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हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि ताजिकिस्तान पहले से ही तालिबान के प्रति सतर्क है, लेकिन वह काबुल की मौजूदा सरकार को निशाना बनाने वाले किसी सुरक्षा गठबंधन में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हो सकता।
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन ने हाल ही में पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रमुख जनरल मुहम्मद असीम मलिक से क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा के लिए मुलाकात की।
दावा है कि इस बैठक में काबुल और इस्लामाबाद के हालिया तनाव को ध्यान में रखते हुए, तालिबान का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान और ताजिकिस्तान की सुरक्षा रणनीतियों को एकजुट करने पर चर्चा हुई।
ताजिकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान से सीधा संपर्क बनाने से क्यों बचता है?
बता दें कि साल 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान ने सत्ता संभालने के बाद, मध्य एशिया के बाकी देशों ने तालिबान के साथ अपने संबंध बढ़ाए, लेकिन ताजिकिस्तान ने उनसे सीधे संपर्क बनाने से बचा। अब वह धीरे-धीरे काबुल के साथ कामकाजी रिश्ते स्थापित कर रहा है।
ताजिकिस्तान का तालिबान के साथ सीधा संपर्क न बनाने के पीछे आंशिक रूप से अफगानिस्तान में स्थित चरमपंथी समूह, जमात अंसारुल्लाह, को कारण माना जा रहा है। यह समूह अफगानिस्तान से अपनी गतिविधियां चलाता है, जिसका उद्देश्य ताजिकिस्तान की सत्ता और राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन की सरकार को उखाड़ फेंकना है।
पाकिस्तान ने ताजिकिस्तान के साथ साझेदारी के लिए क्यों हाथ बढ़ाया है?
ताजिकिस्तान में तालिबान का विरोध करने वाला एक समूह मौजूद है, जिसे राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा (एनआरएफ) कहा जाता है। पहले इसे नॉर्दन अलायंस कहा जाता था। यह समूह अफगानिस्तान में तालिबान के शासन का विरोध करता है और कई वर्षों से ताजिकिस्तान में एक मजबूत शक्ति के रूप में उभर रहा है।
दावा है कि आईएसआई नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट (एनआरएफ) के साथ संबंध स्थापित करने की संभावना तलाश रही है। आईएसआई एनआरएफ के साथ गठजोड़ करके तालिबान पर दबाव डालना चाहती है।
गौरतलब है कि एनआरएफ से संबंध बनाना पाकिस्तान के रूख में बदलाव को दर्शाता है, क्योंकि उसने 1996 से 2001 तक तालिबान के खिलाफ अपनी लड़ाई के दौरान एनआरएफ का विरोध किया था। उस समय एनआरएफ को रूस, ईरान, भारत और ताजिकिस्तान जैसे देशों का समर्थन प्राप्त था।