यहां पर हम मियां-बीवी के अलावा बेटा–बहू रहते हैं। बेटे गुरुदेव सिंह का अपना बिजनेस है। उसने भी कमेंट्री की है, पर कारोबार की मसरूफियत के चलते गुरुदेव अब कमेंट्री नहीं करते। पोता अमेरिका में है। पोती की शादी हो चुकी है। बेटी पटना भी ब्याही है।'
किसे गुरु मानते थे जसदेव सिंह
जसदेव सिंह के साथ बातचीत के दौरान आकाशवाणी के महान समाचार वाचक देवकीनंदन पांडे और मेलविल डिमेलो का जिक्र लाजिमी तौर पर आ ही जाता था। वे कहते थे, 'मैंने देवकीनंदन पांडे से नुक्ते के प्रयोग से लेकर शब्दों के सही उच्चारण को सीखा। उनका समाचारों को पढ़ने का अलग विशिष्ट अंदाज था। उनका उच्चारण अतुल्नीय था। पांडे जी की वाणी में सरस्वती का वास होता था। उनके समाचार बुलेटिनों को करोड़ों लोग सुन कर देश-दुनिया की हलचलों को जान पाते थे। तब समाचारों में शोर और कोलहाल के लिए जगह नहीं होती थी। मतलब खबरों को बिना किसी निजी राय या दृष्टिकोण के परोसा जाता था। समाचार जैसे होते थे वैसे ही प्रस्तुत कर दिए जाते थे। यह वह समय था जब आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उच्चारण तथा प्रस्तुति बहुत महत्व रखता था।'
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जसदेव सिंह अंग्रेजी भाषा के समाचार वाचक मेलविल डिमेलो का भी दिल से आदर करते थे। पंडित नेहरू ने आकाशवाणी से 30 जनवरी, 1948 को रात 8 बजे देश-दुनिया को रुंधे गले से महात्मा गांधी के संसार से चले जाने का समाचार दिया। उसके फौरन बाद 35 साल के एंग्लो इंडियन नौजवान मेलविल डिमेलो ने अंग्रेजी के समाचार बुलेटिन में विस्तार से महात्मा गांधी की हत्या संबंधी खबर सुनाई।
जसदेव सिंह बताते थे कि 'मेलविल डिमेलो ने ही बापू की महाप्रयाण यात्रा का आंखों देखा हाल सुनाया था। आकाशवाणी पहली बार किसी शख्यिसत की अंतिम यात्रा की कमेंट्री का प्रसारण कर रही थी। मैंने उस शवयात्रा का आंखों देखा हाल जयपुर में सुना था। उसके बाद मैंने तय कर लिया था कि मैं भी रेडियो में काम करूंगा।'
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अच्छा हॉकी कॉमेंटेटर कैसा होता है?
जसदेव सिंह कहते थे कि एक अच्छा हॉकी कमेंटेटर खेल को रोमांचक और मनोरंजक बनाने के साथ-साथ दर्शकों को सूचित और शिक्षित भी करता है। उसे हॉकी के नियमों की अच्छी समझ होनी चाहिए और वे विभिन्न रणनीतियों और संरचनाओं को समझाने में सक्षम होने चाहिए जिनका उपयोग टीमें करती हैं। उसे खिलाड़ियों, उनकी ताकत और कमजोरियों, और उनके करियर के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
इसके अलावा, अच्छे कमेंटेटर को खेल की गतिशीलता को समझना चाहिए, जैसे कि गति कब बदलती है, टीमें कब दबाव डालती हैं, और कब रक्षात्मक हो जाती हैं।
इसके अलावा, उसकी आवाज स्पष्ट और समझने में आसान होनी चाहिए। मशहूर खेल कमेंटेटर गौस मोहम्मद भी जसदेव सिंह के घर में लगातार जाया करते थे। वे कहते हैं कि जसदेव सर अपने जूनियर कमेंटेटरों से भी खिलाड़ियों के नामो का सही उच्चारण पूछा करते थे। वे खेल को रोमांचक बनाने के लिए जीवंत और आकर्षक भाषा का उपयोग करते थे।
गौस मोहम्मद कहते हैं कि जसदेव सिंह की कमेंट्री में किसी भी टीम या खिलाड़ी के प्रति पक्षपात का भाव नहीं होता था। वे हर मैच से पहले अच्छी तरह से तैयार होकर आते थे। उन्हें खिलाड़ियों और टीमों के बारे में भरपूर जानकारी होती थी। उनकी कमेंट्री सुनकर श्रोताओं को लगता था कि वे मैदान में ही हैं।
अमीन स्यानी से लेकर पत्रकार
जसदेव सिंह के घर में एक दौर में अमीन स्यानी, आकाशवाणी के चोटी के समाचार वाचक देवकीनंदन पांडे, तमाम हॉकी खिलाड़ियों, पत्रकारों, लेखकों की महफिलें चलती थीं। अब तो बस यादें शेष हैं उन महफिलों की। ड्राइंग रूम में ही जसदेव सिंह जी की आत्मकथा की एक कॉपी भी पढ़ी।
उसे एक बार हमें देते हुए उन्होंने बताया था- 'मैंने वर्ष 1963 से गणतंत्र दिवस परेड का रेडियो पर आखों देखा हाल सुनाना शुरू किया था। करीब पचास साल तक यह सिलसिला चला। सब मेरे सिख होने के बावजूद मेरे हिन्दी भाषा के शुद्ध उच्चारण, बेहतरीन आवाज और ज्ञान की प्रशंसा करते थे। मैं इसे वाहे-गुरु का आशीर्वाद ही मानता हूं।'
पंजाब का सरदार नहीं
पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित जसदेव सिंह कहते थे- 'मैं पंजाब का सरदार नहीं हूं। मैं दुनिया के किसी कोने में जाऊं पर जो सुकून इस घर में मिलता है, वैसा और कहीं नहीं मिलता। सुबह-शाम सारा परिवार कुछ देर के लिए साथ बैठकर गप जरूर मारता है।'
वहां बैठी कृष्णा जी अचानक से बताने लगती थी कि 'मेरा संबंध तो राजस्थान के एक मारवाड़ी परिवार से है। महान स्वाधीनता सेनानी और कारोबारी जमनालाल बजाज मेरे रिश्ते के दादा थे। बजाज आटो लिमिटेड के चेयरमेन राहुल बजाज मेरे रिश्ते के भाई थे। जसदेव सिंह से शादी करने के बाद मैंने गुरु ग्रंथसाहिब का नियमित पाठ करना शुरू कर दिया।'
कृष्णा जी अपनी बात खत्म करती तो जसदेव सिंह फख्र के साथ बताते कि हमारे घर के मंदिर में हिन्दू देवी-देवताओं के साथ गुरुग्रंथ साहिब भी है। आप यहां सर्वधर्म समभाव को महसूस कर सकते हैं।
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जसदेव सिंह आकाशवाणी की 1989 में नौकरी से रिटायर होने के बाद अपने इस घर शिफ्ट कर गए थे। कई सालों तक चाणक्यपुरी में भी रहे। उनके फ्लैट में तीन बेडरूम, ड्राइंग-डायनिंग के अलावा दो बालकनी हैं। वे सुबह बालकनी में बैठकर कड़क चाय पीते हुए अखबारों को चाटते थे। आपको अगर आपको उनका फ्लैट नहीं मिल रहा है, तो किसी से पूछ लीजिए,वो आपको सही रास्ता बता देगा। जाहिर है, जसदेव सिंह को इधर सब जानते हैं।
मारवाड़ी और सिख विवाह
मारवाड़ी परिवार से संबंध रखने वाली कृष्णा जी और जसदेव सिंह जी ने वर्ष 1957 में विवाह किया था। तब जयपुर में बहुत चर्चित हुआ था सिख और मारवाड़ी का मंगल मिलन। जसदेव सिंह अपने जीवन के गुजरे पन्नों को दोस्तों के सामने अवश्य साझा करते थे। बताते थे कि उन्होंने सन 1955 में रेडियो जयपुर में नौकरी शुरू की। सन 1961 में पहली दफा लाल किले से स्वतंत्रता दिवस समारोह और फिर सन 1963 में राजपथ से गणतंत्र दिवस समारोह की कमेंट्री की। ये क्रम दशकों निरंतर जारी रहा। उन्होंने नौ ओलंपिक खेल, छह एशियाई खेल और आठ हॉकी विश्वकप चैंपियनशिप में कमेंट्री की।
आप जसदेव सिंह के घर में कुछ वक्त बिताने के बाद निकलते हैं। उनकी यादें आपको घेर लेती हैं। तब जेहन में एक शेर आता है-
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया।