मस्कट: ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को लेकर एक नए समझौते पर पहुंचने की कोशिश के लिए अमेरिका और ईरानी अधिकारी ओमान की राजधानी मस्कट पहुंच गए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में 2018 में ईरान और विश्व शक्तियों के बीच हुए पिछले परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर निकाल लिया था। 

साथ ही अमेरिका की ओर से फिर से ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध फिर से लगा दिए गए थे। वहीं, अब ट्रंप ने बातचीत शुरू होने से पहले चेतावनी दी है कि अगर वार्ता सफल नहीं हुई तो वे सैन्य कार्रवाई करेंगे। इजराइल भी ट्रंप की इस मुहिम के साथ है।

ईरान, परमाणु कार्यक्रम और विवाद

ईरान का कहना है कि वह कोई परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश नहीं कर रहा है। हालांकि, कई देश और वैश्विक परमाणु निगरानी संस्था- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) इस बात से सहमत नहीं हैं।
ईरान के इरादों पर संदेह तब पैदा हुआ जब 2002 में पता चला कि उसके पास कुछ गुप्त परमाणु सुविधाएँ हैं।

इससे परमाणु अप्रसार संधि (NPT) समझौता टूट गया, जिस पर ईरान और दुनिया के कई अन्य देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। NPT देशों को गैर-सैन्य परमाणु तकनीक का उपयोग करने की अनुमति देता है। इसके तहत चिकित्सा, कृषि और ऊर्जा क्षेत्र आदि के लिए परमाणु प्रोग्राम की इजाजत है। हालांकि, यह समझौता परमाणु हथियारों को बनाने की अनुमति नहीं देता है।

ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम कितना आगे बढ़ चुका है?

बताया जाता है कि 2018 में जब से अमेरिका ने परमाणु समझौते से हाथ खींचा है, तब से ईरान ने भी प्रतिशोध के तौर पर कई प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन किया है। ईरान ने यूरेनियम के लिए हजारों उन्नत सेंट्रीफ्यूज (एक तरह की यूरेनियन को और शुद्ध करने की मशीनें) स्थापित की हैं, जो कि समझौते के तहत प्रतिबंधित है।

परमाणु हथियारों के लिए 90% की शुद्धता तक के यूरेनियम की आवश्यकता होती है। पूर्व के समझौते के तहत ईरान को केवल 300 किलोग्राम (600 पाउंड) यूरेनियम रखने की अनुमति थी, जो 3.67% तक शुद्ध हो सकता था। यग परमाणु ऊर्जा और अनुसंधान उद्देश्यों के लिए पर्याप्त है, लेकिन इससे परमाणु बम नहीं बनाया जा सकता।

हालांकि, मार्च 2025 तक, IAEA ने कहा कि ईरान के पास लगभग 275 किलोग्राम यूरेनियम है जिसमें उसने 60% तक की शुद्धता बना ली है। अगर ईरान यूरेनियम को और शुद्धता करने में कामयाब होता है तो वह आधा दर्जन परमाणु हथियार बना सकता है।

अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि उनका मानना ​​है कि ईरान उस यूरेनियम को एक हफ़्ते में ही एक बम बनाने के लिए पर्याप्त हथियार-ग्रेड सामग्री में बदल सकता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा है कि ईरान को परमाणु हथियार बनाने में एक साल से लेकर 18 महीने तक का समय लगेगा। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि एक 'कच्चा' उपकरण छह महीने या उससे भी कम समय में बनाया जा सकता है।

अमेरिका क्यों हटा था ईरान के साथ न्यूक्लियर डील से पीछे?

अमेरिका, यूरोपीय संघ सहित संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर 2010 से कई आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे थे। इससे ईरान की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ। देश की अर्थव्यवस्था मंदी में चली गई। वहां की मुद्रा काफी गिर गई और महंगाई काफी बढ़ी। प्रतिबंधों की वजह से ईरान अपने तेल भी कई देशों को नहीं बेच पा रहा था और उसकी विदेशों में अरबों की संपत्ति जब्त कर ली गई थी।

बहरहाल, 2015 में ईरान, अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम सालों की चर्चा के बाद एक समझौते पर पहुंचे। इस समझौते के तहत ईरान को अपने परमाणु ठिकानों को IAEA के सदस्यों द्वारा जांच की अनुमति देनी पड़ी। इसके बदले ईरान से भी प्रतिबंध हटाया गया। यह समझौता जिसे JCPOA कहा गया, ये 15 साल के लिए लागू था।

ट्रंप जब 2018 में अमेरिका में सत्ता में आए तो उन्होंने अमेरिका को इस समझौते से पीछे खींच लिया। ट्रंप की दलील रही कि यह एक 'खराब समझौता' है। ट्रंप ने वजह बताई कि इस समझौते की समयसीमा 15 साल रखना सही नहीं और इसे स्थायी बनाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि इसमें ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम की बात नहीं की गई। बहरहाल अमेरिका पीछे हटा और ईरान पर फिर से उसने कई प्रतिबंध लगा दिए।

अब अमेरिका और इजराइल क्या चाहते हैं?

ट्रंप पहले से कहते रहे हैं कि वे पूर्व के समझौते से बेहतर डील चाहते हैं। ईरान अभी तक फिर से समझौते की शर्तों को नए सिरे से तैयार करने के मसले पर इनकार जताता रहा है। वहीं, ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अगर ईरान नए डील के लिए तैयार नहीं हुआ तो बम बरसाए जाएंगे।

ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज ने कहा है कि ट्रंप ईरान के परमाणु कार्यक्रम को 'पूरी तरह से खत्म' करना चाहते हैं। ट्रंप ने कहा कि 'सीधी बातचीत' होगी। वहीं, ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा कि ओमान में होने वाली बातचीत अप्रत्यक्ष होगी। उन्होंने कहा कि ईरान अमेरिका के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है, लेकिन ट्रंप को पहले इस बात पर सहमत होना चाहिए कि कोई "सैन्य विकल्प" नहीं हो सकता।

बहरहाल, ट्रंप की घोषणा के बाद इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि एकमात्र स्वीकार्य समझौता तभी होना चाहिए जब ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को समाप्त करने पर सहमति जता दे। उन्होंने कहा कि इसका मतलब है, 'हम अंदर जाएंगे, उन्हें उड़ा देंगे, और अमेरिकी निगरानी के तहत सभी उपकरणों को नष्ट कर देंगे।' 

यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि इजराइल ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है। उसके पास परमाणु हथियार होने का अनुमान है, जिसकी न तो वह पुष्टि करता है और न ही उसने कभी इनकार किया है। इजराइल का मानना रहा है कि ईरान का परमाणु हथियारों से लैस रहना उसके लिए खतरा है।