नई दिल्ली: भारत का जीडीपी ग्रोथ वित्तीय वर्ष 2025-26 (FY26) के दौरान 6.3% से 6.8% के बीच रह सकता है। यह अनुमान शुक्रवार को संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में जताया गया है। साथ ही अनुमान से संकेत मिलता है कि आने वाले वर्ष में आर्थिक वृद्धि धीमी रह सकती है।

सर्वेक्षण में बताया गया कि युद्ध और तनाव के कारण भू-राजनैतिक जोखिम बने हुए हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को खतरा बना हुआ है।

सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि कमजोर वैश्विक मांग और घरेलू मौसमी परिस्थितियों के कारण विनिर्माण क्षेत्र को दबाव का सामना करना पड़ा है। इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार पिछले कुछ महीनों में खराब मौसम, कम उपज के चलते सप्लाई चेन में बाधा आने से खाने-पीने की महंगाई बढ़ी।

महंगाई से राहत की उम्मीद

आर्थिक सर्वेक्षण में उल्लेख किया गया है कि खाद्य मुद्रास्फीति जो हाल के महीनों में चिंता का विषय रही है, उसमें साल की अंतिम तिमाही में नरमी की उम्मीद है। मौसम के हिसाब से सब्जियों की कीमतों में गिरावट और खरीफ फसल के आगमन से इसमें मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त, वित्त वर्ष 2026 की पहली छमाही में अच्छी रबी फसल से खाद्य कीमतों पर नियंत्रण रहने की उम्मीद है, जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक महंगाई नियंत्रण में है। वित्त वर्ष 25 के अप्रैल- दिसंबर की अवधि में औसत महंगाई कम होकर 4.9 हो गई है, जो कि वित्त वर्ष 24 में 5.4 प्रतिशत थी।

सर्वेक्षण में कहा गया कि महंगाई को स्थिर करने में सरकार के सक्रिय नीतिगत हस्तक्षेप महत्वपूर्ण रहे हैं। इन उपायों में आवश्यक खाद्य पदार्थों के लिए बफर स्टॉक को मजबूत करना, समय-समय पर खुले बाजार में सामान जारी करना और आपूर्ति की कमी के दौरान आयात को आसान बनाने के प्रयास शामिल हैं। 

सर्वेक्षण के अनुसार चुनौतियों के बावजूद भारत में महंगाई प्रबंधन के लिए सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि भारत की खुदरा महंगाई धीरे-धीरे वित्त वर्ष 2026 में लगभग 4 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप हो जाएगी।

निवेश में मंदी लेकिन जल्द सुधरेंगे हालात

सर्वेक्षण में सरकार ने माना है कि निवेश की गतिविधियों में मंदी आई है, लेकिन इस गिरावट को अस्थायी बताया गया है। इसमें कहा गया है कि नीतिगत समर्थन और बिजनेस सेंटिमेंट में सुधार समेत कई कारकों से निवेश में आने वाले दिनों में तेजी आ सकती है। इसमें आगे कहा गया है कि वित्त वर्ष 2026 में घरेलू निवेश, उत्पादन वृद्धि में सकारात्मक गति देखी जा सकती है।

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कि भारत की आर्थिक बुनियाद मजबूत बनी हुई है। इसमें स्थिर वित्तीय प्रणाली, बुनियादी ढांचे में सुधार और विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों जैसे कारकों पर विशेष तौर पर जोर दिया गया है।

सर्वे में यह भरोसा जताया किया गया कि स्थिर निजी खपत, नियंत्रित मुद्रास्फीति और निवेश वृद्धि द्वारा समर्थित भारत की अर्थव्यवस्था का विस्तार जारी रहेगा।

सर्वेक्षण में साथ ही कहा गया, 'भारत का सर्विस ट्रेड सरप्लस में होने के कारण समग्र व्यापार खाते में संतुलन में बना हुआ है। मजबूत सर्विसेज के निर्यात के कारण वैश्विक सर्विस निर्यात में देश सातवें स्थान पर पहुंच गया है, जो इस सेक्टर में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को दिखाता है।'

कृषि क्षेत्र में स्थिति मजबूत

सर्वेक्षण के मुताबिक, कृषि क्षेत्र की स्थिति मजबूत बनी हुई है। 2024 में खरीफ सीजन का खाद्यान्न उत्पादन 1647.05 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) तक पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 89.37 एलएमटी की वृद्धि दर्शाता है। उच्च मूल्य वाले सेक्टर जैसे बागवानी, पशुधन और मत्स्य पालन कृषि विकास के प्रमुख चालक बने हुए हैं। पीएम किसान के तहत 1 अक्टूबर तक, 11 करोड़ से अधिक किसानों को लाभ हुआ है, जबकि 23.61 लाख पीएम किसान मानधन के तहत नामांकित हैं।

क्या है आर्थिक सर्वेक्षण?

आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाने वाला दस्तावेज है। इसे बजट से पहले पेश किया जाता है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और 2025-26 वित्तीय वर्ष में इसके भविष्य का अनुमान और आकलन शामिल रहता है। 

संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद इकोनॉमिक सर्वे को लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया गया। यह अहम दस्तावेज अगले वित्तीय वर्ष के लिए दृष्टिकोण प्रदान करने के अलावा, अर्थव्यवस्था और विभिन्न क्षेत्रों में विकास की रूपरेखा भी प्रस्तुत करता है।

आजाद भारत का पहला इकोनॉमिक सर्वे 1950-51 में केंद्रीय बजट के एक भाग के रूप में पेश किया गया था। हालांकि, 1964 के बाद से, इसे  बजट से अलग कर दिया गया। अब इसे बजट पेश होने से ठीक एक दिन पहले जारी किया जाता है।

(समाचार एजेंसी IANS के इनपुट के साथ)