ढाकाः बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिद जिया की मंगलवार रिहाई हो गई। सोमवार प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और देश छोड़ देने के बाद राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन की अध्यक्षता में हुई बैठक में खालिद जिया की रिहाई के आदेश दिए गए।
माना जाता है कि शेख हसीना जब लोकतांत्रिक तरीके से चुनावी प्रक्रिया के जरिए चौथी बार चुनकर सत्ता पर काबिज हुई थीं, खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और बांग्लादेश के प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन, जमात-ए-इस्लामी यह पचा नहीं पा रही थी। और जिस तरह से अमेरिकी डीप स्टेट, चीन और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का समर्थन मिला, उसकी तस्वीर पूरी दुनिया देख रही है।
भारत में प्रतिबंधित आतंकी संगठन पीएफआई का सीधा संबंध बांग्लादेश के जमात-उल-मुजाहिदीन से रहा है। 2018 में बिहार के बोधगया में हुए ब्लास्ट में जमात-उल-मुजाहिदीन के आतंकी और बांग्लादेशी नागरिक जाहिदुन इस्लाम उर्फ कौसर को दोषी ठहराया गया था।
भारत विरोधी रही हैं खालिदा जिया
बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया के शासनकाल में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे। खालिदा को हमेशा भारत के मुकाबले चीन और पाकिस्तान ज्यादा भाया। खालिदा के समय में बांग्लादेश के रिश्ते भारत के साथ हमेशा खराब रहे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कहते थे कि ‘आप मित्र तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं’।
बांग्लादेश संकट में आईएसआई का हाथ?
मीडिया रिपोर्टों की मानें तो बांग्लादेश में इस स्थिति को पैदा करने में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। यहां हिंसा भड़काने के पीछे ‘छात्र शिबिर’ नामक संगठन का नाम आ रहा है, जो प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी से जुड़ा हुआ है। इस जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी का समर्थन प्राप्त है। जमात-ए-इस्लामी, उसकी स्टूडेंट यूनियन और अन्य संगठनों पर शेख हसीना सरकार ने कुछ दिन पहले ही प्रतिबंध लगा दिया था। ‘छात्र शिबिर’ नामक संगठन का काम बांग्लादेश में हिंसा भड़काना और छात्रों के विरोध को राजनीतिक आंदोलन में बदलना था।
बांग्लादेश में पाकिस्तान की तरह ही सेना इस तख्तापलट की साजिश में शामिल थी और यह साजिश 6 महीने पहले ही रची गई थी। इस साजिश को लेकर लगातार दूसरे देशों से फंडिंग हो रही थी। जनवरी 2024 से ही इस साजिश के लिए धीरे-धीरे जमीन तैयार की गई। बांग्लादेश के बड़े सैन्य अधिकारी और जमात-ए-इस्लामी के लोगों के बीच इसको लेकर बैठकों का दौर चलता रहा। छात्रों का यहां आंदोलन शुरू हुआ और उसमें धीरे-धीरे आतंकी ताकतें शामिल होती गई।
ढाका यूनिवर्सिटी के तीन छात्र नाहिद इस्लाम, आसिफ महमूद और अबू बकर ने बांग्लादेश में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया। अब वही तीनों यहां की अंतरिम सरकार की रूपरेखा तय कर रहे हैं।
कौन है खालिद जिया?
15 अगस्त, 1945 जन्मीं खालिदा जिया बीएनपी की प्रमुख हैं। इस पार्टी की नींव उनके पति सैन्य नेता और राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने रखी थी जिनकी 1981 में एक असफल सेना विद्रोह में हत्या कर दी गई थी। तीन साल बाद, खालिदा जिया ने बीएनपी की कमान संभाली। पार्टी के बागडोर संभालते ही जिया ने बांग्लादेश को गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन से मुक्त कराने का संकल्प लिया।
खालिदा जिया ने शेख हसीना के साथ मिलकर 1990 में सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता से बेदखल कर दिया जिसके बाद देश में पहला स्वतंत्र चुनाव हुआ। इस चुनाव में खालिदा जिया ने इस्लामी राजनीतिक सहयोगियों के समर्थन से जीत हासिल की और बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। वह पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो के बाद किसी मुस्लिम बहुल देश की लोकतांत्रिक सरकार की प्रमुख बनने वाली दूसरी महिला थीं।
सत्ता में आते ही खालिदा ने राष्ट्रपति प्रणाली की जगह संसदीय शासन प्रणाली लागू की। विदेशी निवेश पर प्रतिबंध हटा दिए और प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और निःशुल्क बना दिया। इन सबके बावजूद जिया 1996 के चुनावों में हसीना से हार गईं। लेकिन पांच साल बाद सत्ता में दोबारा वापस लौटीं।
खालिदा की सरकार और उसके इस्लामी सहयोगियों पर 2004 में हसीना की रैली पर ग्रेनेड से हमला करने का आरोप लगा था। हसीना बच गईं लेकिन 20 से ज़्यादा लोग मारे गए और 500 से ज्यादा घायल हो गए। सालों बाद उनके सबसे बड़े बेटे पर उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया गया और हमले के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
Former Bangladeshi Prime Minister Khalida Zia released from Jail.
— Dr Shama Junejo (@ShamaJunejo) August 6, 2024
प्रधानमंत्री के रूप में खालिदा का दूसरा कार्यकाल 2006 में समाप्त हुआ जब राजनीतिक अस्थिरता के बीच सेना समर्थित अंतरिम सरकार ने सत्ता संभाली। इस अंतरिम सरकार ने खालिदा और हसीना दोनों को भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के आरोप में लगभग एक साल तक जेल में रखा, उसके बाद 2008 में आम चुनाव से पहले उन्हें रिहा कर दिया गया। लेकिन बीएनपी ने आम चुनाव का बहिष्कार कर दिया।
2018 में खालिदा, उनके सबसे बड़े बेटे और सहयोगियों को एक अनाथालय ट्रस्ट द्वारा प्राप्त विदेशी दान में से लगभग 250,000 डॉलर की चोरी करने का दोषी ठहराया गया था, जिसे उनके अंतिम प्रधान मंत्री रहते हुए स्थापित किया गया था। उन्हें जेल में डाल दिया गया। लेकिन मार्च 2020 में खराब स्वास्थ्य के कारण मानवीय आधार पर रिहा कर दिया गया। तब से वे घर में नजरबंद थीं।
बीएनपी का बढ़ना भारत के लिए चिंता का विषय क्यों है?
पूर्व पीएम बेगम खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का झुकाव हमेशा से इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरफ रहा है। जो हमेशा से पाकिस्तान की वकालत करते रहे हैं। खालिदा जिया जब 2001 से 2006 तक सत्ता में थी, तब पाकिस्तान की आईएसआई ने ढाका में मजबूत उपस्थिति बना ली थी। आईएसआई ने भारत में कई आतंकवादी हमलों की साजिशों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूर्व ISI प्रमुख असद दुरानी ने खुलासा किया था कि 1991 में खालिदा जिया के चुनाव खर्च को आईएसआई ने उठाया था।
भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से के विद्रोही समूह बांग्लादेश में आईएसआई के समर्थन से काम कर रहे थे। लेकिन जब शेख हसीना सत्ता में लौटीं, तो उन्होंने इन विद्रोही नेताओं को पकड़कर भारत को सौंप दिया और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की। ऐसे में अगर खालिदा जिया एक बार वहां फिर ताकतवर होती हैं तो बांग्लादेश का झुकाव पाकिस्तान और चीन की तरफ बढ़ेगा। भारत में जो पूर्वोत्तर के राज्य हैं, वहां सक्रिय आतंकवादी संगठनों को बांग्लादेश का प्रमुख आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन और बीएनपी, जो खालिदा जिया की पार्टी है, वह परोक्ष रूप से समर्थन देती है
आईएसआई की गतिविधियां और बीएनपी का बढ़ना
2013 के चुनावों से पहले, बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियों ने भारत को बताया था कि आईएसआई बांग्लादेश में आतंकवादी समूहों को फिर से सक्रिय करने की कोशिश कर रही है ताकि खालिदा जिया के निर्वासित बेटे, तारेक जिया का समर्थन किया जा सके।
तारेक ने 2001-06 के दौरान अपने माँ के दूसरे कार्यकाल में देश को लगभग चलाया। उस पर आईएसआई और आतंकवादी ऑपरेटिवों, जैसे उल्फा प्रमुख परेश बरुआ और माफिया सरगना दाऊद इब्राहीम के साथ करीबी संबंध रखने का आरोप था।
फिर 2019 में, आईएसआई ने प्रो-पाकिस्तान बीएनपी और चरमपंथी जमात-ए-इस्लामी को सत्ता में लाने की कोशिश की। इसके लिए उसने उम्मीदवारों का चयन किया और दुबई में अपने एजेंटों के माध्यम से धन का चैनलिंग किया। पाक उच्चायोग की भूमिका तब सामने आई जब पाकिस्तानी राजनयिकों ने कई बार बीएनपी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी।
बांग्लादेशी आतंकवादी संगठन और ISI के लिंक
बांग्लादेशी आतंकवादी संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल इस्लामी बांग्लादेश (हूजी-बी) का पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के साथ गहरा संबंध था। भारत में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने वाले कई आईएसआई-प्रायोजित आतंकवादी बांग्लादेश के माध्यम से घुसपैठ करते थे या हमलों के बाद बांग्लादेश में भाग जाते थे।
चीन का करीबी है बीएनपी
चीन भी खालिदा जिया की पार्टी का करीबी सहयोगी रहा है। खबरों की मानें तो बीएनपी का 19-बिंदुओं वाला राजनीतिक घोषणापत्र चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र के समान है। 1971 में पूर्व पाकिस्तान के स्वतंत्रता युद्ध के खिलाफ चीन ने विरोध जताया था और केवल मुजीब के हत्या के बाद ही बांग्लादेश को मान्यता दी। इसके बाद, चीन ने बांग्लादेश सेना के साथ मजबूत संबंध स्थापित किए। चीन और पाकिस्तान की गठजोड़ ने बीएनपी और चरमपंथी जमात-ए-इस्लामी का समर्थन किया है।