बर्गेनस्टॉक (स्विट्जरलैंड): यूक्रेन में शांति बहाली को लेकर स्विट्जरलैंड में शिखर सम्मेलन में रूस के भाग नहीं लेने और इसे ‘समय की बर्बादी’ बताने के बीच भारत ने अहम कदम उठाया है। दरअसल, शांति सम्मेलन के बाद 16 जून को एक साझा बयान जारी किया गया लेकिन भारत ने इस संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर नहीं किए और असहमति जताते हुए खुद को इससे अलग कर लिया।
भारत अलावा छह और देश भी हैं जिन्होंने शांति सम्मेलन के साझे बयान पर अपनी सहमति नहीं दी। भारत के अलावा सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मेक्सिको और यूएई वो देश हैं जिन्होंने शांति सम्मेलन के बाद तैयार साझा दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया।
इसके अलावा सम्मेलन में बतौर पर्यवेक्षक शामिल हुए ब्राजील ने भी हस्ताक्षर नहीं किए। साथ ही बता दें कि इस सम्मेलन में रूस के अलावा चीन ने भी शामिल होने से इनकार कर दिया था।
बहरहाल, भारत ने कहा कि ‘केवल दोनों पक्षों को स्वीकार्य विकल्प ही स्थायी शांति का रास्ता लेकर आ सकते हैं।’ रविवार को संपन्न दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) पवन कपूर ने कहा कि भारत एक बहुत ही जटिल और गंभीर मुद्दे पर बातचीत के जरिए समाधान का रास्ता तलाशने के लिए शिखर सम्मेलन में शामिल हुआ था।
शिखर सम्मेलन के बाद एक साझा बयान तैयार किया गया जिसपर लगभग 80 देशों ने हस्ताक्षर किए। इसके अनुसार यूक्रेन की ‘क्षेत्रीय अखंडता’ ही रूस द्वारा शुरू किए गए युद्ध को समाप्त करने के लिए किसी भी शांति समझौते का आधार होना चाहिए।
हालांकि, भारत ने जोर दिया कि ‘स्थायी शांति केवल बातचीत और कूटनीति के माध्यम से मिल सकती है।’ कपूर ने कहा कि ऐसी शांति के लिए ‘सभी स्टेकहोल्डर्स को एक साथ लाने और संघर्ष में जुटे दोनों पक्षों के बीच एक ईमानदार और व्यावहारिक जुड़ाव की आवश्यकता है।’
पीएम मोदी समिट में नहीं हुए थे शामिल
यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए अग्राह किया था। हालांकि, मास्को के साथ करीबी रणनीतिक संबंध रखने वाले भारत ने शिखर सम्मेलन के लिए एक सचिव स्तर के अधिकारी को भेजने का फैसला किया। गौरतलब है कि युद्ध शुरू होने के बाद से भारत तेल की बढ़ती कीमतों के मुद्रास्फीति प्रभाव को कम करने के लिए रियायती कीमतों पर रूस से तेल भी खरीदता रहा है।
स्विस सम्मेलन शुरू होने से एक दिन पहले, मोदी ने जेलेंस्की से इटली में मुलाकात भी की थी और कहा था कि शांति का रास्ता बातचीत और कूटनीति के माध्यम से निकल सकता है। साथ ही उन्होंने कहा था कि भारत शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करने के लिए अपने समार्थ्य के हिसाब से सब कुछ करना जारी रखेगा।
रूस शुरू से कर रहा था समिट की आलोचना
यूक्रेन में शांति पर शिखर सम्मेलन में मास्को की प्रतिक्रिया शुरू से ही आलोचनात्मक रही थी। पिछले सप्ताह की शुरुआत में क्रेमलिन ने कहा था कि कुछ देश इस महीने यूक्रेन पर स्विस में आयोजित हो रही शांति शिखर सम्मेलन में भाग लेने से इनकार कर रहे हैं क्योंकि इसके लक्ष्य स्पष्ट नहीं हैं और रूस के बिना इसे आयोजित करना बेतुका है।
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा था, ‘यह पूरी तरह से बेतुकी गतिविधि है, यह एक बेकार बात है।’ उन्होंने कहा था कि यह स्पष्ट है कि बैठक से नतीजें नहीं आ रहे और ‘इसीलिए कई देश समय बर्बाद नहीं करना चाहते।’
वहीं, शिखर सम्मेलन शुरू होने से एक दिन पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस युद्ध तभी समाप्त करेगा जब कीव नाटो में शामिल होने की महत्वाकांक्षाओं को छोड़ेगा। साथ ही रूस ने ये ङी शर्त रखी थी कि मास्को द्वारा दावा किए गए चार प्रांतों को यूक्रेन को उसे सौंपना होगा। कीव ने हालांकि इन मांगों को आत्मसमर्पण के बराबर मानकर खारिज कर दिया गया।
शांति सम्मेलन के बाद फाइनल दस्तावेज में क्या कहा गया?
फाइनल विज्ञप्ति में शिखर सम्मेलन में चर्चा के तीन विषयों को संबोधित किया गया था। ये हैं- परमाणु सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और मानवीय आयाम। इसमें कहा गया, ‘यूक्रेन के खिलाफ चल रहे युद्ध के संदर्भ में परमाणु हथियारों का कोई भी खतरा या उपयोग अस्वीकार्य है…खाद्य सुरक्षा को किसी भी तरह से हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए। यूक्रेनी कृषि उत्पादों को इच्छुक तीसरे देशों को सुरक्षित और स्वतंत्र रूप से प्रदान किया जाना चाहिए और युद्ध के सभी कैदियों को रिहा किया जाना चाहिए। सभी निर्वासित और गैरकानूनी रूप से विस्थापित यूक्रेनी बच्चों और अन्य सभी यूक्रेनी नागरिकों को, जिन्हें गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया, उन्हें यूक्रेन वापस भेजा जाना जाना चाहिए।
इसमें यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया कि रूस को इस प्रक्रिया में भाग लेने की जरूरत है। इसमें कहा गया, ‘हम मानते हैं कि शांति तक पहुंचने के लिए सभी पक्षों की भागीदारी और बातचीत की आवश्यकता है। इसलिए हमने भविष्य में सभी पक्षों के प्रतिनिधियों की भागीदारी के साथ उपर्युक्त क्षेत्रों में ठोस कदम उठाने का निर्णय लिया है।’
इसमें आगे कहा गया, ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर जिसमें सभी राष्ट्रों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान के सिद्धांत शामिल हैं, यह यूक्रेन में व्यापक, न्यायसंगत और स्थायी शांति प्राप्त करने में एक आधार के रूप में काम कर सकता है।’