रूस ने भारतीय एयरलाइनों से घरेलू उड़ानों के लिए क्यों मांगी है मदद?

सेंटर फॉर एविएशन (CAPA) की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि रूस की घरेलू उड़ान की क्षमता अभी भी महामारी से पहले के स्तर पर बनी हुई है। वहीं इसके सक्रिय बेड़े की संख्या में गिरावट देखी गई है जो साल 2019 में 874 थी और अब वह घटकर 771 हो गई है।

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Why has Russia asked for help from Indian airlines for domestic flights

रूस ने भारतीय एयरलाइनों से घरेलू उड़ानों के लिए क्यों मांगी है मदद (फोटो- IANS)

मॉस्को: रूस ने अपनी घरेलू विमान सेवाओं के लिए भारत से मदद मांगी है। केवल भारत ही नहीं बल्कि चीन और अन्य कई मध्य एशियाई देशों से भी रूस ने एक महीने पहले इस तरह की मांग की है। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे रूस के सामने घरेलू विमान सेवाओं की भारी कमी देखने को मिल रही है।

द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस समस्या को दूर करने के लिए रूस ने एक ‘कैबोटेज’ समझौता प्रस्तावित किया है और अपने ‘मित्र’ देशों से मदद मांगी है। इसके तहत विदेशी एयरलाइनों को रूस के भीतर सर्विस देने की अनुमति मिलती है। इस मुद्दे पर हाल में रूस में हुए ब्रिक्स शिखर यात्रा के दौरान पीएम मोदी से भी चर्चा हुई है।

पश्चिम के प्रतिबंधों ने रूस के विमानन क्षेत्र को काफी प्रभावित किया है जिससे न केवल आवश्यक विमानों की आपूर्ति बंद हुई है बल्कि विमान के भागों और पुर्जों की सप्लाई भी प्रभावित हुई है। इससे रूस का अमेरिका और यूरोपीय विमान निर्माताओं से समर्थन भी खत्म हुआ है।

इस कारण रूसी एयरलाइंस ग्राउंडेड विमानों और सीमित बेड़े विस्तार के विकल्पों से जूझ रही हैं। ऐसे में रूस अपनी घरेलू हवाई यात्रा क्षमता को बढ़ावा देने के लिए भारत जैसे विदेशी वाहकों के साथ साझेदारी की तलाश कर रहा है।

भारतीय एयरलाइनों की क्या चिंता है

रूस के इस प्रस्ताव पर भारतीय एयरलाइनों ने चिंता जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय एयरलाइनों ने विमान पट्टेदारों और बीमा कंपनियों के संभावित विरोध को देखते हुए रूस के इस प्रस्ताव को लेकर वे चिंता में हैं।

भारतीय एयरलाइनों का कहना है कि देश में पहले ही बढ़ती घरेलू मांगों को पूरा करने में समस्या हो रही है, ऐसे में रूस में सर्विस देना उनके लिए यह एक कठिन कार्य साबित होगा।

बता दें कि भारतीय एयरलाइनों में ज्यादातर किराए पर लिए गए विमानों का ही इस्तेमाल होता है। ऐसे में उनका कहना है कि रूस और यूक्रेन युद्ध और रूस पर लगाए गए प्रतिबंध को देखते हुए कई पट्टेदार रूस में अपनी विमानों की सेवा देने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं।

मामले में बोलते हुए एक एयरलाइन के एक अधिकारी ने बताया कि रूस पर लगे बैन और बीमा कवरेज के खोने के जोखिम के कारण रूस के इस प्रस्ताव पर काम करना काफी मुश्किल हो सकता है।

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रूस पर प्रतिबंधों का असर

रूस और यूक्रेन युद्ध से पहले रूस के बेड़े में अधिकतर बोइंग और एयरबस के विमान शामिल थे। लेकिन जब दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हुआ तब विमान कंपनियों द्वारा इन विमानों की आपूर्ति रोक दी गई थी।

ऐसे में इन कंपनियों ने रूस को आपूर्ति करने वाले विमानों को अन्य बाजारों में बेचना शुरू कर दिया है। इसका एक उदाहरण हाल ही में एयर इंडिया को मिले एयरबस A350 विमान है जो पहले रूसी एयरलाइन एअरोफ्लॉट को देने की डील हुई थी।

यही नहीं रूस पर बैन के कारण विमानों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले जरूरी पुर्जें और सॉफ्टवेयर की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है। इससे रूस के कई विमानों के निर्माण में भी असर पड़ा है और वह अभी विमान शेड में पड़े हुए हैं।

सेंटर फॉर एविएशन (CAPA) की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि रूस की घरेलू उड़ान की क्षमता अभी भी महामारी से पहले के स्तर पर बनी हुई है। वहीं इसके सक्रिय बेड़े की संख्या में गिरावट देखी गई है जो साल 2019 में 874 थी और अब वह घटकर 771 हो गई है।

सीएपीए ने अनुमान लगाया है कि आने वाले समय में रूसी यात्री यातायात में मामूली इजाफा होगा और यह साल 2027 तक 9.88 करोड़ तक पहुंच सकती है जो 2024 के करीब है।

इन विमानन चुनौतियों के बावजूद, भारत और रूस जैसे देश एक मजबूत व्यापार संबंध बनाए हुए हैं। भारत ने रूसी एयरलाइनों को अपने हवाई क्षेत्र के भीतर उड़ानें संचालित करने की अनुमति देना जारी रखा है।

रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत उन कुछ देशों में शामिल है जो रूसी एयरलाइनों को अपने हवाई क्षेत्र के भीतर उड़ानें संचालित करने की अनुमति दे रखा है।

उसी तरह से रूस भी भारतीय विमानों को अपनी हवाई क्षेत्र को इस्तेमाल करने की इजाजत दे रखी है। इसका फायदा उठाकर एयर इंडिया यूरोपीय और अमेरिकी एयरलाइनों के मुकाबले कम समय में अपनी गंतव्य पर पहुंच पा रही है।

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