ओटावा/नई दिल्लीः मार्क कार्नी, जिन्होंने कभी कोई चुना हुआ पद नहीं संभाला था, अब कनाडा के 24वें प्रधानमंत्री बन चुके हैं। उन्होंने लिबरल पार्टी को अप्रत्याशित रूप से लगातार चौथी बार सत्ता में पहुंचाया है। वहीं, कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोलीवरे को हार का सामना करना पड़ा है। इस चुनावी संघर्ष में सबसे बड़ा झटका कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता और ट्रंप समर्थक छवि वाले पियरे पोइलीवरे को लगा, जो खुद अपनी संसदीय सीट हार गए। कनाडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के अनुसार, पोइलीवरे की हार ने उनकी पार्टी को गहरा झटका दिया है।
प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के नेतृत्व में मिली यह जीत कई मायनों में हैरान करने वाली है क्योंकि साल की शुरुआत में पार्टी की स्थिति बहुत कमजोर मानी जा रही थी। कनाडा के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का आक्रामक रुख पार्टी की जीत में बड़ा फैक्टर माना जा रहा है। जीत की घोषणा करते हुए कार्नी ने कहा, "हम अपने महान देश के लिए एक स्वतंत्र भविष्य का निर्माण करेंगे।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्क कार्नी को आम चुनाव में सफलता पर बधाई दी। उन्होंने एक्स पर मार्क कार्नी को टैग करते हुए लिखा, "भारत और कनाडा साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, कानून के शासन के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता और लोगों के बीच जीवंत संबंधों से बंधे हैं। मैं हमारी साझेदारी को मजबूत करने और हमारे लोगों के लिए अधिक अवसरों के द्वार खोलने के लिए आपके साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं।"
कौन हैं मार्क कार्नी?
1965 में नॉर्थवेस्ट टेरिटरीज के फोर्ट स्मिथ में जन्मे मार्क कार्नी का पालन-पोषण अल्बर्टा के एडमंटन में हुआ। हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक और ऑक्सफोर्ड से मास्टर्स व डॉक्टरेट करने के बाद उन्होंने गोल्डमैन सैक्स में 13 साल अंतरराष्ट्रीय वित्तीय दुनिया का अनुभव लिया।
2003 में बैंक ऑफ कनाडा से उनकी सेंट्रल बैंकिंग यात्रा शुरू हुई, और 2008 में वे इसके गवर्नर बने। इसके बाद वे 2013 से 2020 तक बैंक ऑफ इंग्लैंड के पहले गैर-ब्रिटिश गवर्नर बने, जहां उन्होंने ब्रेग्जिट जैसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को संभाला।
कार्नी का राजनीति में आना सामान्य नहीं था। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, उन्होंने अपने बैंकिंग करियर के दौरान कम से कम दो बार कैबिनेट में शामिल होने के प्रस्तावों को ठुकरा दिया था।हालाँकि, मार्च 2025 में जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद जब उन्होंने लिबरल पार्टी का नेतृत्व और प्रधानमंत्री पद संभाला, तो उनका राजनीतिक अनुभव न के बराबर था। पूर्व लिबरल न्याय मंत्री डेविड लामेटी ने सीटीवी को बताया कि ट्रूडो के दस साल के कार्यकाल ने दिसंबर 2024 तक लिबरल पार्टी को मृत और दफन कर दिया था।
ट्रंप विरोध पर केंद्रित अभियान
किन ट्रंप के विवादित बयानों, जैसे कि कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने की धमकी और कनाडाई सामानों पर भारी टैरिफ की चेतावनी, ने चुनाव का माहौल बदल दिया। कनाडा में राष्ट्रवादी लहर दौड़ पड़ी और कार्नी ने खुद को 'स्थिर हाथ' के रूप में पेश किया। जबकि पोइलीवरे ने अपने चुनावी अभियान में ट्रंप जैसी आक्रामक शैली अपनाई और “कनाडा फर्स्ट” का नारा दिया, जो “अमेरिका फर्स्ट” की स्पष्ट नकल था। लेकिन यही समानता उनके लिए नुकसानदेह साबित हुई। कनाडाई मतदाताओं ने इस रणनीति को खारिज कर दिया और कार्नी के नेतृत्व को तरजीह दी।
कनाडा के अंदरूनी मुद्दों जैसे महंगाई, आवास संकट और चीन से व्यापारिक रिश्तों पर सवाल उठे, लेकिन कार्नी ने राष्ट्रवाद और आर्थिक स्थिरता पर ध्यान केंद्रित रखा। उन्होंने ट्रूडो की सबसे विवादास्पद नीति—कार्बन टैक्स—को बहुत विभाजनकारी बताते हुए खत्म कर दिया। इसका भी फायदा कार्नी को हुआ।
विजयी भाषण में कार्नी का संदेश- 'हम टूटने नहीं देंगे'
ओटावा में समर्थकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री कार्नी ने अमेरिकी धमकियों के बीच कनाडा की एकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका और कनाडा के बीच चला आ रहा आपसी सहयोग अब समाप्त हो चुका है।
कार्नी ने भावुक लहजे में कहा, “हम अमेरिका की गद्दारी के झटके से उबर चुके हैं, लेकिन हमें उससे मिले सबक कभी नहीं भूलने चाहिए। जैसा कि मैं महीनों से चेतावनी देता आ रहा हूँ—अमेरिका हमारी जमीन, हमारे संसाधन, हमारा पानी और हमारा देश चाहता है। ये धमकियाँ महज शब्द नहीं हैं। ट्रंप हमें तोड़ना चाहते हैं ताकि अमेरिका हम पर कब्जा कर सके। लेकिन ऐसा कभी... नहीं होगा। साथ ही हमें यह भी समझना होगा कि अब दुनिया वैसी नहीं रही जैसी पहले थी।”