नई दिल्ली: इस बार जी7 शिखर सम्मेलन-2024 इटली में हो रहा है। सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए पीएम मोदी दो दिन के इटली दौरे पर हैं। इस सम्मेलन में दुनिया के सात उन्नत अर्थव्यवस्थाएं शामिल होती है।
इसके स्थायी मेंबर कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं। सलाना आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में वैश्विक आर्थिक नीतियां, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा और समन्वय होता है।
सम्मेलन में भारत को एक आउटरीच देश के रूप में आमंत्रित किया जाता है। भारत ने इस सम्मेलन में सबसे पहले 2003 में हिस्सा लिया था। इसके बाद यह सम्मेलन 2019 में फ्रांस में आयोजित हुआ था जिसमें भी भारत शामिल हुआ था।
साल 2020 में यह सम्मेलन कोरोना महामारी के कारण रद्द हो गया था। इसके बाद 2021 में यूके, 2022 में जर्मनी और 2023 में जापान में इसका आयोजन हुआ था जिसमें भी भारत ने हिस्सा लिया था।
बार-बार भारत क्यों ले रहा है सम्मेलन में हिस्सा
भारत जी7 शिखर सम्मेलन का स्थायी मेंबर नहीं है फिर भी वह पिछले कुछ सालों से लगातार इसका हिस्सा बन रहा है। भारत 2019 से लगातार इस सम्मेलन में हिस्सा लेता आ रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं, आइए सात प्वाइंटों में इसे समझने की कोशिश करते हैं।
1. आर्थिक महाशक्ति: भारत पूरी दुनिया में एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। भारत का मौजूदा 4.1 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जैसे रूस, अमेरिका, चीन और जापान से भी ज्यादा है।
इसे दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक माना जा रहा है जिसका विकास दर 2023-2024 में 8.2 फीसदी होने की उम्मीद है। भारत एशिया में भी सबसे तेजी से बढ़नी वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
2. रणनीतिक हिंद-प्रशांत भूमिका: पिछले कुछ सालों में पश्चिमी देशों के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र आर्थिक रूप से काफी महत्वपूर्ण हो गया है जिसका वे इसका फायदा उठाने चाहते हैं।
लेकिन हाल के वर्षों में जिस तरीके से चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर अपनी पकड़ धीरे-धीरे मजबूत कर रहा है इससे पश्चिमी देशों के लिए इस अवसर का फायदा उठाना एक चुनौती साबित हो रहा है।
ऐसे में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम करने और उसका मुकाबला करने के लिए पश्चिमी देशों को भारत की जरूरत है।
मौजूदा दौर में दुनिया के कई देशों के साथ चीन के रिश्तें जहां अच्छी नहीं है वहीं भारत की अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे जी7 सदस्यों के साथ रणनीतिक साझेदारी है। इसलिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए पश्चिमी देशों को भारत की आवश्यकता हो रही है।
3. ऊर्जा संकट मध्यस्थ: जब से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ है तब से पूरी दुनिया की नजर भारत पर है। युद्ध के दौरान यूक्रेन के समर्थन में कई यूरोपीय देशों ने रूस का बॉयकॉट किया था और उस पर कई प्रतिबंध भी लगा दिए थे।
उस समय भारत उन देशों में शामिल था जिसके रिश्तें रूस से काफी बेहतर थे। यही नहीं इस दौरान भारत ने रूस से बड़े पैमाने पर कारोबार भी किया था। रूस से अच्छे कारोबार के चलते उस समय भारत पूरी दुनिया में ऊर्जा के बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरा कर सामने आया था।
युद्ध के कारण जब यूरोपीय देश रूस से कच्चे तेल लेना बंद कर दिए थे तब रूस ने रियायती दर पर भारत को तेल बेचना शुरू किया था। इस तेल को भारत यूरोपीय देशों को बेचने लगा था। इस कारण इसकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत हुई थी और इसके जरिए भारत यूरोपीय देशों को उनके ऊर्जा संकट से निपटने में उनकी मदद भी किया था।
4. संतुलित कूटनीति: पूरी दुनिया में भारत उन देशों में शामिल है जिनके रिश्तें रूस और पश्चिमी देश दोनों से अच्छे हैं। रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण पूरी दुनिया दो टुकड़ों में बट गई है।
एक हिस्सा जो यूक्रेन के समर्थन और रूस के खिलाफ खड़ा है तो दूसरे हिस्से में कुछ और देश भी शामिल है जो रूस के साथ खड़े थे। इस हालात में भारत उन देशों में शामिल है जो यूक्रेन के साथ तो है लेकिन वह रूस के खिलाफ भी नहीं है। भारत के इस संतुलित कूटनीति के उसे फायदा भी मिल रहा है।
5. वैश्विक प्रभाव: जिस तरीके से पिछले कुछ सालों से जी7 के प्रभाव में कमी देखी गई है और अमेरिका, चीन और रूस के बीच मतभेद के कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) भी कम प्रभावी साबित हुआ है, इससे जी7 के सदस्य देशों को भारत जैसे देश की जरूरत पड़ी है।
बता दें कि हाल के वर्षों में भारत एक बढ़ती अर्थव्यवस्था, प्रभावी और जिम्मेदार देश के रूप में उभर कर सामने आया है। उच्च रक्षा खर्च, बड़ी अर्थव्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण भारत लगातार जी7 का हिस्सा बन रहा है।
6. जिम्मेदार शक्ति: दुनिया के कई देश यह चाहते हैं कि उन्हें चीन जैसा गैर-जिम्मेदार देश नहीं बल्कि भारत जैसा जिम्मेदार और महान शक्ति की जरूरत है। चीन के मुकाबले भारत खुद को एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में प्रदर्शित करता है जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों और अदालती फैसलों का सम्मान करता है।
जी7 के स्थायी मेंबर देश यही चाहते हैं कि चीन सुपर पावर देश न बने और उसे रोकने के लिए वे भारत को महत्व दे रहे हैं।
7. ग्लोबल साउथ के लिए भारत बन सकता है ब्रिज: जिस तरीके से भारत जी7 में बार-बार हिस्सा ले रहा है और भविष्य में अगर भारत इसका स्थायी मेंबर बन जाता है तो यह ग्लोबल साउथ (वैश्विक दक्षिण) देशों के लिए एक ब्रिज बन सकता है।
ग्लोबल साउथ देशों में अमेरिका और यूरोप के देशों को छोड़ दुनिया के दक्षिण हिस्से में मौजूद देश शामिल हैं। भारत इन विकसित और विकासशील देशों के बीच एक पुल बन सकता है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
जिस तरीके से भारत बार-बार जी7 में शामिल हो रहा है इससे आने वाले कुछ वर्षों में वह इस समूह का स्थायी मेंबर भी बन सकता है। इस पर कुछ जानकारों की अलग राय है। उनका कहना है कि अगर भारत इसका मेंबर बनता है तो वह चीन के निशाने पर आ सकता है।
एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि जी7 में शामिल होने से पहले भारत को अपनी रक्षा शक्ति को और मजबूत करना होगा ताकि मौका पड़े तो वह चीन को जवाब दे सके।
कुछ और एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि भारत इस समूह का हिस्सा बनने के लिए संकोच कर सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस समूह में शामिल कई देश ऐसे हैं जो भारत पर पहले शासन कर चुके हैं। भारत इन पश्चिमी देशों पर इतनी आसानी से विश्वास नहीं कर सकता है।