नई दिल्ली: भारत आज राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने की गौरवशाली यात्रा को याद कर रहा है। इस मौके को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने खास बनाने का ऐलान किया है और कई कार्यक्रम देश भर में आयोजित हैं। इस बीच भाजपा ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लेकर चौंकाने वाला दावा करते हुए आरोप लगाया है कि इस गीत का संक्षिप्त संस्करण इसलिए जारी किया गया क्योंकि उन्होंने देवी दुर्गा की स्तुति वाले छंदों को ‘जानबूझकर हटा दिया था।’
दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के मौके पर एक्स पर एक लंबा पोस्ट लिखा है, जिसमें गीत के इतिहास का जिक्र तो है ही, साथ ही आरएसएस और भाजपा पर लंबे समय तक वंदे मातरम और राष्ट्रीय गान जन गण मन नहीं गाने का आरोप लगाया है। खड़गे ने क्या कुछ अपने पोस्ट में कहा और भाजपा ने क्या आरोप लगाए हैं, आईए विस्तार से समझते हैं।
वंदे मातरम, नेहरू और भाजपा का आरोप
भाजपा प्रवक्ता सीआर केसवन ने एक्स पर एक लंबे पोस्ट में 1937 में नेहरू के पार्टी के अध्यक्ष रहते कांग्रेस पर एक ‘ऐतिहासिक पाप और भूल’ करने का आरोप लगाया है। केसवन ने एक के कुछ अंश साझा करते हुए लिखा, ‘1 सितंबर, 1937 को लिखे एक पत्र में, नेहरू ने द्वेषपूर्ण ढंग से लिखा था कि वंदे मातरम के शब्दों को देवी से जुड़ा मानना बेतुका है।’
भाजपा प्रवक्ता ने यह भी कहा कि जहाँ नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस गीत के ‘पूर्ण मूल संस्करण’ को जारी करने के पक्ष में थे, वहीं नेहरू का मानना था कि वंदे मातरम राष्ट्रीय गीत के रूप में ‘उपयुक्त’ नहीं है।
केसवन ने पोस्ट में आगे कहा, ’20 अक्टूबर, 1937 को नेहरू ने नेताजी बोस को पत्र लिखकर दावा किया था कि वंदे मातरम की पृष्ठभूमि मुसलमानों को नाराज कर सकती है। उन्होंने आगे कहा कि वंदे मातरम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में ठोस आधार प्रतीत होता है और सांप्रदायिक प्रवृत्ति वाले लोग इससे प्रभावित हुए हैं।’
पोस्ट में आगे कहा गया है, ‘यह (वंदे मातरम) किसी विशेष धर्म या भाषा से संबंधित नहीं था। लेकिन कांग्रेस ने इस गीत को धर्म से जोड़ने का ऐतिहासिक पाप और भूल की। नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने धार्मिक आधार पर जानबूझकर वंदे मातरम के उन छंदों को हटा दिया, जिनमें देवी मां दुर्गा की स्तुति की गई थी।’
केसवन ने आगे कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री (नेहरू) की ‘हिंदू विरोधी’ मानसिकता लोकसभा में विपक्ष के नेता में भी दिखाई देती है। केसवन ने कहा, ‘नेहरू की हिंदू विरोधी मानसिकता राहुल गांधी में भी दिखाई देती है, जिन्होंने हाल ही में पवित्र छठ पूजा को एक नाटक बताकर उसका अपमान और बदनामी की, जिससे करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाएँ आहत हुई हैं।’
भाजपा के आरोपों के बीच खड़गे ने क्या कहा?
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वंदे मातरम का गौरवशाली ध्वजवाहक रही है। 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष रहमतुल्लाह सयानी के नेतृत्व में हुए अधिवेशन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार सार्वजनिक रूप से वंदे मातरम गाया था। उस क्षण ने स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंक दी। कांग्रेस समझ गई थी कि ब्रिटिश साम्राज्य की फूट डालो और राज करो की नीति, धार्मिक, जातीय और क्षेत्रीय पहचानों का दुरुपयोग करके, भारत की एकता को तोड़ने के लिए रची गई थी। इसके विरुद्ध, वंदे मातरम एक अडिग शक्ति के गीत के रूप में उभरा, जिसने सभी भारतीयों को भारत माता की भक्ति में एकजुट किया।’
खड़गे आगे लिखते हैं, ‘1905 में बंगाल विभाजन से लेकर हमारे वीर क्रांतिकारियों की अंतिम साँसों तक, वंदे मातरम पूरे देश में गूंजता रहा। यह लाला लाजपत राय के प्रकाशन का शीर्षक था, जर्मनी में भीकाजी कामा द्वारा फहराए गए झंडे पर अंकित था, और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की क्रांति गीतांजलि में भी है। इसकी लोकप्रियता से भयभीत होकर अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम की धड़कन बन गया था।’
बकौल खड़गे, ‘1915 में, महात्मा गांधी ने लिखा था कि वंदे मातरम ‘बंटवारे के दिनों में बंगाल के हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सबसे शक्तिशाली युद्धघोष बन गया था। यह एक साम्राज्यवाद-विरोधी नारा था। बचपन में, जब मैं ‘आनंद मठ’ या इसके अमर रचयिता बंकिम के बारे में कुछ नहीं जानता था, तब भी वंदे मातरम ने मुझे जकड़ लिया था, और जब मैंने इसे पहली बार गाया, तो मैं मंत्रमुग्ध हो गया। मैंने इसे अपनी शुद्ध राष्ट्रीय भावना से जोड़ लिया…’
खड़गे ने आगे कहा, ‘1938 में पंडित नेहरू ने लिखा- पिछले 30 वर्षों से भी अधिक समय से, यह गीत सीधे तौर पर भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है। ऐसे ‘जनता के गीत’ न तो किसी के मन पर थोपे जाते हैं और न ही अपनी मर्जी से। ये अपने आप ही ऊँचाई प्राप्त कर लेते हैं। इसलिए एक साल पहले, 1937 में, उत्तर प्रदेश विधान सभा ने वंदे मातरम का पाठ शुरू किया, जब पुरुषोत्तम दास टंडन इसके अध्यक्ष थे। उसी वर्ष, पंडित नेहरू, मौलाना आजाद, सुभाष चंद्र बोस, रवींद्रनाथ टैगोर और आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने औपचारिक रूप से वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी, जिससे भारत की विविधता में एकता के प्रतीक के रूप में इसकी स्थिति की पुष्टि हुई।’
भाजपा और आरएसएस पर खड़गे के आरोप
इसी पोस्ट में खड़गे लिखते हैं, ‘हालाँकि, यह विडंबना है कि जो लोग आज राष्ट्रवाद के स्वयंभू संरक्षक होने का दावा करते हैं – आरएसएस और भाजपा – उन्होंने अपनी शाखाओं या कार्यालयों में कभी वंदे मातरम या हमारा राष्ट्रगान जन गण मन नहीं गाया। इसके बजाय, वे नमस्ते सदा वत्सले गाते रहते हैं, जो राष्ट्र का नहीं बल्कि उनके संगठनों का महिमामंडन करने वाला गीत है। 1925 में अपनी स्थापना के बाद से, आरएसएस ने अपनी सार्वभौमिक श्रद्धा के बावजूद, वंदे मातरम से परहेज किया है। इनकी किताबों या साहित्य में एक बार भी इस गीत का उल्लेख नहीं मिलता।’
खड़गे के अनुसार, ‘यह सर्वविदित तथ्य है कि आरएसएस और संघ परिवार ने राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीयों के विरुद्ध अंग्रेजों का समर्थन किया, 52 वर्षों तक राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया, भारत के संविधान का दुरुपयोग किया, बापू और बाबासाहेब आंबेडकर के पुतले फूँके और सरदार पटेल के शब्दों में- गांधीजी की हत्या में शामिल रहे।’
खड़गे लिखते है, ‘दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी वंदे मातरम और जन गण मन दोनों पर बहुत गर्व करती है। दोनों गीत कांग्रेस की प्रत्येक सभा और आयोजन में श्रद्धापूर्वक गाए जाते हैं, जो भारत की एकता और गौरव का प्रतीक हैं। 1896 से लेकर आज तक, कांग्रेस की प्रत्येक बैठक, चाहे वह बड़ी हो या छोटी, चाहे वह पूर्ण अधिवेशन हो या ब्लॉक स्तरीय बैठक, हमने भारत के लोगों के प्रति सम्मान के रूप में गर्व और देशभक्ति के साथ वंदे मातरम गाया है।’
वंदे मातरम गीत का इतिहास क्या है?
वंदे मातरम को बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था। यह पहली बार 7 नवंबर, 1875 को साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ था। यह गीत बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास ‘आनंद मठ’ के हिस्से के तौर पर पत्रिका में छपा था जो तब धारावाहिक रूप में प्रकाशित हो रही थी। बाद में यह गीत 1882 में प्रकाशित आनंद मठ उपन्यास में भी शामिल हुआ। यह गीत आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन का बड़ा प्रतीक बना। इसे पहली बार रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सार्वजनिक रूप से गाया था। इसके बाद से यह गीत राष्ट्रभक्ति का सूत्रधार बना रहा।
हालांकि, बाद में इसे लेकर विवाद और राजनीति भी हुई। यही वजह भी रही कि गीत में नीचे के तीन छंद आम तौर पर नहीं गाए जाते हैं या बहुत कम मौकों पर इन्हें गाया जाता रहा है। इसमें ही देवी दुर्गा की स्तुति की बात कही गई है। हालांकि, विवाद करने वाले इसके शुरुआती दो छंदों, जिसे गाया जाता रहा है, उसे लेकर भी सवाल उठाते हैं। खासकर इस्लाम का सहारा लेकर कहा जाता रहा है कि गीत में मां की वंदना की बात है, जो कि उनकी मान्यताओं के खिलाफ है। दिलचस्प है कि आजादी की लड़ाई के दौर में यह विवाद शायद ही देखने को मिला लेकिन बाद के सालों में इसे ज्यादा प्रमुखता दी जाने लगी। 24 जनवरी, 1950 को वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया गया।

