यूरोपीय संसद चुनाव क्या है, कौन करता है इसमें वोट...कब होगा और भारत के लिए इसके क्या मायने हैं? सभी सवालों के जवाब

यूरोपीय संघ (ईयू) की अगली संसद के लिए चुनाव 6 से 9 जून के बीच कराए जा रहे हैं। इसमें 27 देशों से 40 करोड़ मतदाता वोट डालेंगे। भारत की संसद के बाद एक तरह से दुनिया में यह दूसरी सबसे बड़ी संसद है।

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The Parliament of the European Union is a political and economic forum of 27 countries located in Europe (Photo- IANS)

यूरोपीय संघ की संसद यूरोप में स्थित 27 देशों का एक राजनैतिक और आर्थिक मंच है (फोटो- IANS)

ब्रसेल्स: यूरोपीय संघ (ईयू) की संसद के चुनाव 6 से 9 जून तक होने हैं। इसमें नागरिक यूरोपियन पार्लियामेंट में सदस्य (एमईपी) के तौर पर अपना प्रतिनिधित्व चुनेंगे। इसके तहत करीब 40 करोड़ योग्य मतदाता अगली यूरोपियन संसद चुनेंगे, जो यूरोपीय और यूरोपीय संघ के संस्थानों के बीच संबंध के लिए बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यूरोपीय संघ दरअसल यूरोप में स्थित 27 देशों का एक राजनैतिक और आर्थिक मंच है।

यूरोपीय संघ की संसद कानूनों में संशोधन और पारित करने सहित अंतरराष्ट्रीय समझौतों या कदमों को लेकर साझा निर्णय तैयार करती है। इस संसद में पारित कानून या नियम सभी सदस्य देशों पर लागू होते हैं। यूरोपीय संघ की वेबसाइट के अनुसार ये महत्वपूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विषयों पर भी ध्यान रखते हैं। सदस्य देशों में यूरोपीय संघ के मूल्यों- मसलन मानवाधिकार, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता और कानून के शासन को सुनिश्चित करने के लिए भी यूरोपीय संघ की संसद कदम उठाती रहती है।

यूरोपीय संघ की संसद के लिए कैसे और कब होंगे चुनाव

यूरोपीय संघ की संसद के लिए हर पांच साल में चुनाव होता है। इस बार नीदरलैंड में 6 जून को मतदान शुरू होगा। उसके बाद अगले दिन आयरलैंड और माल्टा में और शनिवार को लातविया और स्लोवाकिया में मतदान होगा। यूरोपीय संघ के कई सदस्य देश 9 जून को भी मतदान करेंगे। अधिकांश मतदान एक ही दिन में होता है। हालांकि चेक गणराज्य के पास मतदान करने के लिए शुक्रवार और शनिवार का दिन है। इटली में शनिवार और रविवार (8 और 9 जून) को मतदान होता है।

अधिकांश यूरोपीय देशों में मतदान की आयु 18 वर्ष है, लेकिन जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम और माल्टा में 16 वर्ष की आयु वाले किशोर भी मतदान कर सकते हैं। वहीं, ग्रीस में न्यूनतम आयु 17 वर्ष है।

यूरोपीय संघ में कम वोटिंग हमेशा एक मुद्दा रही है। पिछली बार 2019 में इस चुनाव में 50.7 प्रतिशत वोटिंग हुई थी और 1994 के बाद सबसे ज्यादा थी। ब्रिटेन ने ईयू छोड़ने से पहले पिछले यूरोपीय चुनाव में हिस्सा लिया था। उसके बाद से उसके हिस्से के कुछ सीट अन्य देशों में बांटे गए हैं या फिर कुछ इसलिए छोड़ दिए गए हैं कि भविष्य में अगर ईयू का विस्तार होता है तो वे सीटें जोड़ दी जाएंगी।

European Elections: कितने सदस्य चुने जाते हैं?

इस साल जून में कुल 720 सदस्य चुने जाएंगे, जो पिछले चुनावों की तुलना में 15 अधिक हैं। एक सामान्य नियम के तौर पर सदस्यों की संख्या प्रत्येक चुनाव से पहले तय की जाती है। अभी के नियमों के अनुसार कुल संख्या 750 और इसके प्रेसिडेंट से अधिक की संख्या नहीं रह सकती। कुल मिलाकर देखें तो यह दुनिया में भारत की संसद (लोक सभा और राज्य सभा मिलाकर) के बाद दूसरा सबसे बड़ा संसद है। हर यूरोपीय देश से निर्वाचित सदस्यों की संख्या इस प्रकार है-

जर्मनी: 96
फ्रांस: 81
इटली: 76
स्पेन: 61
पोलैंड: 53
रोमानिया: 33
नीदरलैंड: 31
बेल्जियम: 22
ग्रीस: 21
चेक गणराज्य: 21
स्वीडन: 21
पुर्तगाल: 21
हंगरी: 21
ऑस्ट्रिया: 20
बुल्गारिया: 17
डेनमार्क: 15
फिनलैंड: 15
स्लोवाकिया: 15
आयरलैंड: 14
क्रोएशिया: 12
लिथुआनिया: 11
स्लोवेनिया: 9
लातविया: 9
एस्टोनिया: 7
साइप्रस: 6
लक्ज़मबर्ग: 6
माल्टा: 6

मुख्य राजनीतिक ग्रुप कौन-कौन से हैं?

इस संसद में दो सबसे बड़े ग्रुप हैं यूरोपियन पीपुल्स पार्टी (ईपीपी) और प्रोग्रेसिव एलायंस ऑफ सोशलिस्ट्स एंड डेमोक्रेट्स (S&D)। अन्य ग्रुप में लिबरल रिन्यू यूरोप और ग्रीन्स यूरोपियन फ्री अलायंस शामिल हैं, जो पिछली संसद में बहुमत में थे। दरअसल यूरोपियन संसद के चुनाव हर देश में मौजूद पार्टियां लड़ती हैं। फिर इनके जीते हुए सदस्य यहां पहुंचकर अलग-अलग ग्रुप में अपनी विचारधारा के अनुसार बंट जाते हैं। इस संसद में इन्हें बैठाया भी इनके ग्रुप के अनुसार जाता है। इसमें जरूर नहीं कि एक देश से आया सदस्य अपने ही देश के किसी अन्य सदस्य के साथ बैठे। यहां ये अलग-अलग ग्रुप में बंट जाते हैं। अभी यूरोपीय संसद में 7 ग्रुप हैं। कुछ सदस्य किसी भी ग्रुप से संबंधित नहीं रह सकते हैं।

यूरोपियन यूनियन संसद भारत के लिए क्यों अहम है?

नई यूरोपीय संसद अगले पांच सालों के लिए जलवायु परिवर्तन, प्रवासन, व्यापार और अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर नीतियों को आकार देगी। इस लिहाज भारत के लिए यूरोपीय संघ के कदम अहम होते हैं। कई ऐसे भी मुद्दे हैं जिन पर यूरोपीय संसद और भारत की चिंताएं एक जैसी हैं। इनमें महामारी, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक सुरक्षा, व्यापार और डिजिटलीकरण जैसे विषय शामिल हैं।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के अनुसार ईयू से व्यापारिक निर्यात साल 2000 में 12.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2021 में 46.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। वैसे यह वृद्धि दर इतनी तेज नहीं है कि ईयू से आर्थिक संबंधों में महत्वपूर्ण विविधता ला सके।

2000 के दशक में भारत से यूरोपीय संघ का आयात तीन गुना से अधिक हो गया लेकिन 2010 और 2019 के बीच यह धीमी दर से बढ़कर 44 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 54 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ही पहुंचा है। 2010 के बाद से भारत की बढ़ती हिस्सेदारी की तुलना में यूरोपीय संघ में आयात के मामले में चीन तेजी से आगे बढ़ा है।

यूरोपीय संघ ने 2020 में अपनी 'ईयू-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप: ए रोडमैप टू 2025' लॉन्च की, जिसे अब 2025 की शुरुआत तक के लिए रिशिड्यूल किया गया है। यह ईयू-भारत संबंधों के लिए पांच साल का रोडमैप तैयार करेगा और चीन के बढ़ते प्रभाव की काट तैयार कर सकता है।

वैसे, कूटनीतिक रूप से 2022 के यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत और यूरोपीय संघ के बीच अब संबंध ठीक हो रहे हैं। रूस के साथ भारत के लंबे समय से चले आ रहे संबंधों ने हाल में कई यूरोपीय देशों को नाराज कर दिया था। हालांकि, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मजबूती से तर्क रखा कि यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि यूरोप की समस्या ही दुनिया की समस्या हैं, लेकिन दुनिया की समस्याएं यूरोप की समस्याएं नहीं हैं।

इस बीच यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन अफेयर्स रिलेशंस (ईसीएफआर) के एक लेख के अनुसार चीन को लेकर चिंताओं ने नए सिरे से ईयू-भारत वार्ता के लिए आशाजनक आधार तैयार किया है।

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