ढाकाः बांग्लादेश में स्कूली पाठ्यपुस्तकों से ‘आदिवासी’ शब्द हटाए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमले की खबरें सामने आई हैं। घटना 15 जनवरी की है। सामने आई जानकारी के अनुसा बांग्लादेश में 9वीं और 10वीं कक्षा की बांग्ला पाठ्यपुस्तकों से ‘आदिवासी’ शब्द हटाया गया था, जिसको लेकर आदिवासी समाज के लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे।
यह प्रदर्शन ढाका में ‘एग्रीवड इंडिजिनियस स्टूडेंट-मासेस’ नाम के ग्रुप द्वारा नेशनल करिकुलम टेक्स्टबुक बोर्ड (NCTB) के बाहर आयोजित किया गया था।
आदिवासी समूहों ने कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर विरोध जताने के लिए एनसीटीबी कार्यालय तक मार्च किया। हालांकि इस प्रदर्शन के दौरान उन्हें स्टूडेंस फॉर सॉवरेन्टी समूह की तरफ से हिंसक प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। यह समूह इस शब्द को हटाने की वकालत करता है। क्रिकेट के विकेटों और डंडों से लैस इन हमलावरों ने प्रदर्शनकारी आदिवासियों पर हमला किया। हमला करते समय हमलावर ‘तुमी के, आमी के? बंगाली, बंगाली’ और ‘नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर’ के नारे लगा रहे थे।
प्रदर्शनकारियों को आईं गंभीर चोटें
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, ये हमलावर नकाब पहने हुए थे और इन्होंने आदिवासी महिलाओं को निशाना बनाया। स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन के संगठन की छात्र नेता रूपैया श्रेष्ठ तंचांग्या को सिर में गंभीर चोटें आईं। उनके सिर में 12 टांके लगे हैं। वहीं डॉन जेत्रा नाम की एक दूसरी आंदोलकनकारी छात्रा भी खुद की रक्षा करते समय चोट का शिकार हुई है, इससे उसके दोनों हाथों में फ्रैक्चर हुआ है। इस हमले में रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों समेत करीब 20 लोग घायल हुए हैं।
वीडियो फुटेज में रूपैया के सिर से खून बहता देखा गया। कई हमलावर उसे बार-बार मार रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस प्रशासन पर कार्यवाई न करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यदि पुलिस समय पर कार्रवाई करती तो इस हिंसा से बचा जा सकता था। “आदिवासी” शब्द बांग्लादेश के स्वदेशी (मूलनिवासी) समुदायों के लिए बहुत महत्व रखता है, क्योंकि इसे उनकी पहचान और विरासत के एक आवश्यक संकेतक के रूप में देखा जाता है।
कट्टरपंथी समूहों से जुड़े होने के आरोप
पाठ्यपुस्तकों से ‘आदिवासी’ शब्द को 2024 में स्थापित समूह स्टूडेंट्स फ़ॉर सॉवरेन्टी के विरोध के बाद हटाए जाने की बात सामने आई है। यह संगठन कथित तौर पर चरमपंथी गुटों से जुडा हुआ माना जाता है। उनके अनुसार, “आदिवासी” शब्द का प्रयोग राष्ट्रीय संप्रभुता और अलगाववाद के लिए हानिकारक है।
इन हमलावरों ने आदिवासियों का नाम बदलकर “उपोजाति” (उप-जनजाति) या “खुद्रो नृगोष्टी” (छोटे जातीय समूह) करने की वकालत की है। इसके साथ ही उनमें से अधिकांश लोगों ने इस शब्द (आदिवासी) को स्वभाव से देशद्रोही बताया है। स्टूडेंस फॉर सॉवरेन्टी समूह ने कहा कि इससे यह आभास होता है कि आदिवासी लोग ही बांग्लादेश के मूल निवासी थे।
आदिवासी प्रदर्शनकारियों में शामिल एलिक म्री ने कहा, “हम पर हमला होने से पहले तक यह एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन था।” कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि घटनास्थल पर मौजूद पुलिस लोगों की रक्षा करने में असफल रही।
स्टूडेंट्स फॉर सॉवरेन्टी का दावा- पहले उसके सदस्यों को चोट लगी
दूसरी ओर, स्टूडेंट्स फॉर सॉवरेन्टी संगठन के नेता याकूब मजूमदार ने हमले के आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया कि उनके सदस्य पहले घायल हुए थे। हालांकि घटनास्थल पर मौजूद कई पत्रकारों ने मजूमदार की बातों का खंडन किया है।
स्टूडेंट्स फॉर सॉवरेन्टी पर कट्टरपंथी गुटों के साथ संबंध के आरोप लगते रहे हैं। इन लोगों के संबंध इस्लामिक छात्र शिबिर और अन्य समान समूहों के साथ भी जोड़े जाते रहे हैं। आलोचकों का दावा है कि ये कृत्य अल्पसंख्यक आवाजों को दबाने और एक समान राष्ट्रीय पहचान लागू करने के बड़े प्रयास का हिस्सा हैं।
बहरहाल, हमले को देखते हुए आदिवासी समूहों ने विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। इस विरोध प्रदर्शन में राज्य अतिथि गृह, जमुना की घेराबंदी भी शामिल है। इसी अतिथि गृह में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के सलाहकार मोहम्मद यूनुस रह रहे हैं। इन आदिवासी समूहों की मांग है कि उन पर हमला करने वालों पर कार्रवाई के साथ-साथ स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में “आदिवासी” शब्द को फिर से शामिल किया जाए।
पिछले साल शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं सहित बौद्धों और ईसाई धर्मावलंबियों पर हमले की कई खबरें सामने आई हैं।