अब भी पचास पार कर चुकी पीढ़ी को रेडियों पर खबरें सुनते हुए याद आने लगते हैं देवकीनंदन पांडे, अशोक वाजपेयी, विनोद कश्यप, अनादि मिश्र, रामानुज प्रसाद सिंह, राजेन्द्र अग्रवाल, इंदु वाही जैसे आकाशवाणी के श्रेष्ठ न्यूज रीडर। माता-पिता अपने बच्चों को कहा करते थे कि वे देवकीनंदन पांडे और अन्य समाचार वाचकों की बुलंद आवाज में सुनाई जा रही खबरों को सुनें ताकि वे शब्दों का शुद्ध उच्चारण जान लें।

दरअसल एक दौर था जब देश आकाशवाणी से प्रसारित होने वाली खबरों को गंभीरता से सुनता था और उन पर चर्चाएं हुआ करती थी। हालांकि देवकीनंदन पांडे ने हजारों बार खबरें पढ़ीं, पर नेहरू जी और श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु के समाचारों को पढ़ते हुए उनके हाथ कांप रहे थे। वे बताते थे कि इतनी बड़ी शख्सियतों की मृत्यु का सामाचार देश को देना कोई आसान काम नहीं था। देवकीनंदन पांडे के साथी उनसे नुक्ते के प्रयोग से लेकर शब्दों के सही उच्चारण को सीखा करते थे।

रामानुज प्रताप सिंह और विनोद कश्यप

देवकी नंदन पांडे के साथ दशकों आकाशवाणी में काम करने वाले रामानुज प्रताप सिंह भी कमाल के समाचार वाचक थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के भतीजे रामानुज प्रसाद सिंह का समाचारों को पढ़ने का अलग विशिष्ट अंदाज था। उनका उच्चारण भी अतुल्नीय था। वे पटना लॉ कॉलेज से थे। उनकी पत्नी मणिमाला जी आकाशवाणी की नेपाली भाषा की सेवा में समाचार वाचक थीं।

Devkinandan Pandey
Photograph: (गूगल)

आकाशवाणी की लोकप्रिय समाचार वाचिकाओं में विनोद कश्यप भी थीं। 30 वर्षों से अधिक समय तक अपनी आवाज़ से समाचारों को घर-घर पहुंचाने वाली विनोद जी 1992 मे आकाशवाणी से रिटायर हुईं थीं। उनकी 2019 में मृत्यु हो गई थी। विनोद कश्यप ने ही देश को भारत-चीन युद्ध, भारत पाकिस्तान युद्ध ( 1965, 1971), और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के समाचार सुनाए थे।

विनोद कश्यप को देवकीनंदन पांडे के बाद आकाशवाणी के सबसे लोकप्रिय समाचार वाचक के रूप में देखा जाता था। देवकीनंदन पांडे और विनोद कश्यप प्राय: आकाशवाणी के सुबह 8 बजे या फिर रात 9 बजे के 15 मिनट के बुलेटिनों को पढ़ा करती थीं। इन दोनों बुलेटिनों को करोड़ों लोग सुन कर देश-दुनिया की हलचलों को जान पाते थे। इनकी वाणी में सरस्वती का वास होता था।

राजेन्द्र अग्रवाल का आकाशवाणी के साथ लंबा सफर

आकाशवाणी के गुजरे दौर के प्रख्यात न्यूज रीडर राजेन्द्र अग्रवाल का भी कुछ समय पहले निधन हो गया। इस तरह से देवकीनंदन पांडे, अशोक वाजपेयी और विनोद कश्यप जैसे लोकप्रिय समाचार वाचकों के युग का अंत हो गया। राजेन्द्र अग्रवाल ने 1964 में आकाशवाणी, दिल्ली में न्यूज रीडर के रूप में काम करना आरंभ किया था। उसके बाद उन्होंने 1996 तक हजारों बार खबरें पढ़ीं। रामानुज प्रसाद सिंह के बाद वे बिहार से संबंध रखने वाले दूसरे आकाशवाणी दिल्ली में हिन्दी के न्यूज रीडर थे।

Vinod Kashyap
Photograph: (फेसबुक)

 राजेन्द्र अग्रवाल का संबंध बेगूसराय से थे। उन्होंने दशकों तक राजपथ (अब कर्तव्यपथ) से गणतंत्र दिवस परेड का आंखों देखा हाल जसदेव सिंह के साथ भी सुनाया। राजेन्द्र अग्रवाल उस दौर में आकाशवाणी के श्रेष्ठ न्यूज रीडर के रूप में स्थापित हुए थे जब आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले समाचारों को करोड़ों भारत वासी अपने घरों, बाजारों और अन्य स्थानों पर सुना करते थे। आकाशवाणी के समाचार वाचकों को सारा देश ही जानता था और उनकी आवाज को पहचानता था। 

राजेन्द्र अग्रवाल ने भारत पाकिस्तान युद्ध (1965 और 1971) के समाचार भी सुनाए थे। राजेन्द्र अग्रवाल कहते थे कि उन्होंने देवकीनंदन पांडे से खबरों को पढ़ने का सलीका जाना। वे बताते थे कि आकाशवाणी के सुबह 8 बजे या फिर रात 9 बजे के 15-15 मिनट के बुलेटिनों करोड़ों लोग सुन कर देश-दुनिया की हलचलों को जान पाते थे। तब समाचारों  में शोर और कोलहाल के लिए जगह नहीं होती थी। मतलब खबरों को बिना किसी निजी राय या दृष्टिकोण के परोसा जाता था। समाचार जैसे होते थे वैसे ही प्रस्तुत कर दिए जाते थे। यह वह समय था जब आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उच्चारण तथा प्रस्तुति बहुत महत्व रखता था।

अंग्रेजी में मेलविल डिमेलो थे चर्चित नाम

आकाशवाणी के महान समाचार वाचकों की चर्चा हो और अंग्रेजी भाषा के समाचार वाचक मेलविल डिमेलो का नाम छूट जाए यह तो नहीं हो सकता। पंडित नेहरू ने आकाशवाणी से 30 जनवरी, 1948 को रात 8 बजे देश-दुनिया को रुधे गले से महात्मा गांधी के संसार से चले जाने का समाचार दिया। उसके फौरन बाद 35 साल के एंग्लो इंडियन नौजवान मेलविल डिमेलो ने अंग्रेजी के समाचार बुलेटिन में विस्तार से महात्मा गांधी की हत्या संबंधी खबर सुनाई। 

उन्होंने ही बापू की महाप्रयाण यात्रा का आंखों देखा हाल सुनाया। आकाशवाणी पहली बार किसी शख्यिसत की अंतिम यात्रा की कमेंट्री का प्रसारण कर रही थी।

उस शवयात्रा का आंखों देखा हाल जयपुर में जसदेव सिंह नाम का एक नौजवान भी सुन रहा था। उसने उस दिन तय कर लिया था कि वह भी रेडियो में कमेंट्री के पेशे से जुड़ेगा। वह हुआ भी भी। जसदेव सिंह बताते थे कि मेलविल डिमेलो ने लगातार सात घंटे तक कमेंट्री सुनाई। उन्होंने सारे माहौल को अपने शब्दों से जीवंत कर दिया था। उस भावपूर्ण कमेंट्री को करोड़ों हिन्दुस्तानी रोए थे।

बेशक बापू की शवयात्रा की कमेंट्री करने के बाद सारा देश मेलविल डिमेलों के नाम से वाकिफ हो गया था। वे बाद के वषों में लगातार गणतंत्र दिवस परेड की भी कमेट्री करते थे। डिमेलो साहब की 1991 में मृत्यु हो गई थी।  वैसे अंग्रेजी में सुरजीत सेन और बरून हवलदार भी बेहतरीन समाचार वाचक थे।

अब हमारे यहां देवकीनंदन पांडे या विनोद कश्यप जैसे श्रेष्ठ समाचार वाचक क्यों नहीं आ रहे? आखिर कमी किस स्तर पर है? कौन देगा इस सवाल का जवाब?