कुआलालंपुर: मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने ग़ैर-मुस्लिम आयोजनों में भाग लेने के लिए मुस्लिमों के लिए दिशानिर्देश जारी करने के प्रस्ताव से पीछे हटने का फैसला किया है। इस प्रस्ताव को लेकर भारी विरोध के बाद उनकी कैबिनेट ने इसे खारिज कर दिया।
अनवर इब्राहिम ने 7 फरवरी को साप्ताहिक कैबिनेट बैठक के बाद कहा, "ऐसे दिशानिर्देशों की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मुसलमानों को पहले से ही अपने धर्म के अनुरूप क्या करना है और क्या नहीं, इसका ज्ञान होता है।"
उन्होंने यह बयान सेलांगोर राज्य के प्रसिद्ध बतु गुफा मंदिर के दौरे के दौरान दिया, जहां वह 11 फरवरी को मनाए जाने वाले थाइपुसम पर्व से पहले पहुंचे थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह वहां किसी हिंदू पूजा में भाग लेने नहीं गए थे।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब मलेशिया के इस्लामिक मामलों के मंत्री नाइम मुख्तार ने 4 फरवरी को संसद में लिखित जवाब देते हुए कहा कि सरकार गैर-मुस्लिम आयोजनों में भाग लेने को लेकर मुस्लिमों के लिए नए दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दे रही है।
दिशानिर्देशों में क्या था?
दिशानिर्देशों में कहा गया था कि गैर-मुस्लिम स्थलों पर आयोजित कार्यक्रमों (जैसे विवाह और अंतिम संस्कार) में मुस्लिमों की भागीदारी के लिए आयोजकों को पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी। इस्लामिक अधिकारियों से मार्गदर्शन लेना अनिवार्य होगा। साथी ही ऐसे आयोजनों में कोई भी भाषण, गीत या धार्मिक सामग्री नहीं होनी चाहिए, जो इस्लामिक मान्यताओं का उपहास उड़ाए या मुस्लिम भावनाओं को ठेस पहुँचाए। सरकार के पास यह अधिकार था कि मुस्लिम गैर-मुस्लिमों के साथ कैसे बातचीत करें। सरकार का तर्क था कि इससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलेगा और इस्लामिक दृष्टिकोण से गलतफहमियां रोकी जा सकेंगी।
इस प्रस्ताव के खिलाफ जनता और धार्मिक विशेषज्ञों ने खुले तौर पर विरोध जताया। उन्होंने सरकार पर धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने और मलेशिया की बहु-सांस्कृतिक विरासत को खतरे में डालने का आरोप लगाया।
पूर्व कैबिनेट मंत्री रफीदा अजीज ने कहा, "हम सदियों से सौहार्द्रपूर्ण रूप से एक साथ रह रहे हैं। मुसलमानों को पहले से ही अपने धर्म के नियमों की जानकारी है, हमें किसी बाहरी नियंत्रण की ज़रूरत नहीं है। हम इतने अज्ञानी नहीं हैं और न ही हमारा ईमान इतना कमजोर है कि उसे किसी सरकारी निगरानी की आवश्यकता हो।"
कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि इतने गंभीर विषय को पहले सुल्तानों की परिषद में प्रस्तुत किया जाना चाहिए था। मुसलमानों के लिए किसी भी नए निर्देश को परिषद की सहमति से लागू किया जाना चाहिए।
6 फरवरी को भारी विवाद के बीच मंत्री नाइम मुख्तार ने सफाई दी कि दिशानिर्देश अभी समीक्षा के अधीन हैं। इसके अगले ही दिन, 7 फरवरी को प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने घोषणा की कि कैबिनेट ने इन दिशानिर्देशों को पूरी तरह रद्द कर दिया है।
कैबिनेट का निर्णय और जाकिम की भूमिका
प्रधानमंत्री के इस फैसले से कुछ ही घंटे पहले, राष्ट्रीय एकता मंत्री आरोन एगो डागांग और नाइम मुख्तार ने एक संयुक्त बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि यह मुद्दा गलतफहमी का कारण बन गया है। जाकिम (मलेशियाई इस्लामिक डेवलपमेंट डिपार्टमेंट) इस मामले में केवल सलाह दे सकता है, लेकिन कोई आधिकारिक नीति नहीं बना सकता। कैबिनेट ने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में कोई भी नीति बनाने से पहले राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखा जाएगा और कैबिनेट की मंजूरी आवश्यक होगी।
आलोचकों ने क्या कहा?
मलेशिया के प्रसिद्ध पत्रकार ए. कादिर जासिन ने 7 फरवरी को फेसबुक पर लिखा कि "मलेशिया के राजशाही शासक और प्रधानमंत्री भी अक्सर अन्य धर्मों के आयोजनों में भाग लेते रहे हैं। यह हर मुसलमान की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है कि वह अपने ईमान की रक्षा करे। एक अच्छी सरकार लोगों को आजादी देती है, जबकि एक बुरी सरकार हस्तक्षेप करती है।"
एक क्रिश्चियन गृहिणी आईरिस शिवकुमार ने द स्ट्रेट्स टाइम्स से कहा "ये नए नियम अपमानजनक हैं। ऐसा लगता है कि उनका ईमान इतना कमजोर है कि वह किसी अन्य धर्म की प्रार्थना, गीत या अनुष्ठान को सहन नहीं कर सकता।"
हॉन्ग कॉन्ग के मशहूर अंग्रेजी अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा कि हाल के वर्षों में मलेशिया में जातीय और धार्मिक मुद्दे केंद्रबिंदु बन गए हैं। इसका कारण मुख्य रूप से मलय-राष्ट्रवादी राजनीतिक आंदोलन है, जो मलय-मुस्लिम वोट को सुरक्षित करने के प्रयास में है।
अखबार के मुताबिक, गाइडलाइन की सबसे कड़ी आलोचना सेलांगोर के सुल्तान शरफुद्दीन इदरीस शाह ने ही की। उन्होंने कहा कि "इन दिशानिर्देशों ने एक अनावश्यक बहस को जन्म दिया है, जो देश की नस्लीय और धार्मिक सद्भावना को हिला सकती है।"
सरकार पहले भी विवादों में रही
यह पहला मौका नहीं है जब अनवर प्रशासन को इस्लामिक मुद्दों पर आलोचना का सामना करना पड़ा हो। सरकार 'मुफ्ती बिल' पारित कराने की कोशिश कर रही है, जिसका कानूनी विशेषज्ञों और धार्मिक नेताओं ने विरोध किया है।
यह विधेयक- फेडरल टेरिटरीज के मुफ्ती (इस्लामिक मामलों के शीर्ष नेता) को अधिक शक्तियाँ प्रदान करेगा और धार्मिक फतवों को कानून का दर्जा देने की अनुमति देगा। यह भी कहा गया कि संपूर्ण मलेशिया के 13 राज्यों में इस कानून के प्रभावी होने की संभावना बढ़ाएगा। यह विधेयक जुलाई 2024 में संसद में पेश किया गया था, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता और विविधता के अधिकार का हनन कर सकता है।