बांग्लादेश के राष्ट्रगान को क्यों बदलने की उठ रही है मांग? क्या है भारत के साथ इसका कनेक्शन

जब से इस गीत को बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था तब से इसे लेकर विवाद उठता रहा है और इसे बदलने की मांग उठती रही है। सन 1970 में बांग्लादेशी राष्ट्रवादियों द्वारा इसे हटाने की मांग की गई थी।

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Why is there demand to change the national anthem of Bangladesh Amar Sonar Bangla which has Indian connections

बांग्लादेश के राष्ट्रगान को क्यों बदलने की उठ रही है मांग? क्या है भारत के साथ इसका कनेक्शन (फोटो- IANS)

ढाका: पड़ोसी देश बांग्लादेश के राष्ट्रगान को बदलने को लेकर उठ रहे विवाद पर वहां के अंतिरम सरकार का बयान सामने आया है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के एक नेता ने कहा है कि बांग्लादेश के राष्ट्रगान को बदलने की कोई योजना नहीं है।

इससे पहले बांग्लादेश के पूर्व सैन्य अधिकारी अब्दुल्लाहिल अमान आजमी ने बयान जारी कर देश के राष्ट्रगान की आलोचना की थी और इसे बदलने की मांग की थी।

अब्दुल्लाहिल अमान आजमी ने दावा किया था कि बांग्लादेश का राष्ट्रगान भारत द्वारा देश की आजादी के समय सन 1971 में थोपा गया था और यह देश की पहचान को नहीं दर्शाता है। यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश के राष्ट्रगान को बदलने की मांग की गई हो, बल्कि इससे पहले भी इस तरह की मांग उठ चुकी है।

बता दें कि शु्क्रवार को बांग्लादेश के सांस्कृतिक संगठन उदिची शिल्पीगोष्ठी द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल हुए थे। इस कार्यक्रम में लोग राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ देशभक्ति वाले गीत गा रहे थे जिसमें उन्हें बांग्लादेश के राष्ट्रगान को भी गाते हुए सुना गया है।

विवाद पर अंतरिम सरकार ने क्या कहा है

मामले में शनिवार को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में धार्मिक मामलों के सलाहकार अबुल फैज मुहम्मद खालिद हुसैन का बयान सामने आया है। हुसैन ने कहा है कि "अंतरिम सरकार विवाद पैदा करने के लिए कुछ नहीं करेगी, हम सभी के सहयोग से एक सुंदर बांग्लादेश का निर्माण करना चाहते हैं।"

हुसैन ने पद्मा नदी के उत्तरी तट पर राजशाही में इस्लामिक फाउंडेशन का दौरा करने के बाद स्थानीय मीडिया ने बात करते हुए यह बयान दिया है।

क्या है यह पूरा विवाद

पिछले हफ्ते जमात-ए-इस्लामी पार्टी के पूर्व नेता गुलाम आजम के बेटे अब्दुल्लाहिल अमान आजमी ने कहा था कि बांग्लादेश का राष्ट्रगान बंगाल के औपनिवेशिक इतिहास और आजादी से पहले के दौर को दर्शाता है।

उस समय आजमी ने सुझाव दिया था कि स्वतंत्र बांग्लादेश के मूल्यों के ध्यान में रखते हुए देश के लिए एक नए राष्ट्रगान का चयन करना जरूरी है। संवैधानिक सुधारों और एक नए राष्ट्रगान के चयन के सुझाव के लिए आजमी की सोशल मीडिया पर खूब तारीफ भी हुई थी।

यही नहीं सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने बांग्लादेश के नए राष्ट्रगान के लिए वैकल्पिक गान का भी सुझाव दिया था। बांग्लादेश के पूर्व पीएम शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद अभी भी वहां पर हालात सामान्य नहीं हुई है और हर रोज वहां से कोई न कोई खबर आती रहती है। राष्ट्रगान में बदलाव की मांग भी इसी का हिस्सा है।

क्या है बांग्लादेश का राष्ट्रगान

बांग्लादेश का राष्ट्रगान "अमर सोनार बांग्ला" को भारत के बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था। इस गान को ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा बंगाल के पहले विभाजन के दौरान सन 1905 में लिखा गया था।

इस गीत की धुन बाउल गायक गगन हरकारा की धुन "अमी कोथाय पाबो तारे" से प्रभावित है। रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए इस गीत में कई पंक्तियां हैं लेकिन पहले 10 पंक्तियों को ही बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था।

यह राष्ट्रगान बांग्लादेश जैसे नए स्वतंत्र राष्ट्र के लिए एकता और राष्ट्रीय पहचान का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया था।

राष्ट्रगान से जुड़ा विवाद

जब से इस गीत को बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था तब से इसे लेकर विवाद उठता रहा है और इसे बदलने की मांग उठती रही है। सन 1970 में बांग्लादेशी राष्ट्रवादियों द्वारा इसे हटाने की मांग की गई थी।

मांग है कि देश का राष्ट्रगान ऐसा हो जो बांग्लादेश और उसके इतिहास और मूल्यों को सही से दर्शाता हो। साल 1975 में बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति खोंडेकर मुस्ताक अहमद ने एक समिति का गठन किया था।

अहमद ने काजी नजरूल इस्लाम के "नोतुनेर गान" या फारुख अहमद के "पंजेरी" के साथ राष्ट्रगान को बदलने का प्रस्ताव रखा था। ऐसे में सत्ता से उनके हटने के बाद इसकी प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी।

साल 2002 में बांग्लादेश के जमात-ए-इस्लामी के नेता मोतिउर रहमान निजामी ने इस्लामी मूल्यों को बेहतर ढंग से दर्शाने का हवाला देकर राष्ट्रगान में बदलाव का सुझाव दिया था लेकिन इस प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया गया था।

हाल ही में साल 2019 में बांग्लादेशी गायक मैनुल अहसन नोबेल ने तब विवाद खड़ा कर दिया जब उन्होंने सुझाव दिया था कि प्रिंस महमूद के गीत "बांग्लादेश" के मौजूदा राष्ट्रगान की तुलना में राष्ट्र की सुंदरता को बेहतर ढंग से दर्शाया है, हालांकि उन्होंने भी बाद में माफी मांगी थी।

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