वॉशिंगटन: पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो (José Raúl Mulino) ने कहा है कि वे चीन के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) प्रोजेक्ट को आगे नहीं बढ़ाएंगे। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के साथ बैठक के बाद पनामा के राष्ट्रपति ने यह घोषणा की। इस तरह पनामा किसी वैश्विक बुनियादी ढांचा पहल से हटने वाला पहला लैटिन अमेरिकी देश बन गया है।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार मुलिनो ने कहा कि चीन की बेल्ट एंड रोड पहल में योगदान देने के लिए पनामा और चीन के बीच एक व्यापक समझौता हुआ था। इसे रिन्यू नहीं किया जाएगा। इस समझौते के तहत चीन ने पनामा में निवेश का विस्तार किया था।
मुलिनो ने कहा कि समझौते का अगले एक से दो वर्षों में नवीनीकृत किया जाना है। हालांकि, उनकी सरकार इसे पहले ही समाप्त करने की संभावना की तलाश करेगी। उन्होंने कहा, 'हम इसे जल्दी खत्म करने की संभावना खोजेंगे।' पनामा अपनी पिछली सरकार के तहत 2017 में इस चीन की इस पहल में शामिल हुआ था।
2013 में चीन ने लॉन्च किया था बीआरआई
BRI को 2013 में चीन द्वारा लॉन्च किया गया था। इसके तहत चीन की कोशिश दुनिया भर के कई देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषण कर अपने वैश्विक आर्थिक प्रभाव को बढ़ाने की रही है। पनामा 2017 में पूर्व राष्ट्रपति जुआन कार्लोस वेरेला के प्रशासन के दौरान इस पहल में शामिल हुआ, जिससे देश के बुनियादी ढांचे में चीनी निवेश में वृद्धि हुई।
अमेरिकी दबाव में पनामा ने लिया पीछे हटने का फैसला?
पनामा का यह फैसला विशेष रूप से पनामा नहर के पास चीन के बढ़ते प्रभाव और इस बढ़ती अमेरिकी चिंताओं के बीच आया है। खासकर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद परिस्थितियां तेजी से बदली हैं।
मुलिनो के साथ अपनी बैठक के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री रुबियो ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका 'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को पनामा नहर क्षेत्र पर अपने प्रभावी और बढ़ते नियंत्रण को जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकता है और न ही देगा।'
पनामा में चीन के प्रभाव में प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश शामिल है। इसमें विशेष रूप से हांगकांग के सीके हचिसन होल्डिंग्स द्वारा नहर के प्रवेश द्वार के पास दो प्रमुख बंदरगाहों का संचालन भी शामिल है। कंपनी को 25 वर्ष के लिए यहां दी गई रियायत को 2021 में नवीनीकृत किया गया जिसकी अमेरिकी सांसदों की आलोचना की थी। अमेरिका का तर्क है कि बीजिंग की भागीदारी से नहर की तटस्थता को खतरा है।
रुबियो ने पनामा के राष्ट्रपति के साथ मीटिंग में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का संदेश दिया, जिसमें कहा गया कि नहर के पास चीन की मौजूदगी जलमार्ग के लिए खतरा है और अमेरिका-पनामा संधि का उल्लंघन है।
पनामा को अमेरिका की धमकी
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने कहा, 'सचिव रुबियो ने स्पष्ट किया कि यह यथास्थिति अस्वीकार्य है और इसमें तत्काल परिवर्तन नहीं होने पर संयुक्त राज्य अमेरिका को संधि के तहत अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक उपाय करने की जरूरत पड़ेगी।'
रुबियो ने संभावित सुरक्षा जोखिमों का जिक्र करते हुए हुए हाल में चेतावनी दी थी कि चीन भू-राजनीतिक संघर्ष की स्थिति में व्यापार मार्गों को बाधित करने के लिए नहर के पास अपने बंदरगाहों का उपयोग कर सकता है। द मेगिन केली शो के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'चीन अमेरिकी शिपिंग के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण इस मार्ग को बंद करने के लिए बंदरगाहों का उपयोग कर सकता है।'
पनामा नहर पर कब्जा कर सकता है अमेरिका?
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी चुनाव में पनामा नहर के संचालन को पूरी तरह पनामा को सौंपे जाने को बड़ा मुद्दा बनाया था। ऐसे में इस पर भी बहस छिड़ी थी कि क्या अमेरिका पनामा कैनाल पर कब्जा जमा सकता है। पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने हालांकि, दोहराया कि नहर पर पनामा की संप्रभुता फिलहाल बहस का विषय नहीं है।
मुलिनो ने इस चिंता को भी खारिज किया इस मामले पर ट्रंप के पिछले बयानों के बावजूद अमेरिका इस नहर पर फिर से कब्ज़ा करने के लिए सैन्य बल का उपयोग करेगा।
गौरतलब है कि पनामा नहर को 20वीं सदी की शुरुआत में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा बनाया गया था। इसे 1999 में पनामा को सौंप दिया गया था। यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक जल मार्ग है। 1977 की संधि के तहत, यदि नहर की तटस्थता को आंतरिक संघर्ष या विदेशी शक्ति से खतरा होता है तो अमेरिका हस्तक्षेप करने का अधिकार रखता है।