नई दिल्ली: एक भारतीय-अमेरिकी छात्र ने दावा किया है कि अमेरिका में ह्यूस्टन विश्वविद्यालय द्वारा हिंदू धर्म पर पेश किए गए पाठ्यक्रम में कुछ पहलुओं की 'गलत व्याख्या की गई है और इसे नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है।' छात्र ने प्रोफेसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'हिंदू कट्टरपंथी' कहने का भी आरोप लगाया।
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार छात्र वसंत भट्ट ने कहा कि इसे एक तथ्य के रूप में प्रस्तुत किया गया था और हिंदू पहचान को कट्टरपंथी के रूप में प्रस्तुत किया गया। छात्र ने कहा, 'प्रोफेसर ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिंदू कट्टरपंथी कहा और झूठा दावा किया कि भारत धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार कर रहा है, जबकि वास्तव में, 2021 के प्यू रिसर्च अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 89% मुसलमान अपने धर्म का पालन करने में सुरक्षित महसूस करते हैं।'
छात्र ने कहा, 'इसलिए स्पष्ट रूप से इस पाठ्यक्रम के शुरुआती हफ्तों में इसकी सामग्री हिंदू राष्ट्रवाद और राजनीतिक प्रभुत्व के संदर्भों से प्रभावित दिखी और यह इस तरह की बनाती है...और यह छात्रों को हिंदू धर्म के बारे में कोई सार्थक सोच या समझ देने के बजाय असहजता की भावना देती है।'
विवाद बढ़ने के बाद विश्वविद्यालय ने शनिवार को अपने जवाब में हिंदू धर्म पाठ्यक्रम का बचाव करते हुए कहा कि यह धार्मिक अध्ययन के लिए अकादमिक अनुशासन पर आधारित है और इसमें "कट्टरपंथ" सहित विशिष्ट शब्दावली का इस्तेमाल इसके ''स्कॉलर्ली फ्रेमवर्क'' के हिस्से के रूप में किया गया है। विश्वविद्यालय का यह जवाब 'लिव्ड हिंदू रिलीजन' पाठ्यक्रम के बारे में एक छात्र की शिकायत पर आया।
पाठ्यक्रम में क्या बातें हैं, जिस पर छात्र ने जताई आपत्ति
कोर्स के अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए भट्ट ने हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह का आरोप लगाया और पाठ्यक्रम से कुछ खास उदाहरण दिए जो उन्हें परेशान करने वाले लगे। भट्ट ने कहा, 'मुझे लगता है कि इसकी शुरुआत पाठ्यक्रम की सामग्री और सामग्री से कुछ खास उदाहरणों से हुई जो इस हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह को दर्शाते हैं। सबसे स्पष्ट और सबसे परेशान करने वाला उदाहरण मुख्य पाठ्यक्रम में ही है। इसमें कहा गया कि हिंदू शब्द हाल ही में आया है, धर्मग्रंथों में पाया ही नहीं जाता है। हिंदुत्व एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल हिंदू राष्ट्रवादी, जो मानते हैं कि हिंदू धर्म को भारत का आधिकारिक धर्म होना चाहिए, वे इसे दूसरों यानी इस्लाम को बदनाम करने के लिए करते हैं। यही बात पाठ्यक्रम में कही गई है और यह कोई तटस्थ अकादमिक बयान नहीं है, है न?'
उन्होंने आगे कहा, 'यह एक ऐसा दावा है जो दुनिया भर में एक अरब से ज्यादा लोगों की पहचान को अवैध ठहराता है। इसका मतलब है कि हिंदू शब्द ऐतिहासिक या आध्यात्मिक रूप से आधारित नहीं है और यह एक राजनीतिक आविष्कार है जो उपनिवेशवाद और धार्मिक असहिष्णुता से जुड़ा हुआ है। मझे लगता है कि ऐसी बातों को हिंदू जीवनशैली जीने वाले मुझ जैसे लोगों को और मेरी कक्षा में बहुत से अन्य हिंदुओं को पाठ्यक्रम में पढ़कर बहुत पीड़ा महसूस होगी होगी। क्योंकि इसे कई लोगों के बीच अकादमिक व्याख्या के रूप में नहीं बताया गया, बल्कि पाठ्यक्रम की आधारभूत रूपरेखा तौर पर रखा गया है।'
छात्र ने आगे दावा किया कि उन्होंने पाठ्यक्रम पर चिंताओं के बारे में कॉलेज ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड सोशल साइंसेज के डीन को औपचारिक रूप से शिकायत दर्ज कराई थी। जवाब में, उनसे पूछा गया कि उन्होंने इस मुद्दे को सीधे प्रोफेसर के सामने क्यों नहीं उठाया।
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छात्र ने कहा, 'कोर्स की विषय-वस्तु सेमेस्टर के शुरुआती सप्ताहों में प्रस्तुत की गई थी और मैंने प्रोफेसर से सीधे बात नहीं की थी और यह एक बहुत ही सचेत निर्णय था। मैं मेरे अकादमिक नुकसान या बदले की संभावना के बारे में चिंतित था और यह नाटकीय लग सकता है, लेकिन इस मौजूदा माहौल में, हिंदू छात्र जो अपनी परंपरा का बचाव करते हैं, उन्हें अक्सर आक्रामक या राजनीतिक रूप से प्रेरित शख्स के रूप में चित्रित किया जाता है, भले ही वे सम्मानपूर्वक और अच्छे विश्वास में बोलते हों। इसलिए, मुझे मेरे आस-पास के लोगों ने प्रोफेसर से बात न करने की सलाह दी। मैंने एक औपचारिक शिकायत लिखने और इसे कॉलेज ऑफ लिबरल लिबरल आर्ट्स एंड सोशल साइंसेज के डीन को सौंपने का फैसला किया। डीन ने तब मेरी चिंताओं को धार्मिक अध्ययन विभाग को भेज दिया और विभाग की प्रतिक्रिया बहुत निराशाजनक रही।'