Saturday, November 1, 2025
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बिहार चुनाव 2025ः तेजस्वी बनाम नीतीश की सीधी टक्कर में आसान नहीं NDA की राह

बीजेपी ने अभियान में कोई कमी नहीं छोड़ी है। दिल्ली से आए पत्रकारों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। कई संपादक भी पटना आए है। बीस बड़े पत्रकारों को बुलाया गया। हेलीकॉप्टर से सभाओं की कवरेज कराई जा रही हैं। बोरिंग रोड स्थित एक नेता के आवास पर लंच की भी विशेष व्यवस्था की गई है।

बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान अब पूरे शबाब पर है। इस बार के चुनाव में पहले की तरह बिजली, सड़क, पानी जैसे मुद्दे प्रमुख नहीं हैं। सत्ताधारी दल द्वारा अब राम मंदिर, आर्टिकल 370, तीन तलाक भी शून्य है। पिछली बार पुलवामा था, अब तो गलवान और सिन्दूर की भी चर्चा नहीं हो रही हैं।

लेकिन पिछली बार की तरह लालू-राबड़ी की पंद्रह साल की तथाकहित जंगल राज की बात जरूर हो रही है। मतदाताओं को याद दिलाया जा रहा है कि उस दौर में लोग सूर्यास्त के बाद घरों से बाहर निकलने से डरते थे। जैसे आजादी के बाद कांग्रेसी लोग अंग्रेजी राज के दो सौ साल की बात करते थे और अब 1975 की आपात काल की चर्चा हो रही है। अब तो बिहार को विशेष राज्य दर्जा देने की भी चर्चा नहीं हो रही है।

नीतीश कुमार के शासन में जब चुनाव होते थे, राजनीतिक हिंसा की घटनाएं नहीं होती थीं। लेकिन अब मोकामा में चुनाव प्रचार के दौरान जन सुराज के उम्मीदवार के चाचा दुलारचंद यादव की गोली मार कर हत्या कर दी गई। गया में जीतन राम मांझी के उम्मीदवार अनिल कुमार पर गोली चली। मंत्री श्री श्रावण कुमार को उनके ही निर्वाचन क्षेत्र में खदेड़ा गया।भूतपूर्व संसद आनंद मोहन को भी भगा दिया गया, बीजेपी के विधायक को भी उनके ही निर्वाचन क्षेत्र में धक्का देकर निकाल दिया गया।

उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की एक सभा रद्द करनी पड़ी क्योंकि वहां भीड़ नहीं थी। उधर, राघोपुर में, जहां से तेजस्वी यादव प्रत्याशी हैं, मतदाताओं ने नाराजगी जताई और राबड़ी देवी को लौटना पड़ा। लोगों ने कहा- “आपके बेटे ने कुछ काम नहीं किया।”

2020 के चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच सीधे लड़ाई थी, लेकिन इस बार जन सुराज पार्टी, जिसका गठन एक साल पहले हुआ था, संघर्ष में है। इसने उम्मीदवार तो बेदाग उतारे हैं, लेकिन बिहार जहां जात और उपजाति के नाम पर वोटिंग होता रहा है, पार्टी के लिए चुनौती बनी हुई है।

अखिलेश यादव और मायावती भी प्रचार में हैं, लेकिन इनका वोट बैंक अब बिहार में लगभग खत्म हो चुका है। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, जिसने पिछली बार सीमांचल में पाँच सीटें जीती थीं, इस बार जन सुराज से टक्कर झेल रही है।

बीजेपी के प्रचार अभियान की कमान गृह मंत्री अमित शाह ने संभाल रखी है। वे पटना के मौर्य होटल से पूरे राज्य की चुनावी गतिविधियों की निगरानी कर रहे हैं। उनकी मदद के लिए हिंदी भाषी राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद और विधायक पिछले पंद्रह दिनों से पटना, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में सक्रिय हैं। पटना के तीन बड़े होटलों में बीजेपी नेताओं का डेरा जम गया है। पार्टी महासचिव वी. एल. संतोष ने सभी नेताओं को चेतावनी दी है कि अगर वे छठ महापर्व में घर लौटे तो उनकी स्थायी छुट्टी कर दी जाएगी। छत्तीसगढ़ से छह मंत्री भी यहीं डटे हुए हैं।

सत्तारूढ़ गठबंधन को हर जगह कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। किसी के समर्थन में हवा (वेव) नजर नहीं आ रही। बीजेपी को 20 प्रतिशत कुर्मी जाति के वोट को ध्यान में रख कर फिर से नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करना पड़ा है।

अब लड़ाई साफ तौर पर नीतीश बनाम तेजस्वी बन गई है। कुछ समय पहले तक ऐसा लग रहा था कि प्रशांत किशोर त्रिकोणीय मुकाबला बना सकते हैं, लेकिन अब वे पीछे रह गए हैं।

बीजेपी ने अभियान में कोई कमी नहीं छोड़ी है। दिल्ली से आए पत्रकारों का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। कई संपादक भी पटना आए है। बीस बड़े पत्रकारों को बुलाया गया। हेलीकॉप्टर से सभाओं की कवरेज कराई जा रही हैं। बोरिंग रोड स्थित एक नेता के आवास पर लंच की भी विशेष व्यवस्था की गई है।

अब तक के प्रचार और मतदाताओं के मूड को देखकर कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की राह आसान नहीं है, लेकिन मुकाबला दिलचस्प और सघन होता जा रहा है।

लव कुमार मिश्र
लव कुमार मिश्र
लव कुमार मिश्र, 1973 से पत्रकारिता कर रहे हैं,टाइम्स ऑफ इंडिया के विशेष संवाददाता के रूप में देश के दस राज्यों में पदस्थापित रह। ,कारगिल युद्ध के दौरान डेढ़ महीने कारगिल और द्रास में रहे। आतंकवाद के कठिन काल में कश्मीर में काम किए।
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