6 मौलाना आजाद रोड कोई सामान्य एड्रेस नहीं था। यह भारत के उप राष्ट्रपति का 1962 से 2024 तक सरकारी आवास रहा। अब इधर सन्नाटा पसरा रहता है। अब 6 मौलाना आजाद रोड का बंगला अब जल्दी ही जमींदोज होगा। सरकार का यहां एक दस मंजिला सरकारी इमारत खड़ी करने का इरादा है। इसमें केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों के दफ्तर होंगे।
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ इसमें रहने वाले अंतिम उप राष्ट्रपति थे। उन्होंने पिछले साल इसे खाली कर दिया था और वे नॉर्थ ब्लॉक के करीब बने नए उपराष्ट्रपति आवास में शिफ्ट कर गए थे। नया उपराष्ट्रपति आवास 15 एकड़ में फैला हुआ है।
लुटियंस दिल्ली का शानदार बंगला
लुटियंस दिल्ली के सरकारी बंगले 1930 तक बनकर तैयार हो गए थे। तो कह सकते हैं कि 6 मौलाना आजाद रोड का बंगला कुछ सालों के बाद 100 साल का हो जाता। पर उसे ये मौका नहीं मिलेगा। इसमें अनार और जामुन के दर्जनों घने पेड़ हैं। यानी अनार और जामुन के पेड़ों से इधर मिठास रहती होगी। ये तपती गर्मियों में छाया तो देते ही थे। यह एक सुंदर औपनिवेशिक शैली की इमारत है, जिसमें विशाल कमरे, ऊँची छतें और सुंदर बगीचे हैं। इसमें एक विशाल अध्ययन कक्ष भी है।
स्वतंत्रता के बाद, इसे भारत के उपराष्ट्रपति के आधिकारिक निवास के रूप में नामित किया गया था। यहां भारत के उपराष्ट्रपति अपने महत्वपूर्ण गणमान्य व्यक्तियों की मेजबानी करते थे। यह बंगला एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें बड़ा सा लॉन है। इसमें आधिकारिक कार्यक्रमों और समारोहों का आयोजन किया जाता था। बंगले में कई कमरे, बैठक कक्ष, भोजन कक्ष और कार्यालय हैं।
लेखक फिरोज बख्त अहमद 6 मौलाना आज़ाद रोड पर कई बार गए। वे कहते हैं कि यह एक ऐतिहासिक बंगला है। “यह बंगला भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 6 मौलाना आजाद रोड का बंगला भारत की स्वतंत्रता के बाद के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। ”
दरअसल किंग एडवर्ड रोड ( अब मौलाना आजाद रोड) के चार नंबर के बंगले में भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद रहते थे। उनके दिवंगत होने के बाद उस सड़क का नाम कर दिया गया मौलाना आजाद रोड और उनके बंगले को तोड़कर बना विज्ञान भवन। इस सड़क पर तीन इमारतें हैं। विज्ञान भवन, विज्ञान भवन एनेक्सी और उपराष्ट्रपति आवास। यह बंगला लगभग छह एकड़ में फैला हैं। इसकी एक दीवार विज्ञान भवन एनेक्सी से मिलती हैं।
किस-किस का रहा आशियाना
एक बात साफ कर दें 6 मौलाना आजाद रोड शुरू से ही उपराष्ट्रपति आवास नहीं था। उपराष्ट्रपति आवास के रूप में इसे तब्दील किया गया सन 1962 में। मतलब यहां पहले सरकार के आला अफसर या मंत्री रहे। बहरहाल यह छह दशकों से भी अधिक समय तक उपराष्ट्रपति आवास बना रहा। भारत के पहले उपराष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन सबसे पहले 6 मौलाना आजाद रोड के बंगले में रहे।
उनके बाद डॉ. जाकिर हुसैन, वी.वी.गिरी, गोपाल स्वरूप पाठक, बी.डी.जत्ति, एम हिदायतउल्ला, आर.वेंकटमण, शंकर दयाल शर्मा, डॉ. के.आर.नारायणन, कृष्ण कांत, भैरोंसिंह शेखावत, हामिद अंसारी और वैंकया नायडू इस 6 मौलाना आजाद रोड के बंगले में रहे। कृष्णकांत का इसी बंगले में रहते हुए 27 जुलाई, 2002 को निधन हो गया था। कुछ समय तक यहां जगदीप धनखड़ भी रहे।
कहां जाएंगे 6 मौलाना आजाद रोड के परिंदे
6 मौलाना आजाद रोड के बंगले में एक मस्जिद भी है। ये कब तामीर हुई थी, कोई नहीं बता पाता। ये सिर्फ रमजान के महीने में खुलती है। बाकी समय बंद रहती है। हालांकि इसकी साफ-सफाई नियमित तौर पर होती है। 6 मौलाना आजाद रोड के भीतर जाकर लगता है कि मानो आप किसी हरे-भरे टापू में हो। यहां के अंदर लगे बुजुर्ग पेड़ों पर शाम के वक्त सैकड़ों तोते और चिड़ियां आकर बैठ जाते हैं।
जब यह बंगला नहीं रहेगा और इधर नई इमारत बनेगी तो इधर बुजुर्ग पेड़ भी कटेंगे। इधर के बुजुर्ग पेड़ परिंदों के आशियाना थे। इन पेड़ों के नीचे शाम के वक्त खड़े होने पर यकीन मानिए कि आपको पेड़ों के ऊपर तोतों और दूसरे पक्षियों के बीच होने वाले तेज आपसी संवाद के चलते कुछ सुनाई नहीं देता था। इन पेड़ों के कटने के बाद यहां रहने वाले परिंदे कहां जाएंगे।
ये पेड़ों पर आपस में इस तरह से चहचहा रहे होते हैं कि मानो दफ्तर से घर वापस आने पर एक दूसरे को अपने दिन की गतिविधियों का ब्यौरा दे रहे हों। बता रहे हों कि आज दफ्तर में क्या हुआ। परिंदों के घर अब उजड़ जायेंगे।
कृष्ण कांत के साथ गुजराल
कृष्ण कांत उपराष्ट्रपति के रूप में इधर 21 अगस्त 1997 से लेकर 27 जुलाई 2002 तक रहे। उस दौरान में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल भी उनसे मिलने आते थे। दोनों में काफी गाढ़ी दोस्ती भी थी। इनके संबंध लाहौर के दिनों से थे। यहां विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों का आना-जाना तो हमेशा ही लगा रहता था।
उपराष्ट्रपति के आवास पर मीडिया की नज़र भी हमेशा बनी रहती थी। कृष्ण कांत एक सक्रिय सामाजिक व्यक्ति थे, इसलिए यहां सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन होते ही थे, जहां विभिन्न क्षेत्रों के लोगों का जमावड़ा लगता था। कृष्ण कांत से मिलने और उनके साथ बातचीत करने के लिए विभिन्न सामाजिक समूहों और वर्गों के लोग यहां आते थे।
कब खुल गए थे दरवाजे यहां के
भैंरो सिंह शेखावत के दौर में उपराष्ट्रपति आवास के गेट आम-खास सब के लिए खुले रहते थे। भैरोंसिंह शेखावत 19 अगस्त 2002 से 21 जुलाई 2007 तक देश के उपराष्ट्रपति रहे। वे राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे। भैरोंसिंह शेखावत का जन्म तत्कालिक जयपुर रियासत के गाँव खाचरियावास में हुआ था। यह गाँव अब राजस्थान के सीकर जिले में है। शेखावत जी खुद यारबाश और किस्सागो इंसान थे। उनके पास मिलने वालों की भीड़ कभी कम नहीं होती थी। गर्मागर्म चाय पिलाकर वे अतिथियों से विस्तार से वार्तालाप करते थे।
गंभीर राजनीति हो या तनाव के लम्हे, शेखावत जी हास्य के क्षण खोज लेते थे। ये उनकी जीवटता की खुराक थी। उनके दोस्त सभी दलों में थे, शायद सभी दिलों में भी। भैरों सिंह शेखावत राजस्थान की सियासत में ऐसे वटवृक्ष थे जिनकी छांव एक बड़ा दायरा बनाती थी। उनके विरोधी तो थे, मगर शत्रु कोई नहीं। वो ख़ुद भी कहते थे, “मैं दोस्त बनाता हूँ…दुश्मन नहीं।”
किताबों के विमोचन
जब तक मोहम्मद हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति आवास में रहे तब यहां पर अनेक लेखकों की किताबों के विमोचन होते रहे। उन्हें लेखकों और विद्वानों से मिलना पसंद था। उन्होंने खुद भी कई किताबें लिखी थीं। 2007 के उपराष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद हामिद अंसारी को जीत हासिल हुई। 2012 में उनके कार्यकाल को पाँच साल के लिए बढ़ा दिया गया। 2017 के अगस्त माह की 10 तारीख को उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था।
वेंकैया नायडू भी यहां लेखकों, नौजवानों, कलाकारों वगैरह से मिला करते थे। वे बेहद ओजस्वी वक्ता हैं। बहुत खुलकर अपनी बात रखते हैं। उनकी छवि एक ‘आंदोलनकारी’ की रही। वे 1972 में ‘जय आंध्र आंदोलन’ के दौरान पहली बार सुर्खियों में आए थे। उन्होंने इस दौरान नेल्लोर के आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुये विजयवाड़ा से आंदोलन का नेतृत्व किया।
छात्र जीवन में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रभावित होकर आपातकालीन संघर्ष में हिस्सा लिया। वे आपातकाल के विरोध में सड़कों पर उतर आए और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे बेहतरीन मेजबान भी थे। सबसे खूब प्रेम से मिलते-जुलते थे। उपराष्ट्रपति के रूप में भी उनका कार्यकाल शानदार रहा था। वे अपनी बात कहने से कभी पीछे नहीं हटते।
अब आने वाले समय में 6 मौलाना आजाद रोड का ये बंगला सिर्फ यादों में रह जायेगा। फिर यहां खड़ी हो जायेगी एक गगन चुंबी इमारत। उसमें होंगे सरकारी दफ्तर।