राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (फोटो- IANS)
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पेरिस: फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने एक चौंकाने वाला कदम उठाया है। उन्होंने फ्रांस की संसद को भंग करने और इसी महीने के अंत में चुनाव कराने का ऐलान किया है। ऐसे में फ्रांस के निचले सदन नेशनल असेंबली के लिए दो दौर में चुनाव होते हैं।
पहले दौर में 30 जून और फिर दूसरे दौर में सात जुलाई को चुनाव होगा। राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने यह फैसला तब लिया है जब यूरोपीय चुनावों में उनकी पार्टी को फ्रांस के विपक्षी दल मरीन ले पेन की धुर दक्षिणपंथी पार्टी से हार का सामना करना पड़ा है।
राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों का मध्यमार्गी गठबंधन को 15.2 फीसदी वोट मिले हैं जबकि धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी को 33 फीसदी मत मिला है। इस हार और चुनाव के ऐलान पर बोलते हुए मैक्रों ने कहा है कि यह फैसला काफी "गंभीर और भारी" है।
उनके अनुसार, फ्रांस के लोकतंत्र में विश्वास बनाए रखने और फ्रांसीसी लोगों को आवाज देने के लिए यह निर्णय जरूरी है। ईयू के चुनाव में हार के बाद राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने समय से पहले और केवल तीन साल में चुनाव का ऐलान किया है। बता दें कि फ्रांस में 2022 में ही संसदीय चुनाव हुए थे।
नेशनल असेंबली में बहुमत हासिल करने पर क्या होगा
फ्रांस की नेशनल असेंबली में 577 मेंबर होते हैं। मौजूदा दौर में मैक्रोन की पार्टी के पास 169 मेंबर हैं जबकि ले पेन की नेशनल पार्टी में 88 मेंबर हैं। फिलहाल में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों हैं और यहां पर राष्ट्रपति के पद के लिए अलग से चुनाव होता है।
ऐसे में अगर फ्रांस के नेशनल असेंबली में विपक्षी दल नेशनल रैली अगर चुनाव जीत जाती है और मैक्रों की रेनेसां पार्टी हार जाती है तो भी मैक्रों राष्ट्रपति बने रहेंगे।
विरोधी दलीय सहकारिता की स्थिति कब पैदा होगी
नेशनल असेंबली के चुनाव में मैक्रों की रेनेसां पार्टी अगर चुनाव हार जाती है और ले पेन की पार्टी या कोई अन्य पार्टी अगर बहुमत हासिल कर लेती है तो इसके बाद मैक्रों को उनकी पार्टी से एक प्रधानमंत्री को नियुक्त करना होगा।
अगर ऐसा होता है तो इससे मैक्रों काफी कमजोर हो जाएंगे और आगे चलकर किसी भी फैसले को लेने के लिए उन्हें विपक्षी पार्टी पर निर्भर होना होगा। फ्रांस की राजनीति में इस तरह के हालात को सह-अस्तित्व या विरोधी दलीय सहकारिता (कोहैबटैशन) की स्थिति कहते हैं।
दूसरे शब्दों में अगर समझे तो विरोधी दलीय सहकारिता का मतलब यह हुआ कि राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री एक ही पार्टी के नहीं बल्कि अलग-अलग राजनीतिक दलों से हो। फ्रांस में जब कभी भी विरोधी दलीय सहकारिता की स्थिति होती है तो इस केस में राष्ट्रपति रक्षा और विदेश नीति को संभालता है जबकि प्रधान मंत्री घरेलू नीति को नियंत्रित करता है।
1997 में हुई थी विरोधी दलीय सहकारिता की स्थिति
पिछली बार फ्रांस में विरोधी दलीय सहकारिता की स्थिति साल 1997 में हुई थी केंद्र-दक्षिणपंथी राष्ट्रपति जैक्स शिराक ने यह सोचा था कि उन्हें मजबूत बहुमत हासिल होगा और संसद को भंग कर दिया था।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं और वे अप्रत्याशित रूप से सोशलिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले वामपंथी गठबंधन से हार गए। जीतने वाले समाजवादी पार्टी के लियोनेल जोस्पिन पांच साल के लिए प्रधान मंत्री बने और उस समय 35 घंटे का कार्य सप्ताह लागू किया था।
विरोधी दलीय सहकारिता की स्थिति से क्या होगा
इस तरह की स्थिति फ्रांस की राजनीति में नीतिगत टकराव और अनिश्चितता को जन्म दे सकती है। यही नहीं इस तरह की स्थिति का बाजार पर भी असर पड़ सकता है। इससे पहले ले पेन ने साल 2022 के राष्ट्रपति घोषणापत्र में फ्रांसीसी नागरिकों के लिए सामाजिक आवास को प्राथमिकता दिया था।
यही नहीं उस दौरान उन्होंने फ्रांस के बाहर शरण अनुरोधों को प्रोसेस करने और मध्यम वर्ग और कम आय वाले परिवारों के लिए विरासत कर को खत्म करने की वकालत की थी।
बता दें कि राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों यूरोपीय संघ का समर्थन करते हैं लेकिन वहीं दूसरी ओर ले पेन की पार्टी यूरो-संशयवादी है। ऐसे में अगर ले पेन की पार्टी अगर चुनाव जीत जाती है तो इससे मैक्रॉन के सामने नई चुनौतियां होगी।