न्यूयॉर्क: अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी माइक बेंज ने आरोप लगाया है कि अमेरिका ने भारत और बांग्लादेश सहित कई देशों की घरेलू राजनीति में हस्तक्षेपर किया है। बेंज के अनुसार इसके लिए अमेरिका ने मीडिया के प्रभाव सहित सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्ष के आंदोलनों को फंडिंग देने जैसे हथकंडे अपनाए।
बेंज के अनुसार अमेरिका समर्थित एजेंसियों ने चुनावों को प्रभावित करने, इन देशों में सरकारों को अस्थिर करने और यहां के प्रशासन को वाशिंगटन के रणनीतिक हितों के साथ जोड़ने के लिए 'लोकतंत्र को बढ़ावा देने' जैसी बातों
का सहारा लिया।
2019 के चुनाव को प्रभावित करने की हुई थी कोशिश'
बेंज ने आरोप लगाया है कि यूएसएआईडी, थिंक टैंक और प्रमुख प्रौद्योगिकी कंपनियों सहित अमेरिकी विदेश नीति प्रतिष्ठान के कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ भारत के 2019 के आम चुनावों को प्रभावित करने के लिए ऑनलाइन चर्चा में हेरफेर किया।
बेंज का दावा है कि इन समूहों ने इस विचार को बढ़ावा देकर चुनाव को प्रभावित करने के लिए मिलकर काम किया कि मोदी की राजनीतिक सफलता काफी हद तक गलत सूचना का परिणाम है, जिससे व्यापक सेंसरशिप का आधार तैयार हुआ। बेंज के अनुसार अमेरिका समर्थित संस्थाओं ने भारत के डिजिटल क्षेत्र में हस्तक्षेप को उचित ठहराने के लिए रणनीतिक रूप से मोदी के समर्थकों को फर्जी खबरें फैलाने वालों के तौर पर प्रचारित किया।
बेंज दावा है कि यूएसएआईडी से जुड़े संगठनों सहित कई संगठनों ने रिपोर्ट बनाने के लिए प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया और डिजिटल फोरेंसिक समूहों के साथ काम किया। इन सब प्रयासों के तहत भारत को गंभीर रूप से गलत सूचना संकट से जूझने वाला बताया गया। बेंज ने कहा कि यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मोदी समर्थक नैरेटिव को दबाने का एक बना।
फेसबुक से लेकर यूट्यूब और व्हाट्सऐप का इस्तेमाल
बेंज ने दावा किया है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने मोदी समर्थक सामग्री पर अंकुश लगाने के लिए फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब और ट्विटर जैसी कंपनियों पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। उनका दावा है कि व्हाट्सएप को विशेष रूप से प्रतिबंधों के लिए लक्षित किया गया था। गौरतलब है कि व्हाट्सऐप का भारत में राजनीतिक संदेशों भेजने के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। बेंज ने व्हाट्सऐप के उस फैसले का भी जिक्र किया जिसमें जनवरी 2019 में भारत में किसी मैसेज को फॉरवर्ड करने की संख्या को सीमित किया गया था। बेंज के अनुसार ऐसा फैसला भाजपा को अपने मतदाताओं तक पहुंचने से रोकने के लिए था।
How USAID brought about the regime change in Bangladesh…Mike Benz explains. pic.twitter.com/fr83VnifLh
— Abhijit Majumder (@abhijitmajumder) February 9, 2025
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यूएसएआईडी और अमेरिका से जुड़े थिंक टैंक ने गलत सूचना विरोधी कार्यक्रमों को वित्त पोषित करके इन प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभाई। यह सबकुछ असल में भाजपा से जुड़े राष्ट्रवादी आंदोलनों को दबाने के लिए डिजाइन किया गया था।
बांग्लादेश को भी अस्थिर करने में अमेरिका का हाथ?
बेंज ने दावा किया है कि भारत के अलावा अमेरिका ने बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य को भी प्रभावित करने की कोशिश की है। खासकर अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को कमजोर करने के प्रयास किए गए। बेंज के अनुसार संभवत: चीन के साथ बांग्लादेश की बढ़ती आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी को अमेरिकी नीति निर्माता अपने क्षेत्रीय प्रभाव के लिए एक चुनौती के रूप में देखने लगे थे।
बेंज द्वारा प्राप्त लीक दस्तावेजों के अनुसार, नेशनल एंडोमेंट फॉर डेमोक्रेसी और उसके सहयोगियों जैसे अमेरिकी वित्त पोषित संगठनों ने कथित तौर पर बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिति को अस्थिर करने की योजना पर काम किया। इन रणनीतियों में कार्यकर्ताओं की भर्ती करना, अल्पसंख्यक समूहों को संगठित करना और समाज के भीतर विभाजन पैदा करने के लिए सांस्कृतिक और जातीय तनाव को बढ़ावा देने जैसे प्रयास शामिल थे।
बेंज के दावों के अनुसार अमेरिकी करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल बांग्लादेशी रैप संगीत को वित्तपोषित करने के लिए किया गया, जिसे सरकार विरोधी भावना को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किया गया था। बेंज का मानना है कि बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन को प्रोत्साहित करने के लिए इन गीतों को रणनीतिक रूप से छात्रों और युवा कार्यकर्ताओं को ध्यान में रखकर तैयार कराया गया।
अमेरिका का अन्य देशों में भी प्रभाव
बेंज का दावा है कि अमेरिका की इसी तरह की रणनीति कुछ अन्य देशों में भी देखी गई है, जहां वाशिंगटन ने एक ऐसी सरकार स्थापित करने या बनाए रखने की मांग की जो उसकी विदेश नीति के अनुरूप हो। बेंच ने उदाहरण के तौर पर यूक्रेन की राजनीतिक उथल-पुथल में अमेरिका की भागीदारी, वेनेजुएला में विपक्षी नेताओं के लिए समर्थन और मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में हस्तक्षेप जैसी बातों की ओर इशारा किया।
बेंज के अनुसार इन प्रयासों में आम तौर पर मीडिया, डिजिटल सेंसरशिप, विपक्षी समूहों के लिए वित्तीय सहायता और राजनयिक दबाव का इस्तेमाल किया जाता है।