मध्यांतर

मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी की लोकप्रिय कथाकार हैं। राजस्थान में जन्मी, पली-बढ़ी, वहाँ का कहन और इतिहास बोध इनकी लेखनी में है। भारतेन्दु की प्रेयसी और प्रेरणा पर इनका उपन्यास ‘मल्लिका’ बहुप्रशंसित रहा। यात्राएँ इनके जीवन में अनिवार्य तौर पर रहीं और चाव बन गईं, कैलाश मानसरोवर पर इनका यात्रा वृत्तान्त ‘होना अतिथि कैलाश का’ भी काफी चर्चित रहा है। यहां प्रस्तुत है उनके राजपाल से आनेवाले आगामी उपन्यास का एक रोचक अंश-

manisha kulshreshtra,

(यही जीवन है। एक मौसम के बाद, हरे पत्ते हमेशा रंग बदलते हैं और पेड़ों से गिर जाते हैं। शहर छूट जाते हैं, भले ही आप खुद से कहते हों कि आप उस ज़मीन पर मरने वाले हैं। जिंदादिल जवान लोग अपनी गलतियों पर पछताते हुए बूढ़े हो जाते हैं। अधेड़ उम्र का प्रेम अंधा नहीं रहता, माइक्रोस्कोपिक निगाह वाला हो जाता है। जिसे अपने अनुभवों के चलते बहुत कुछ अतिरिक्त दिख रहा होता है। किसी भी नाटक, फिल्म के मध्यांतर के बाद यही तो होता है। )

मध्यांतर

1

“कौन है वहाँ?” प्रोफेसर घोष ने पुकारा। जवाब समुद्र के धीमे गर्जन ने दिया। मेडिटेरेनियन की मंद्र गर्जन.....ग़रर....गरर। वे अपनी तेज चाल से समुद्र किनारे बने उस ‘कबाना’ में पहुंचे। नीले अंधेरे में खोई एक स्त्री की सतर पीठ थी। न युवा न अधेड़....वह अंधेरे में अपने तमाम रंग खो चुके समुद्र को घूरे जा रही थी। उसके पास प्लेटफ़ॉर्म पर एक सुनहरी बिल्ली ऊंघ रही थी।

“इस समय आप यहां क्या कर रही हैं?” वह मुड़ी उसने काली लंबी स्कर्ट पर एक शॉल लपेटा हुआ हुआ था। उसके घुँघराले बाल ठंडी और सीली हवा में आपस में और उलझ गए थे। समुद्र और आकाश से उठती नीली रोशनी में उसका चेहरा पीला सा था। मगर आँखें ….मानो दो लाइट हाउस, पास-पास।

“.......क्या समय हुआ होगा?” जब उसने अपनी उनींदी आँखें झपकाईं, उसके पतले होंठ हिल कर भिंच गए।
“रात का एक बजा है।”प्रोफेसर की हैरत भरी भारी आवाज से चौंक कर पास के विशाल पेड़ पर बैठा रेवन कव्वों का झुंड जाग कर कांव-कांव करके चुप हो गया। वह हंसी। अजीब-सी हंसी जो तमाम खारी झीलों का सीना चीर कर निकले किसी मीठे सोते जैसी-सी थी।
“डरें नहीं। मैं यहां मरने के इरादे से नहीं आई थी। बस अजीब से सपने से नींद खुली और मैं फिर सो न सकी बिना समय देखे इधर चली आई। मैं उधर कॉटेज में ही ठहरी हूँ। और आप इस वक्त?”

“मैं और मेरा कलीग आखिरी पैग के बाद सिगरेट पीने इधर चले आए थे। वो गया ही था कि मैंने आपको देखा....आइए आपको छोड़ दूँ आपके कॉटेज तक, रात काफी हो गई है और ठंडक भी काफी है।” घुँघराले बालों को हाथ से पीछे कर शॉल को कसते हुए उसने गौर किया, साथ चल रहे इस अधेड़ व्यक्ति ने आखिरी वाक्य हिंदी में बोला था। लंबे कद और गोरे रंग के बावजूद वह टर्किश तो नहीं ही था।

“आप भारत से हैं?”
“मूलत: पर अमेरिका में रहता हूँ।”
“हम्म....थैंक्यू। बस अब मैं चली जाऊँगी....” बड़े बड़े पेड़ों के बीच एक पगडंडी पर चल कर धुंधलके में डूबी एक जुड़वां कॉटेज की तरफ वह चली गई। वह कुछ देर वहीं रुका और इस अजीब सी लड़कीनुमा स्त्री के बारे में सोचता हुआ रिसॉर्ट की बहुमंजिला इमारत में अपने कमरे में चला आया। पर्दा हटा कर खिड़की से झाँका अंताल्या के इस समुद्र तट पर रात का सन्नाटा था। चाँद की चांदनी में लहरें चुपचाप किनारे से टकरा रही थीं।
कौन थी वह जो काली स्कर्ट में आधी रात समुद्र के किनारे खड़ी थी, उसका चेहरा चाँदनी में कैसा रहस्यमय लग रहा था। उसकी आँखें गहरी और रोशन थीं, मानो सैकड़ों साल पुरानी कहानियाँ छिपाए हुए बैठी हों। अल्कोहॉल उनकी नसों को शिथिल कर रहा था। ये पुरातत्व के अध्येता प्रोफेसर समरेश घोष थे। सदियों की परतों में छिपे अवशेषों और रहस्यों को खोजते हुए। हरेक इतिहासविद की तरह उन्हें कहानियों में यकीन था। उस पर आज बहुत बरसों बाद मिले पुराने साथी बालियान ने ‘राके’ पिलाई थी। कह रहा था – “समर अब यह तुर्किए वह टर्की नहीं रहा। अब लिसीयन-रोमन खंडहरों में सत्ता की दिलचस्पी नहीं।“ समर क्या कहता? इतिहास को लोग कब तटस्थ होकर देखना चाहते? कपड़े बदल कर वह रज़ाई में जा घुसा।

“तुम फिर यहां?”
"मैं यहाँ हर रात आती हूँ, प्रोफेसर। इस समुद्र में मेरी कहानी दफन है।"
"मेरे बारे में कैसे जानती हो?"
"मैं बहुत कुछ जानती हूँ, आप इतिहासकार हैं।" उसने कहा, और उसकी आवाज में लहरों की गूँज थी।
"क्या आपने अंताल्या के प्राचीन मंदिरों की कथा सुनी है? वहाँ एक पुजारिन थी, जिसे समुद्र के देवता ने श्राप दिया था। वह हर रात किनारे पर खड़ी रहती है, अपने प्रेमी की प्रतीक्षा में, जो कभी नहीं लौटा।" प्रोफेसर का मन इतिहास और मिथक के बीच झूलने लगा।
"यह तो महज किंवदंती है," उन्होंने कहा।
"किंवदंती?" लड़की ने हँसते हुए कहा। "मेरे साथ चलें, मैं आपको सच दिखाती हूँ।"
वह धीरे-धीरे समुद्र की ओर बढ़ी, और प्रोफेसर समरेश घोष जैसे सम्मोहन में, उसके पीछे चल पड़े। पानी उनके पैरों को छूने लगा, फिर कमर तक आ गया। अचानक, लड़की गायब हो गई। प्रोफेसर ने चारों ओर देखा, लेकिन वहाँ सिर्फ लहरें थीं। तभी, उनके हाथ में कुछ ठंडा-सा बंद था। उन्होंने देखा—एक प्राचीन सिक्का, जिस पर एक पुजारिन की आकृति थी। सिक्के के पीछे ग्रीक में लिखा था: "समुद्र की बेटी, थेटीस”

समरेश की नींद खुल गई और उसे हंसी आ गई जब भी वह यहाँ की ‘राके’ पीता है अजीब ही सपने देखता हैं। एक दम साफ और पारदर्शी कि सत्य और स्वप्न के बीच की रेखा घुल जाए। उसने बॉलकनी में आकर सिगरेट सुलगा ली। मैडिटेरेनियन समुद्र को तुर्कीए में ‘अकदेनिज़" (Akdeniz) के नाम से पुकारा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है "सफेद सागर"। और यह किनारा अंताल्या के पास एक कस्बे केमेर का था, जहाँ वह समुद्र किनारे पालोमा फोरेस्टा रिसॉर्ट में एक पाँच दिन की इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन एनशिएन्ट हिस्ट्री एण्ड आर्ट में भाग लेने आया हुआ था।

आखिर अंताल्या और इसके आसपास का इतिहास प्राचीन लाइकियन सभ्यता से शुरू होकर ग्रीक, रोमन, बाइज़ेंटाइन, सेल्जूक, और ओटोमन युगों तक फैला है। यह क्षेत्र न केवल अपने ऐतिहासिक खंडहरों और स्मारकों के लिए बल्कि अपनी सांस्कृतिक विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। वह यहां तीसरी बार आया है। सपने ने उसे अजीब-सी बेचैनी में भर दिया था। अगर वह अब भी सोया नहीं तो पूरा दिन खराब हो जाएगा। कल कॉन्फ्रेंस का पहला दिन है। उसने नींद की आधी गोली खाकर जबरन खुद को बिस्तर पर धकेल दिया।

सुबह सात बजे उसकी नींद खुल गई। एक बॉलकनी से तौरस पर्वत का विराट हिस्सा यूं दिख रहा था मानो भीतर चला आएगा और पूछेगा – कैसे हो समरेश? खिड़की से भूमध्य सागर की शांत धीमी लहरें एक वॉयलिन-सा बजा रही थीं। उसने अपने लिए गहरी काली कॉफी बनाई उसमें नमकीन बटर की एक छोटी डली डाली और रात के पहने शॉर्ट्स पर सफेद टी शर्ट डाल कर कमरे से निकल आया। पालोमा फोरेस्टा घने पेड़ों के बीच बना बीच रिसॉर्ट था, एक ओर संतरे, नीबू, टैंजेरीन, अनार के बगीचे थे तो दूसरी ओर खजूर जैसे गरम इलाकों के पेड। एक ओर चीडों की कतारें तो कैक्टसों के झाड़ भी। गजब है भूमध्य सागर का इलाका भी यहां सबकुछ एकसाथ घटता है। दिन में गर्मी तो रात में सर्दी, हर मौसम एक साथ। इसीलिए पर्यटकों के हुजूम यहां टिके रहते हैं, नवंबर तक।

वह जब घूमता-घामता समुद्र तट पर पहुँचा जहाँ दो जैट्टी बनी थीं, एक तरफ एक कबाना था, दूसरी तरफ एक रेस्तरां और बार थे। एक जेट्टी पर उसने देखा एक महिला योगमुद्रा में सूर्य की तरफ मुंह किए बहुत देर से स्थिर खड़ी है। नीले समुद्र और आकाश के बीच हाथ फैलाए उसका होना एक रंगीन योजक चिन्ह जैसा था। नियोन पिंक लोअर और स्पोर्ट्स ब्रा में वह सूरज का आह्वान कर रही थी। भारतीय गेहुआ रंगत और उसके घुँघराले बालों से लगा कि संभवत: यह वही है जो कल रात......उसे हल्की-सी उत्सुकता हुई। मगर वह ठीक उलट दिशा में बने कबाना में चला गया वहाँ से एक टॉवल ली अपना कॉफी का मग रखा और समुद्र की शांत लहरों से मिलने कुछ भीतर तक चला गया।

जेट्टी पर समुद्र की तरफ पैर लटकाए एक युवक और युवती लिपटे हुए बैठे थे। शायद अमरीकन थे, उनके पास रखे एक छोटे स्पीकर पर एक गाना बज रहा था – अनटिल आई फाउंड यू....गाने का शोर उसे प्राणायाम में ध्यानस्थ होने से रोक रहा था। वह बस कुछ देर में उठ गई। जब वह उनके पास से गुजरी तो लड़की लड़के के ऊपर अधलेटी थी और दोनों सूर्योदय का जादू देख रहे थे।

प्रेम! कितना ओवररेटेड हो गया है आजकल! जेट्टी से उतर कर वह जब आई तो सामने उसे वही आदमी दिखा जो कल रात जबरन उसकी परवाह करने चला आया था। उसने सर घुमाया लिया मगर वह उसे देख बड़े-बड़े डग भर कर पानी को काटता चला आ रहा था। उसका मन किया खिसक ले। मगर उसके पैर जम गए। एक तो पानी में कौन शॉर्ट्स पहन कर घुसता है? उस पर ऐसा पारदर्शी और ढीला-ढाला जिसमें से सब दिख रहा है। यहां और भी लोग हैं, अजब अहमक है,सनकी ही है क्या! उस पर खींसे निपोर रहा है, हाथ हिला रहा है उसे देखकर ! ये अधेड़ मर्द...उसे बड़ा अजीब लगा…. मगर वह एकदम पास आ गया था अब कोई रास्ता था नहीं खिसकने का।
“हलो! आए’म समरेश।“ उसने पानी से चिपका अपना जाँघिया ठीक किया और पास में रिक्लायनर पर पड़ी तौलिया लपेट ली अपनी छोटी-मोटी तोंद पर। कहीं रहें भारतीय मर्द ये छोटी-मोटी तोंद इनका गहना है।
“मैं नयनतारा….”
“तुम भी हिस्टोरियन हो?”
“नहीं…..मैं एनवायरमेंटलिस्ट…। सॉरी मेरा कॉल है….मिलते हैं बाद में।“ भला हुआ जो बैंगलोर में बैठी मम्मी को अपनी बेटी की याद आ गई, वरना उसे अपनी जन्मकुंडली उस अजनबी अपने देशवासी को बतानी पड़ती। हाँ तो! यह नयनतारा थी, वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिक जो तुर्किए की साल्टलेक पर अध्ययन करने निकले ऐशियन वैज्ञानिकों के सात सदस्यों की मंडली के साथ यहां आई थी। इसी रिसॉर्ट पर इन सबका डेरा था और ये आस-पास घूमते रहते थे। इनका प्रतिनिधित्व करने वाले एक तिरानवे साल के एक चीनी वैज्ञानिक थे। वे टर्की की दूसरी सबसे बड़ी झील, टूज़ गोएलू, जो दुनिया की सबसे बड़ी हाइपरसैलाइन (अत्यधिक खारी) झीलों में से एक है, के संरक्षण के लिए अपनी परियोजना प्रस्तुत करने वाले हैं। वह यहां से बहुत कुछ लेकर
 जाएगी कि वह भारत की सांभर झील के सूखने, जलवायु परिवर्तन, और औद्योगिक प्रदूषण से होने वाले नुकसान से बचाने के उपाय कर सके, फ्लेमिंगो जैसे प्रवासी पक्षियों और स्थानीय जैव विविधता को बचा सके।

माँ को औपचारिक हाल-चाल बता कर, नयनतारा अपने कमरे से तैयार होकर सीधे डायनिंग हॉल में पहुंची। दुनिया भर से आए इन हिस्टोरीयन्स की कॉन्फ्रेंस के चलते भीतर का हॉल पूरा चहल-पहल से भरा था। वह अपना नाश्ता लेकर चीडों के पेड़ों से घिरे खुले हिस्से में आ गई। नयनतारा ने सोचा…..आज बस आराम से पेट भर नाश्ता किया जाए, फिर कमरे में आराम किया जाए। पालोमा रिसॉर्ट वाले दर्जनों किस्म के फल,मेवे, हरी सब्जियाँ, सलाद, बकलावे, हलवे, तरह तरह के सी फूड, सलामी, कीमे, तरह-तरह की ब्रेड्स, दुनिया जमाने के पेय पदार्थों के साथ ब्रेकफ़ास्ट सजाते हैं। उसने अपना वीगन नाश्ता मजे से चुन लिया, फिर टर्किश चाय पी। उसकी जेब में बगीचे में लगे मीठे संतरों के पेड से तोड़ा एक गदबदा संतरा था। उसका गला सिट्रसी महक से भरे रस से गीला हो गया।

अब सारी चहल-पहल एक बड़े हॉल में जाकर समा गई थी। नयनतारा की मंडली कल ही टूज़ गोएलू के गुलाबी नमक के मैदानों से लौटी थी सब अपनी-अपनी प्रेजेंटेशन बनाने के लिए आज सारा दिन अपने कमरों में बिताने वाले थे। नयनतारा का प्रेजेंटेशन छोटा ही सा था – वह अभी बस खुद के साथ मगन रहना चाहती थी। वह धूप के साथ यहां से वहाँ सरक रही थी। फिर वह उठ कर लॉबी में आई। लॉबी के बायीं तरफ एक बड़ा-सा पोस्टर लगा था ’इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस: एनशिएन्ट लाइसियन हिस्ट्री एण्ड आर्ट’। आगे एक गलियारा पार कर एक हॉल था जहाँ यह कॉन्फ्रेंस चल रही थी, नयनतारा के कदम उधर बढ़ गए। उसके हाथ में फाइल्स और एक आइपैड देख किसी ने रोका भी नहीं। वह सौ लोगों से भरे हॉल में पीछे बैठ गई। वह बस ‘की-नोट’ सुनकर निकल जाएगी।
आसमानी नीले सूट में जो बंदा डायस पर आकर खड़ा हुआ वह अपना वही भारतीय मानुस था जो पानी से अधनंगा बाहर आया था.....अब सलीके से कढ़े घने ‘सॉल्ट एंड पेपर’ बाल, टाई....लगाए हुए सजीला लग रहा था। गला खखार कर उसने अमरीकन लहजे में बोलना शुरू किया। बहुत सम्मोहक था उसका बोलना, कितनी भंगिमाएं और कितनी मुद्राएं बनाता था वह बोलते हुए। जैसे मंच पर अभिनय कर रहा हो, आखिर इतिहास अंतत: एक नाटक ही शेष रहता है।
“नमस्ते, आदरणीय अतिथियों, शिक्षकों और मित्रों,
लाइसियन कला, जो प्राचीन लाइसिया सभ्यता से उत्पन्न हुई, न केवल एक कला शैली है, बल्कि तुर्किए की एक समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है। लाइसिया, एक ऐसी सभ्यता थी जो न केवल अपनी अनूठी कला, वास्तुकला और शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध थी। बल्कि अपनी जल प्रबंधन प्रणालियों के लिए भी जानी जाती थी। ये सभ्यताऐं प्रकृति से सामंजस्य बिठा कर चलाने वाली सभ्यताऐं थीं। मैं कई सालों से तुर्कीए आता रहा हूँ। मैंने अनातोलिया के साथ अंताल्या के पास स्थित प्राचीन शहरों जैसे पेरगे, एस्पेंडोस और फासेलिस के खंडहरों का अध्ययन किया है। इन्होंने अपने आस-पास के प्राकृतिक संसाधनों से बखूबी काम लिया। खारी झीलों के आसपास की सभ्यताएँ नमक के व्यापार पर निर्भर थीं तो समुद्र के आस-पास की रेशम, सूत और रत्नों पर।

अब नयनतारा सीधी होकर बैठ गई और इस देसी मानुस को गौर से सुनने लगी। श्रोताओं की भीड़ में समरेश की निगाह अचानक उसके उत्सुक चेहरे पर ठिठकी। जो कल रात से उसके जहन में अटका है – घुँघराले बालों में फंसा अंडाकार चेहरा, गेहुंआ – सुनहरी रंगत, लंबा कद, पूरे व्यक्तित्व से उम्र का ठीक-ठाक अंदाज तो नहीं लगता मगर चेहरे पर खिंची गहरी लाइनें ‘कार्बन डेटिंग’ का काम कर देती हैं। काले स्कर्ट और काले स्कार्फ से निकल कर वह जींस और सफेद शर्ट में, अपने हाथ में नोटपैड लिए, गौर से उनकी बातें सुन रही थी।

बोलते हुए समरेश का गला सूख गया था उन्होंने पानी का घूँट लिया और अपनी स्पीच जारी रखी,
“ इन नमकीन झीलों का गुलाबी विस्तार अनातोलियन लोगों के लिए महत्वपूर्ण था, तब भी वे जानते थे कि इस झील का यह गुलाबीपन कैसे वहाँ के जीवों–पक्षियों में आता है। खासतौर पर ‘फ्लेमिंगोज’ में। यह इस नमक में उगने वाले एक शैवाल के कारण …..”
चाय-ब्रेक के वक्त प्रोफेसर को किसी युवक ने एक कागज का टुकड़ा दिया उस पर लिखा था “ड्यूनालिएला सैलिनास नाम है उस शैवाल का – नयनतारा” प्रोफेसर ने भीड़ में उसे ढूँढा, लेकिन वह जा चुकी थी। सामने एक मेज़ पर एक सलेटी बिल्ली अपने पंजे चाट कर साफ कर रही।
“यहां हर जगह बिल्लियाँ हैं!”

2

रात को समुद्र तट पर बने रेस्तरां में जैज़ बैंड बज रहा था, रिसॉर्ट के सभी मेहमान धीरे धीरे इधर ही चले आए थे। माहौल बहुत जीवंत था और नयनतारा बिलकुल उदास और अकेली नहीं होना चाहती थी। वह अपने समूह के दो चीनी युवकों के साथ वहाँ बैठी थी। नयनतारा उन लड़कों से बतियाते हुए अपनी वाइन सिप करते हुए हेजलनट टूँग रही थी कि कुर्ते और जींस में समरेश आता दिखा। वह इस माहौल में बड़ा ‘मिसफिट’ लग रहा था। यहां सब युवा थे और नाच-गा रहे थे।
“मुझे लगा आप जरूर यहां होंगी…”
“हाँ सनसेट के बाद से यहाँ लोग इकट्ठे हो जाते हैं…..बैंड, डांस, ड्रिंक्स और …..”
“और?”
“ये बिल्लियाँ…..” अचानक एक काली सफेद बिल्ली नयनतारा के वाइन के ग्लास के ऊपर से कूदकर एक भूरी बिल्ली पर झपटी। ग्लास समरेश ने थाम लिया था। चीनी लड़के समरेश के आ जाने पर अपने हमउम्रों की सोहबत में चले गए थे। अब वो दोनों थे।
“सुबह आपको हॉल में देखकर चौंका था मैं…..इतिहास में रुचि है आपको?”
“हाँ, पर आप वहाँ मेरे विषय सॉल्ट लेक्स पर भाषण दे रहे थे।“
“इतिहास तो हर विषय के तल में है ना! आपने अंताल्या देखा?”
“नहीं! मुझे चार दिन हुए हैं यहां आए और तबसे बस नमक देख रहे हैं। केवल सालडा और टूज़ लेक्स और इस रिसॉर्ट के अलावा कहीं नहीं गए।“
“अंताल्या के आस-पास खजाना है खूबसूरत बीचेज़ और रोमन खंडहरों का देखना चाहिए यहां केमेर के आस-पास भी बहुत कुछ है। मैं तीसरी बार आया हूँ।“
“मैं अपने दोस्तों के साथ डांस करने का सोच रही हूँ…. आप करते हैं डांस?” नयनतारा किसी बोरिंग विषय पर अटक कर अपनी शाम खराब नहीं करना चाहती थी। तभी बिल्ली समरेश की चौड़ी कलाई पर आकर अपना सर रगड़ने लगी।
“यह जानती है आपको?”
“हाँ सुबह ही जान-पहचान हुई थी। ये बिल्लियाँ इस रिसॉर्ट की मालकिनें हैं।“
“सच!” नयनतारा हंसी तब समरेश ने देखा उसका एक दाँत स्फिन्क्स जैसा है। वह मुस्कुराया।
“ये बिल्लियां इतिहास से निकली रानियाँ हैं। हमें इनसे सीखना चाहिए।“
“मैं तो इनकी प्रजा बनने को तैयार हूं। वैसे, क्या बिल्लियों का भी कोई इतिहास लिखा गया है, प्रोफेसर?
समरेश ने सर हिलाया – “बिल्कुल! मिस्र में इन्हें देवी माना जाता था। और ओटोमन काल में, ये मस्जिदों की शान थीं।“ वह फिर हंसी और उस तीखे दाँत की कौंध चमकी।
“प्रोफेसर साहब, हर चीज को किताब और इतिहास में मत ढूंढो। बिल्लियों का इतिहास पेड़ों पर इनके पंजों से लिखा गया है। पेड़ों ने पढ़ा है। आइए नाचें! जैज़ म्यूज़िक ही है जो मुझे मुझसे आज़ाद करता है। आपको क्या पसंद है?"
 "रूमी। उनकी कविताएं। 'बाहर की तलाश छोड़, भीतर देख।'’ समरेश नयनतारा के पीछे-पीछे डांस फ्लोर पर जगह बनाता हुआ चला आया। नयनतारा के भीतर लास्य था वह समुद्री हवा और नीली रोशनियों पर थिरक रही थी और समरेश अपने घने बालों वाले सर को हिलाता हुआ बस जैज़ संगीत पर थोड़ा-थोड़ा हिल रहा था।

3

एक रोज थोड़ी फुरसत निकाल अंताल्या के पुराने शहर में समरेश, नयनतारा को इतिहास की उन अदृश्य गलियों में लेकर आता है जहाँ संकरी गलियों में, विभिन्न सभ्यताओं ग्रीक, रोमन, बाइजेंटाइन, सेल्जुक, ओटोमन के मिश्रण से बना अंताल्या का सुनहरा अतीत सांस लेता है। यहां हर जगह बिल्लियां पत्थरों पर धूप सेंक रही हैं, वे हदीरियन गेट के पास पैदल चल रहे हैं। समरेश बताता है -
"ये गेट 130 ईस्वी का है। हदीरियन के सम्मान में बना। देखो, पत्थरों पर समय की छाप।"
"और इन पत्थरों पर उगी काई को देखो। प्रकृति इतिहास को गले लगाती है।" नयनतारा मुस्कुराए चली जा रही है।
"तुम सही कहती हो। इतिहास और प्रकृति एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। जानती हो मैंने उस खोए हुए लड़के को खोज लिया जिसे बरसों से ढूंढ रहा था, जो कविताएं सुनता था, संगीत में डूबता था।“
"और मैंने आपमें एक घर जो कभी बसा ही नहीं था। अंटाल्या की बिल्लियाँ और इस शहर की गलियाँ, समुद्र, और पहाड़—सबने हमें प्यार सिखाया। ये शहर सिर्फ़ जगह नहीं, हमारी कहानी का घर है।" नयनतारा ने समरेश के ट्रेंच कोट में अपना हाथ घुसाते हुए कहा।
"तो क्या, ये शुरुआत है, अंत नहीं ?" समरेश ने पूछा।
“तुमने ही तो अभी वह सिम्बॉल दिखाया था हेड्रीयन गेट के बगल वाली दीवार पर सांप अपनी पूंछ मुंह में लिए…… एक सर्कल…. अंत का आरंभ फिर आरंभ से अंत की ओर।“
“वाह फलसफा! यह तो तुम्हारा विषय नहीं!!”
समरेश का अंताल्या में यह आखिरी दिन है। पुराने इलाके कालेइची की गलियों में संतरों – मीठे नीबुओं के फूलों की खुशबू बिखरी है। वह नयनतारा को लेकर मुरत महमेत की सैकंड हैंड किताबों की दुकान "Kitap Bahçesi" (किताब का बगीचा) में रूमी की मसनवी का पुराना अंग्रेजी संस्करण ढूँढने आता है, जिसे वह नयनतारा को उपहार में देना चाहता है। दुकान में पुरानी किताबों की सोंधी खुशबू और ग्रामोफोन पर टर्किश कवि ‘युनुस एमरे’ का गाना चल रहा है जिसकी धुन कुछ रूमानी और कुछ उदास है। नयनतारा के सामने ही दुकान के मालिक महमेत से वह गाने का अर्थ पूछता है।
“रूमान है सर! एक दरवेश की ज़िक्र है, आयशे हानिम। अगर दिल पढ़े, तो हर पन्ना महबूब की ओर खुलता है।“
वह वहाँ तुर्की कॉफी ऑर्डर करता है, वह सोचता है कि लोकम की मिठास और कॉफी की कड़वाहट में वह इस अजीब सी भावना पर काबू पा सकेगा। मूरत महमेत कॉफी के साथ पुरानी मसनवी लेकर आता है जिसकी जिल्द पुरानी जरूर है मगर सुनहरी है। जिसके पहले पन्ने पर लिखा है--
“बाहर नहीं, भीतर खोजो। प्यार, दिल के भीतर का बगीचा है।“ समरेश अनुवाद करता है।
नयनतारा जवाब देती है, "इस बगीचे को सींचने के लिए हिम्मत चाहिए।“
“ इसमें हिम्मत कहाँ से आई?”
“समरेश, यह बगीचा सूफी नहीं दुनियावी है। तुम अकेले तो नहीं हो….मेरा भी एक उलझा हुआ अतीत है। तुमको अपनी दुनिया में बोस्टन लौटना है, परिवार की जिम्मेदारियों के बीच। मुझे अपने अकेलेपन में अपनी रिसर्च और किताबों की दुनिया में।“
“अच्छा सब छोड़ दो फिलहाल, कल रात मैंने एक सपना देखा था, बहुत स्पष्ट मैं उसे सच करना चाहता हूँ।“ समरेश कैफे से निकल कर कुछ कदमों की दूरी पर उसे कालेइची के एक पुराने ओटोमन फव्वारे के पास एक डेढ़ सौ बरस बूढ़े जैतून के पेड़ के नीचे ले जाता है।
“नयन, मैं तो चाहा कि मैं तुम्हें बिनछुए चला जाऊं मगर मैंने कल रात देखे सपने में गुस्ताखी की और तुम्हें यहां लाकर माथे पर चूमा था। मैं चूम सकता हूँ माथा?“
“यार! हद है.....माथा? केवल?“ नयनतारा अपने होंठ बढ़ा देती है।
“हम दो अधूरे दरवेश हैं। जो एकदूसरे को पूरा करते हैं रूमी और शम्स की तरह!” वह उसकी चौड़ी कलाई थाम लेती है और दोनों हँस पड़ते हैं। नारंगी के फूल हवा में नाच रहे हैं।

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