पहलगाम आतंकी हमला: वो 5 बड़े मौके जब पाकिस्तान का झूठ पूरी दुनिया ने देखा

Pahalgam Terror Attack: अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस ने हाल में पाकिस्तान से कहा कि वह पहलगाम मामले की जांच में भारत का सहयोग करे। हालांकि, पुरानी घटनाएं बताती हैं कि पाकिस्तान पर क्यों भरोसा नहीं किया जा सकता।

pakistan,

नई दिल्ली: अमेरिका ने इस्लामाबाद से पहलगाम आतंकी हमले (Pahalgam Terror Attack) से जुड़े पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादियों को पकड़ने के लिए भारत के साथ सहयोग करने को कहा है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस (JD Vance) ने उम्मीद जताई कि पाकिस्तान मामले में भारत के साथ मिलकर काम करेगा और कश्मीर में 22 अप्रैल को हुए नरसंहार पर भारत की किसी प्रतिक्रिया से 'क्षेत्रीय संघर्ष' शुरू नहीं होगा।

वेंस ने फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में गुरुवार को कहा, 'और हम स्पष्ट रूप से आशा करते हैं कि पाकिस्तान, अपनी जिम्मेदारी के अनुसार, भारत के साथ सहयोग करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कभी-कभी उसके क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का पता लगाया जाए और उनसे निपटा जाए।'

इससे पहले कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने भी पहलगाम आतंकी हमले में किसी भी प्रकार की भूमिका से इनकार करते हुए कहा था कि मामले में वह भारत के साथ संयुक्त रूप से जांच करने के लिए तैयार है। पाकिस्तान इससे पहले कई मौकों पर ऐसी ही बयानबाजी करता रहा है कि वह भारत के साथ जांच करने को तैयार है। हालांकि, हकीकत यही है कि उस पर किसी भी तरह से भरोसा करना मुश्किल है। खासकर पिछले कुछ सालों के इतिहास को देखें तो ये बात और भी पक्की हो जाती है कि पाकिस्तान यह सब केवल ध्यान भटकाने और और खुद को साफ बताने की कोशिश के तहत करता है। पहलगाम आतंकी हमला 22 अप्रैल को अंजाम दिया गया था।

5 मौके जब पाकिस्तान का झूठ सामने आया

पठानकोट, उरी और पुलवामा हमला: पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान की संयुक्त जांच टीम को हमले वाली जगह यानी एयरबेस का दौरा करने और भारतीय जांचकर्ताओं से सबूत इकट्ठा करने की अनुमति दी गई थी। यह तय हुआ था कि एनआईए की भी एक टीम पाकिस्तान का दौरा करेगी, लेकिन इस्लामाबाद ने बाद में शर्तों का उल्लंघन किया और भारत के साथ कोई सबूत साझा नहीं किया।

ऐसे ही उरी मामले में आतंकवादियों के डीएनए नमूनों के डिटेल के साथ पाकिस्तान को एक अनुरोध पत्र (एलआर) या न्यायिक अनुरोध भी भेजा गया था। हालांकि, इस्लामाबाद सबूतों पर कार्रवाई करने में विफल रहा। यही नहीं, एनआईए ने पुलवामा हमले में भी पाकिस्तान आधारित चार आतंकियों और हमले को अंजाम देने के लिए भारत आए तीन पाकिस्तानियों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी थी। पाकिस्तान ने कोई भी जानकारी साझा करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताने का ढोंग करता रहा।

अजमल कसाब पर यू-टर्न: 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद पकड़े गए एकमात्र जिंदा आतंकवादी मोहम्मद अजमल कसाब के पाकिस्तानी नागरिक होने की बात को शुरू में नकारने के बाद, इस्लामाबाद ने इसे स्वीकार कर लिया था। घटना के बाद पाकिस्तान के टीवी चैनलों ने भी कसाब के पाकिस्तान स्थित घर पहुंचकर रिपोर्टिंग की थी और पूरी कहानी दुनिया के सामने आई थी। कसाब ने भी अपनी सुनवाई में खुद को पाकिस्तान के पंजाब के फरीदकोट का रहने वाला बताया था।

2018 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सार्वजनिक रूप से देश में सक्रिय आतंकवादी संगठनों की मौजूदगी को स्वीकार किया था। उन्होंने सीमा 26/11 के आतंकवादी हमलों के मास्टरमाइंड हाफ़िज़ सईद के लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और मौलाना मसूद अज़हर के जैश-ए-मोहम्मद का ज़िक्र किए बिना शरीफ़ ने कथित तौर पर कहा कि आतंकवादी संगठन 'पाकिस्तान में सक्रिय' हैं।

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का कबूलनामा: हाल में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक टीवी इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि देश आतंकवाद को समर्थन, मदद और फंडिंग भी देता रहा है। स्काई न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में आसिफ ने इसे पश्चिमी देशों के लिए किया 'गंदा काम' बताया था और कहा था कि इसके कारण पाकिस्तान को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। यही नहीं, इस इंटरव्यू के कुछ दिनों बाद पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी स्वीकार किया कि पाकिस्तान और आतंकियों का साथ कई सालों से रहा है।

करगिल युद्ध पर इनकार..फिर यू टर्न: पाकिस्तान ने कई सालों तक आधिकारिक तौर पर 1999 के कारगिल युद्ध में अपनी संलिप्तता से इनकार किया। यह संघर्ष तब शुरू हुआ जब पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार करके भारतीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर घुसपैठ कर दी थी। भारत ने घुसपैठियों और पाकिस्तानी सेना से कब्ज़ा किए गए इलाकों को वापस पाने के लिए 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया। यह युद्ध 26 जुलाई, 1999 को समाप्त हुआ।

पाकिस्तान ने शुरू में दावा किया था कि युद्ध में केवल 'स्थानीय और आजादी के लिए लड़ाई लड़ने वाले लोग' शामिल थे। हालाँकि, कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख रहे परवेज मुशर्रफ ने 2006 में अपनी किताब 'इन द लाइन ऑफ़ फ़ायर' में कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना की भूमिका को स्वीकार किया। पिछले साल, पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने भी कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना की भागीदारी का उल्लेख किया था। यह पहली बार था जब पद पर रहते हुए किसी पाकिस्तानी आर्मी चीफ ने करगिल युद्ध में अपनी सेना की भूमिका स्वीकार की थी।

ओसाबा बिन लादेन को छुपाने से इनकार: पाकिस्तान हमेशा से कहता रहा है वह आतंकवाद का समर्थन नहीं करता है। हालांकि, 2011 में पाकिस्तान के एबटाबाद में छुपे अल-कायदा आतंकी ओसामा बिन लादेन को मारे जाने के बाद उसका झूठ पूरी दुनिया के सामने आ गया था। बिन लादेन की मौत के एक साल बाद भी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने उन दावों को खारिज कर दिया कि उन्हें पता था कि कुख्यात आतंकवादी एबटाबाद में रह रहा था। गिलानी ने 'द गार्डियन' को दिए एक इंटरव्यू में कहा, 'इसमें कोई मिलीभगत नहीं है। मुझे लगता है कि यह पूरी दुनिया की खुफिया विफलता है।' गिलानी ने इस बात से भी इनकार किया कि पाकिस्तान की सेना के भीतर यह जानकारी थी कि बिन लादेन पाकिस्तान में बैठा है।

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article