इस्लामाबाद: अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत मसूद खान ने पाकिस्तान की नई आतंकवाद विरोधी पहल अज्म-ए-इस्तेकाम के लिए उसका समर्थन करने का आग्रह किया है। खान ने अज्म-ए-इस्तेकाम का जिक्र करते हुए अमेरिका से छोटे हथियार और आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है।
बता दें कि अज्म-ए-इस्तेकाम पाकिस्तान द्वारा हाल में ही लॉन्च किया गया एक नया सैन्य अभियान है। इस अभियान के जरिए अफगानिस्तान की ओर से पाकिस्तान में बढ़ रहे आतंवादी हमले और वहां के चरमपंथियों को रोकने के लिए बनाया गया है।
पाकिस्तान ने अमेरिका से क्या मांग की है
पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी नेटवर्क को नष्ट करने के लिए मसूद खान ने अमेरिका से छोटे हथियार और आधुनिक उपकरण मुहैया करने की बात कही है। उन्होंने वाशिंगटन डीसी के विल्सन सेंटर में अमेरिकी की नीति निर्माताओं, विद्वानों, थिंक टैंक और कॉर्पोरेट नेताओं को संबोधित करते हुए इस अभियान के बारे में बताया है।
खान ने कहा है कि पहले दो चरणों का काम शुरू हो गया है और तीसरा चरण भी जल्द ही पूरा हो जाएगा। अफगानिस्तान में स्थित तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) आतंकवादियों के नए सिरे से खतरे को देखते हुए पाकिस्तान ने इस अभियान को शुरू किया है।
अमेरिका से सहयोग से दिया साथ
मसूद खान ने पाकिस्तान और अमेरिका के बीच मजबूत सुरक्षा संबंध बनाए रखने, खुफिया सहयोग बढ़ाने, एडवांस सैन्य प्लेटफार्मों की बिक्री फिर से शुरू करने पर जोर दिया है। यही नहीं उन्होंने पाकिस्तान के लिए अमेरिकी मूल के रक्षा उपकरणों को बनाए रखने के महत्व पर भी जोर दिया है।
खान ने उच्च स्तरीय रक्षा वार्ता, लगातार बैठकें और इंस्पायर्ड यूनियन 2024, फाल्कन टैलोन और रेड फ्लैग जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास का हवाला देते हुए कहा है कि यह दोनों देशों के बीच के मजबूत रिश्तों को दर्शाता है।
अमेरिका ने क्या कहा है
पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी प्रयासों के लिए अमेरिका ने उसे समर्थन देने की बात कही है। विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा है कि “हम आतंकवाद से लड़ने और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के पाकिस्तान के प्रयासों का समर्थन करते हैं, जिससे कानून के शासन और मानवाधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।”
मिलर ने यह भी कहा है कि आतंकवादियो हमलों के कारण पाकिस्तान के लोग काफी प्रभावित हुए हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि किसी भी देश को आंतकवाद को सहन नहीं करना चाहिए।
क्या है अज्म-ए-इस्तेकाम
अज्म-ए-इस्तेकाम पाकिस्तान द्वारा शुरू किया गया एक नया सैन्य अभियान है जिसका मकसद देश में बढ़ रही हिंसा और आतंकवाद पर काबू पाना है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा आतंकवाद विरोधी प्रयासों का पहले रिव्यू किया था और फिर 22 जून 2024 को राष्ट्रीय कार्य योजना की बैठक के दौरान इसे मंजूरी दी थी।
राष्ट्रीय कार्य योजना का गठन दिसंबर 2014 में पेशावर आर्मी पब्लिक स्कूल के हमले के बाद किया गया था जिसमें 140 से अधिक लोग मारे गए थे।
इन इलाकों से ज्यादा होते हैं आतंकी हमलें
पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, इस अभियान के जरिए देश से कट्टरता और आतंक को जड़ से उखाड़ने की कोशिश है। पाकिस्तान में विशेष रूप से बलोचिस्तान और खैबर पख्तुन्ख्वा की ओर से ज्यादा आंतकी हमले होते हैं जिसे काबू में करने के लिए इस अभियान को शुरू किया गया है।
चीन के दबाव में शुरू किया गया है यह अभियान-दावा
इस अभियान को लेकर यह दावा किया जाता है कि पाकिस्तान ने चीन के दबाव के कारण इस अभियान को शुरू किया गया है। पाकिस्तान के प्रमुख सहयोगी के रूप में चीन ने यहां पर 62 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में भारी निवेश भी किया है।
गौरतलब है कि मार्च 2024 में पांच चीनी इंजीनियरों की मौत सहित कई और हमलों के बाद पाकिस्तान ने अज्म-ए-इस्तेकाम जैसे सैन्य अभियान को शुरू किया गया है।
जर्ब-ए-अज्ब का क्या हुआ?
15 जून 2014 को पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के उत्तरी वजीरिस्तान प्रान्त में जर्ब-ए-अज्ब नामक एक सैन्य अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान को लेकर यह दावा किया जा रहा था आंतकियों के खातमें के लिए इसे शुरू किया गया है।
कुछ रिपोर्ट में दावा यह है कि अभियान के जरिए पाकिस्तान को समर्थन करने वाले समूहों को पनाह दी गई थी और भारी सख्या में स्थानियों के साथ खून-खराबा हुआ था।
पाकिस्तान द्वारा केवल “जर्ब-ए-अज्ब” ही नहीं बल्कि “राह-ए-निजात” और “राह-ए-रस्त” जैसे कई और हाई-प्रोफाइल ऑपरेशन भी चलाए गए थे लेकिन ये सभी प्रयास सफल नहीं हुए थे।
2 साल के अभियान के दौरान मारे गए 500 सैनिक-रिपोर्ट
एक रिपोर्ट के अनुसार, दो साल के ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब के दौरान लगभग 500 पाकिस्तानी सैनिक और 3,500 आतंकवादी मारे गए थे। एक और अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ स्थानियों ने यह दावा किया था कि उत्तरी वजीरिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को खत्म करने के लिए चलाए गए इस अभियान के कारण छह साल बाद भी यह क्षेत्र खंडार बना हुआ है और यहां कोई नहीं रहता है।