बैंकॉक: थाईलैंड और कंबोडिया के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। दोनों देशों के बीच 800 किलोमीटर लंबी सीमा को लेकर लंबे समय से मतभेद रहे हैं। अब, सीमा पर एक हफ्ते से चल रही झड़पों के बाद यह मुद्दा नियंत्रण से बाहर होने का खतरा बन रहा है। हालात ये हैं कि इस संघर्ष में मिसाइल और लड़ाकू विमानों तक का इस्तेमाल हो रहा है। बम गिराए जा रहे हैं। थाई स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि थाईलैंड में कंबोडिया के हमलों में कम से कम 11 नागरिक मारे गए हैं।

थाईलैंड ने शुरुआत में बताया था कि कंबोडियाई सेना द्वारा सुरिन प्रांत के एक रिहायशी इलाके में की गई गोलाबारी में दो नागरिक मारे गए और एक पाँच साल के बच्चे समेत तीन अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सुरसंत कोंगसिरी के अनुसार, स्थिति तेजी से बिगड़ी है और अब थाई-कंबोडियाई सीमा पर कम से कम छह जगहों पर झड़पें होने की खबर है। 

गोलाबारी के जवाब में, थाई सेना ने कहा कि उसने कंबोडिया के अंदर सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए। कंबोडियाई रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि थाईलैंड ने प्राचीन प्रीह विहियर मंदिर (Preah Vihear) के पास एक सड़क पर लड़ाकू विमानों से बमबारी की है। फिलहाल कंबोडिया में किसी के हताहत होने की खबर सामने नहीं आई है। सवाल है कि दोनों देश आमने-सामने क्यों आए हैं? ताजा संघर्ष कैसे शुरू हुआ, आईए जानते हैं।

थाईलैंड-कंबोडिया संघर्ष: कैसे शुरू हुआ ताजा तनाव

सबसे ताजा हिंसा गुरुवार सुबह थाईलैंड के सुरिन प्रांत और कंबोडिया के ओद्दार मीनचेय की सीमा पर स्थित दो प्राचीन मंदिरों के पास भड़की। कंबोडिया ने अब इस मामले में संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की माँग की है और थाईलैंड को "युद्ध के लिए भूखा" राष्ट्र बताया है।

थाई सेना के अनुसार, सुबह लगभग 7:35 बजे ता मुएन मंदिर (Ta Muen temple) की सुरक्षा में तैनात सैनिकों ने इलाके में एक कंबोडियाई ड्रोन देखा, जिसके तुरंत बाद छह हथियारबंद कंबोडियाई सैनिक, जिनमें से एक के पास कथित तौर पर रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनेड था, एक थाई सैन्य चौकी के पास कंटीले तारों की बाड़ के पास पहुँचे। थाई सेना का दावा है कि कंबोडियाई सैनिकों ने गोलीबारी शुरू की, और तनाव बढ़ा।

थाई पक्ष ने कंबोडिया पर "नागरिकों पर लक्षित हमले" का आरोप लगाते हुए कहा कि दो बीएम-21 रॉकेट सुरिन के कप चोएंग जिले में एक स्थानीय समुदाय पर गिरे, जिससे तीन नागरिक घायल हो गए।

हालाँकि, कंबोडिया ने झड़प शुरू करने के लिए थाईलैंड को जिम्मेदार ठहराया है। रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता माली सोचेता ने कहा, "थाई सेना ने देश के संप्रभु क्षेत्र की रक्षा के लिए तैनात कंबोडियाई सेना पर सशस्त्र हमला करके कंबोडिया की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन किया है।'' उन्होंने आगे कहा कि कंबोडियाई सेना ने अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, आत्मरक्षा में थाई घुसपैठ को विफल करने और देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए जवाबी कार्रवाई की।

क्या है थाईलैंड और कंबोडिया के झगड़े का इतिहास?

यहां जानना जरूरी है कि दोनों दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच झगड़ा पुराना है।दोनों के बीच सीमा तनाव की शुरुआत 1900 के दशक के शुरुआती वर्षों में हुई थी। यह वह दौर था जब कंबोडिया में फ्रांस का शासन था। थाईलैंड, जिसे उस समय सियाम के नाम से जाना जाता था, वो एक स्वतंत्र राष्ट्र था।

1907 में फ्रांसीसियों ने थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा निर्धारित की। यह सीमा दोनों देशों के बीच प्राकृतिक सीमा रेखा के अनुरूप होनी थी। हालाँकि, बाद में थाईलैंड ने इस पर विरोध जताया। जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा, तो जापान ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

युद्ध के दौरान थाईलैंड ने उन क्षेत्रों पर फिर से नियंत्रण प्राप्त कर लिया। हालाँकि, जापान के अमेरिका के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद इन क्षेत्रों का नियंत्रण कंबोडिया के पास वापस आ गया। यहीं से विवाद की शुरुआत होती है और दोनों देशों ने कई साल समय सीमा विवादों में उलझे रहने में बिताया है।

हालाँकि दोनों देशों ने इस मुद्दे को बार-बार सुलझाने की कोशिश की है। इसी कोशिश में 2000 में एक संयुक्त सीमा आयोग (Joint Boundary Commission) का गठन भी किया गया। लेकिन इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ है।

इस विवादित क्षेत्र में खासकर मंदिरों का स्वामित्व एक पेचीदा विषय रहा है। 11वीं शताब्दी का एक हिंदू मंदिर जिसे थाईलैंड में प्रीह विहियर या खाओ फ्रा विहारन (Khao Phra Viharn) कहा जाता है, वो दोनों देशों के बीच बड़ी बहस का विषय रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कंबोडिया को सौंप दिया था मंदिर

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने 1962 में इस मंदिर को कंबोडिया को सौंप दिया था, लेकिन थाईलैंड आसपास की जमीन पर अपना दावा करता रहा है। ता मोआन थॉम और ता मुएन थॉम जैसे कुछ अन्य मंदिर भी हैं जो इन विवादित क्षेत्रों में आते हैं।

साल 2008 में कंबोडिया द्वारा प्रीह विहियर मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध करने के प्रयास के बाद तनाव बढ़ गया। इसका नतीजा ये हुआ कि कई सालों तक झड़पें हुईं और कम से कम एक दर्जन लोग मारे गए। इसमें 2011 में एक सप्ताह तक दोनों ओर से हुई गोलीबारी और तोपों का इस्तेमाल भी शामिल है। इन संघर्षों के बीच हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा।

इस बीच 2013 में, कंबोडिया के आग्रह पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने एक बार फिर अपने पुराने फैसले की पुष्टि की। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कंबोडिया के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि मंदिर के आसपास की जमीन भी कंबोडिया का हिस्सा है। थाई सैनिकों को वहाँ से हटने का आदेश दिया। जाहिर तौर पर यह फैसला यह थाईलैंड को रास नहीं आया।

थाईलैंड कहता रहा है कि वह अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को स्वीकार नहीं करता और दोनों देशों के बीच किसी भी सीमा संबंधी विवाद का समाधान मौजूदा द्विपक्षीय व्यवस्था के तहत किया जाना चाहिए। वहीं, कंबोडिया का कहना है कि वह इस मामले को बंद मानता है और इस विषय पर थाईलैंड के साथ बातचीत करने से इनकार करता है।

बहरहाल, इसी साल फरवरी में दोनों देशों के बीच तनाव फिर से भड़क उठा था। दरअसल, कंबोडियाई सैनिक और उनके परिवार के सदस्य सीमा पर विवादित क्षेत्रों में से एक में स्थित एक प्राचीन मंदिर में गए थे। उन्होंने कंबोडियाई राष्ट्रगान गाया, जिसके बाद थाई सैनिकों के साथ थोड़ी बहस हुई।

यह बहस वायरल भी हो गई थी, जिससे दोनों देशों में काफी आक्रोश फैल गया। फिर, मई में सीमा पार गोलीबारी में एक कंबोडियाई सैनिक मारा गया। सैनिक एमराल्ड ट्रायंगल (Emerald Triangle) में मारा गया था। ये वो स्थान है जहाँ कंबोडिया, थाईलैंड और लाओस के बॉर्डर मिलते हैं।

कंबोडिया ने दावा किया कि थाई सैनिकों ने सीमा पर एक सैन्य चौकी पर गोलीबारी की थी। हालांकि, थाईलैंड ने दावा किया कि उसके सैनिक केवल अपना बचाव कर रहे थे और कंबोडियाई सैनिकों ने पहले गोली चलाई थी। इस घटना ने दोनों पक्ष के बीच तनाव बढ़ा दिया था।