ब्रिटेन में क्यों हो रहे है हिंसक विरोध प्रदर्शन? प्रदर्शनकारी क्या कर रहे हैं मांग

बुधवार शाम को प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री स्टार्मर के कार्यालय के बाहर भी जमा हुए थे और आप्रवासन पर गुस्सा जताते हुए इसके खिलाफ सरकार से सख्त कार्रवाई करने की मांग की है।

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Why are violent protests taking place in Britain What are the protesters demanding

प्रतिकात्मक फोटो (फोटो- IANS)

लंदन: ब्रिटेन में बीते कई दिनों से हिंसा हो रही है। इसमें मुस्लिम और अप्रवासियों को निशाना बनाया जा रहा है। ब्रिटेन के कई शहरों और कस्बों में हजारों की संख्या में नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं।

इस विरोध के लिए धुर दक्षिणपंथी पर आरोप लग रहे हैं। धुर दक्षिणपंथी विरोध प्रदर्शनों के जवाब में हजारों नस्लवाद-विरोधी प्रदर्शनकारी भी सड़कों पर उतर आए हैं और उनके द्वारा की जा रही हिंसा को खत्म करने की मांग कर रहे हैं।

प्रदर्शनकारियों ने दुकानों में तोड़फोड़ की है और पुलिस के साथ उनकी झड़पें भी हुई हैं। वे सरकार से अप्रवासियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने हिंसा के लिए "दूर दक्षिणपंथी गुंडागर्दी" को जिम्मेदार ठहराते इसकी कड़ी निंदा की है।

भारी पैमाने पर प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी भी हुई है और उन्हें सजा सुनाने की प्रक्रिया भी चालु की गई है। उपद्रव के बाद 100 से ज्यादा दंगाइयों पर आरोप लगाए गए हैं और उनके मामलों को अदालती प्रक्रिया में तेजी से निपटाया गया है। बुधवार को तीन लोगों को जेल भेजा गया जिनमें से एक को तीन साल की सजा सुनाई गई है।

100 से ज्यादा होने वाले थे प्रदर्शन

समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार रात 11 बजे तक दक्षिणपंथी समूहों के 100 से ज्यादा प्रदर्शन होने वाले थे। उनकी यह योजना विफल हो गई, क्योंकि पुलिस ने सख्ती से व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्रवाई की थी।

इसके बाद बड़ी संख्या में एंटी-रेसिज्म (नस्लवाद-विरोधी) प्रदर्शनकारियों ने लंदन, ब्रिस्टल, ब्राइटन, बर्मिंघम, लिवरपूल, हेस्टिंग्स और वॉल्थमस्टो जैसे शहरों और कस्बों की सड़कों पर उमड़ पड़े।

नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों ने भी किया है विरोध

नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां थाम रखी थीं जिन पर लिखा था, 'फासीवाद और नस्लवाद को खत्म करो', 'शरणार्थियों का स्वागत है। दक्षिणपंथ को रोकें' और नफरत नहीं, प्यार करें'।

ब्राइटन में बहुत कम संख्या में दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारी आए लेकिन देखते ही देखते उनकी तुलना में भारी संख्या में नस्लवाद विरोधी विशाल भीड़ वहां पहुंच गई।

यह ब्रिटेन के लिए राहत की बात है। कई दिनों से देश में मुसलमानों और आम तौर पर अप्रवासी आबादी को निशाना बनाकर दक्षिणपंथी विरोध प्रदर्शन चल रहे थे, जिस कारण पुलिस अधिकारी घायल हो गए, दुकानों को लूट लिया गया और शरणार्थियों के होटलों पर हमला भी किया गया था।

क्या है यह पूरा विवाद

यह विवाद तब शुरू हुआ है जब 20 जुलाई को उत्तर-पश्चिमी इंग्लैंड के साउथपोर्ट में तीन बच्चियों की हत्या हुई थी। इन हत्याओं का आरोप 17 साल के एक्सल रुदाकुबाना पर लगा था। इस हमले में छह, सात और नौ साल की तीन बच्चियों की मौत हो गई थी और इसमें 10 अन्य लोग भी घायल हुए थे।

घटना के बाद एक्सल रुदाकुबाना को गिरफ्तार कर लिया गया था और उस पर हत्या के कई मामले दर्ज किए गए थे।

हत्या के बाद एक्सल रुदाकुबाना की पहचान को लेकर सोशल मीडिया पर गलत खबर फैलाई गई थी जिसके बाद यह विवाद और बढ़ गया था और इस कारण विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए थे। एक्सल रुदाकुबाना का जन्म और पालन पोषण वेल्स के कार्डिफ में हुआ था।

लेकिन सोशल मीडिया पर यह दावा किया गया था वह एक मुस्लिम है और वह ब्रिटेन का रहने वाला नहीं है बल्कि एक प्रवासी है। इस गलत सूचना ने साउथपोर्ट में हिंसक मुस्लिम विरोधी विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया था जिसमें एक स्थानीय मस्जिद पर हमला करने का प्रयास किया गया था।

ब्रिटेन के अन्य शहरों में फैले थे दंगे

जारी विरोध प्रदर्शन और दंगे केवल ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में ही नहीं बल्कि कई शहरों में भी देखी गई है। ब्रिटेन के संडरलैंड, मैनचेस्टर, प्लायमाउथ और बेलफास्ट जैसे शहरों में बड़ी घटनाएं दर्ज की गई है।

बुधवार शाम को प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री स्टार्मर के कार्यालय के बाहर भी जमा हुए थे और आप्रवासन पर गुस्सा जताते हुए इसके खिलाफ सरकार से सख्त कार्रवाई करने की मांग की है।

दंगे की वजह

दंगे में धुर दक्षिणपंथी आंदोलनकारी, स्थानीय मुद्दों को लेकर शिकायत करने वाले लोग और मजे के लिए हिंसा में शामिल होने वाले लोगों ने हिस्सा लिया है। कुछ दंगाईयों ने खुद को "देशभक्त" होने का दावा किया है और कहा है कि उच्च आप्रवासन स्तर के कारण ब्रिटिश समाज कमजोर हो रहा है।

उनका तर्क है कि आप्रवासन के कारण हिंसा और अपराध को बढ़ावा मिलता है। उनका यह भी कहना है देश के नेता प्रवासियों का पक्ष लेते हैं जिससे उनका अधिकार प्रभावित हो रहा है।

दूसरी ओर अधिकार समूहों और नस्लवाद-विरोधी संगठनों ने विरोध करने वाले इन लोगों के सभी दावों को बेकार बताया है। उनका तर्क है कि यह कुछ भी नहीं बल्कि इनका असली मकसद देशभक्ति के आड़ में उग्रवाद को बढ़ावा देना है।

सरकार का एक्शन

स्टार्मर के नेतृत्व वाली सरकार ने हाल के दंगों का जवाब देते हुए तेजी से कार्रवाई की है। सरकार ने जेल की क्षमता को बढ़ाया है और विशेषज्ञ अधिकारियों को तैनाती भी की है। प्रदर्शाकारियों को काबू करने के लिए प्रशासन ने 600 अतिरिक्त जेल भी तैयार किए हैं।

कोर्ट ने 58 साल के एक ब्रिटिश नागरिक को हिंसा फैलाने के लिए तीन साल की सजा भी सुनाई है। यही नहीं सरकार ने गलत खबर को फैलने पर अंकुश लगाने और हिंसा भड़कने से रोकने में विफल रहे सोशल मीडिया पर भी निशाना साधा है।

ऑनलाइन झूठी खबरों को फैलने से रोकने में नाकामयाब रहने वाली टेक कंपनियों से विज्ञान मंत्री पीटर काइल ने मुलाकात भी की है। वे टिकटॉक, मेटा, गूगल और एक्स जैसी प्रमुख तकनीकी कंपनियों के प्रतिनिधियों से मिल कर इस पर चर्चा भी किए हैं।

समाचार एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ

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